जी-7 देशों की बैठक कनाडा में चल रही है. दुनिया के इलिट देशों की बैठक भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो चुका है. इसकी महत्ता को इस तरह समझ सकते हैं कि बैठक का बुलावा न आने के पहले देश का विपक्ष और देश का दुश्मन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भारत के मजे लेने शुरू कर दिए थे. अचानक बुलावा आने के बाद से सबके मुंह सिल गए.
दरअसल 2019 से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया के अमीर देश अपनी बैठक में हर साल बुलाते हैं. यह भारत की वैश्विक स्थिति और रणनीतिक महत्व को दर्शाता है. अमेरिका के हडसन इंस्टीट्यूट द्वारा 14 मई, 2023 को प्रकाशित लेख, जिसका शीर्षक है India is Always Invited to G7. Why Is That So Important? ने भी भारत की दुनिया में बढ़ती ताकत और प्रासंगिकता को महसूस किया था.लेख में अनुमान लगाया गया है कि भारत भविष्य में G7 का औपचारिक सदस्य बन सकता है, क्योंकि उसका आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव बढ़ रहा है। हालांकि, भारत की ओर से कुछ हिचकिचाहट हो सकती है. आइये देखते हैं कि भारत की वैश्विक भूमिका किस तरह बदल रही है. वे कौन से कारण हैं जिसके चलते आज दुनिया के अमीर देशों का काम भारत के बिना नहीं चलने वाला जैसा हो गया है. आइये इसकी कुछ प्रमुख वजहें और इसके निहितार्थ की चर्चा करते हैं.
1- दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने वाला है भारत
भारत इस साल ही दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है. तमाम वैश्विक संस्थाओं का मानना है कि भारत एक साल के अंदर ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का खिताब पा सकता है. G7 देश, जो विश्व की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का समूह हैं, भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (सप्लाई चेन) में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी मानते हैं. कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने शिखर सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करते हुए कहा कि भारत का होना आर्थिक और रणनीतिक चर्चाओं के लिए जरूरी है क्योंकि यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के केंद्र में है.
2-जिओ पोलिटिकल महत्व
भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश और एक उभरती हुई शक्ति है. G7 देश भारत को एक लोकतांत्रिक और जिम्मेदार शक्ति के रूप में देखते हैं, जो चीन और रूस जैसे अधिनायकवादी देशों के प्रभाव को संतुलित करने में मदद कर सकता है. भारत का इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक महत्व, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में, G7 के लिए महत्वपूर्ण है.
3-ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व
भारत को Global South का एक प्रमुख आवाज माना जाता है. G7 देश, जो मुख्य रूप से विकसित देश हैं, भारत जैसे उभरते देशों को शामिल करके वैश्विक मुद्दों पर व्यापक सहमति बनाना चाहते हैं. भारत की G20 अध्यक्षता (2023) ने इसे और मजबूत किया, जिससे G7 को भारत की राय को नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया. हडसन इंस्टिट्यूट के लेख में विदेश मंत्री एस. जयशंकर के 2022 के बयान का हवाला देते हुए लिखा गया कि यूरोप को यह मानसिकता छोड़नी होगी कि यूरोप की समस्याएँ विश्व की समस्याएं हैं, लेकिन विश्व की समस्याए यूरोप की समस्याएं नहीं हैं. भारत की G20 अध्यक्षता और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ सम्मेलन (2023) ने इसे ग्लोबल साउथ के हितों को G7 जैसे मंचों पर उठाने में सक्षम बनाया है.
4-वैश्विक चुनौतियों में योगदान
G7 शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, डिजिटल परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा, और अंतरराष्ट्रीय शांति जैसे मुद्दों पर चर्चा होती हैय भारत इन क्षेत्रों में अपनी नीतियों और तकनीकी प्रगति (जैसे नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल अर्थव्यवस्था) के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.
इसके साथ ही भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते, G7 के लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ मैच करता है. यह इसे उन देशों से अलग करता है जो G7 के लिए रणनीतिक चुनौतियां पेश करते हैं, जैसे कि चीन.
5-मोदी की व्यक्तिगत छवि
2019 से हर G7 शिखर सम्मेलन में भारत को आमंत्रित किया गया है (2020 को छोड़कर, जब कोविड-19 के कारण शिखर सम्मेलन रद्द हुआ था). यह भारत की बढ़ती वैश्विक हैसियत और मोदी के नेतृत्व में भारत की सक्रिय विदेश नीति को दर्शाता है.
प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक मंचों पर सक्रियता और उनकी कूटनीतिक पहल (जैसे G20 में भारत की भूमिका) ने उन्हें एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित किया है. G7 देश भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए मोदी के साथ सीधे संवाद को महत्व देते हैं.
6-चीन के मुकाबले भारत की रणनीतिक भूमिका
आज अमेरिका सहित पूरे पश्चिम की सबसे बड़ी चिंता चीन है. इसका कारण चीन की नीतियां तो अफेंसिव हैं हीं , चीन में लोकतंत्र का न होना भी एक बहुत बड़ा कारण है. हडसन इंस्टिट्यूट के लेख में तर्क दिया गया है कि भारत एक जिम्मेदार और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, जो चीन जैसे अधिनायकवादी देशों के प्रभाव को संतुलित कर सकता है. उदाहरण के लिए, दक्षिण चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय दावों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने 2016 में खारिज कर दिया था, लेकिन चीन ने इसे नजरअंदाज किया. इसके विपरीत, भारत ने नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन किया है.
G7 देश भारत को एक ऐसे शक्तिशाली साझेदार के रूप में देखते हैं, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की आक्रामकता का जवाब दे सकता है. भारत क्वाड (Quad) समूह (भारत, अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया) का हिस्सा है, जो चीन के प्रभाव को संतुलित करने में महत्वपूर्ण है.
7- भारत जैसे देश ही बचा सकेंगे G7 की प्रासंगिकता
हडसन इंस्टीट्यूट की लेख की मानें तो G7 का प्रभाव घट रहा है, और भारत जैसे देशों को शामिल करना इसे फिर से प्रासंगिक बनाने का एक तरीका हो सकता है. G7 देश भारत को एक लोकतांत्रिक और जिम्मेदार शक्ति के रूप में देखते हैं, जो रूस और चीन जैसे देशों के विपरीत है.
लेख में भारत की हिचकिचाहट को भी रेखांकित किया गया था. भारत एक तटस्थ और स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है, और G7 जैसे पश्चिमी-केंद्रित समूह में शामिल होने से उसकी Non-Aligned Movement की नीति प्रभावित हो सकती है. इसके अलावा, चीन के साथ तनाव बढ़ने का जोखिम भी है.