उज्जैन के श्मशान में बिहार चुनाव के प्रत्याशी करवा रहे तांत्रिक क्रियाएं!

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कालों के काल महाकाल की नगरी उज्जैन को सदियों से तंत्र मंत्र और साधना के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना गया है. यही वजह है कि दीपावली की रात (कार्तिक अमावस्या) को यहां के श्मशान घाटों पर तांत्रिकों और साधकों का विशेष जमावड़ा देखने को मिलता है. इस बार उज्जैन का विक्रांत भैरव श्मशान एक विशेष प्रयोजन को लेकर चर्चा में है. यहां बिहार चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रत्याशियों की ओर से तंत्र क्रियाएं करवाई जा रही हैं.

तंत्र साधक जयवर्धन भारद्वाज ने बताया कि धनतेरस की रात्रि से ही सिद्धि और साधना की सफलता के लिए विशेष अनुष्ठान शुरू किया गया है, जो दीवाली की रात्रि में पूर्ण होगा. भारद्वाज ने स्पष्ट किया कि अनुष्ठान के मुख्य कारणों में से एक बिहार चुनाव भी है. कुछ प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं.

साधक बताते हैं कि यह स्थान स्वयं भैरव जी की साधना स्थली रहा है (जिसे भैरवगढ़ भी कहा जाता है). इस स्थान पर किए गए तप और अनुष्ठान शत प्रतिशत सफलता, सिद्धि और विजय की प्राप्ति निश्चित करते हैं. 

अमावस्या और तंत्र साधना का विशेष संयोग
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक अमावस्या (दीपावली) साल की सबसे विशेष अमावस्या होती है. इस रात श्मशान में यश, वैभव, धनधान्य और वर्चस्व की प्राप्ति के लिए तंत्र क्रियाएं की जाती हैं. इस दौरान भैरव बाबा, मां काली और मां लक्ष्मी की साधना के साथ धन के देवता कुबेर और गणेशजी का भी पूजन किया जाता है.

उज्जैन के श्मशान को देश के पांच प्रसिद्ध श्मशानों (कामाख्या, तारापीठ, रजरप्पा, त्र्यंबकेश्वर) में गिना जाता है, जहाँ तंत्र साधना का विशेष प्रभाव माना गया है.  कुछ तांत्रिक उल्लू की बलि देकर (मां लक्ष्मी उल्लू पर सवार हैं), कछुआ साधना, कोड़ी साधना, रत्ती साधना और गौरी-गणेश साधना भी करते हैं.

दीपावली की रात जब पूरा शहर रौशनी से जगमगाता है, तब कुछ साधक अंधकार में डूबकर शक्ति, सिद्धि और लक्ष्मी के आह्वान की दिव्यता की तलाश करते हैं.

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