एशिया की सबसे बड़ी डेयरी पर शंकर चौधरी का दबदबा कायम, तीसरी बार चुने गए चेयरमैन

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गुजरात विधानसभा अध्यक्ष और थराद से भाजपा विधायक शंकर चौधरी एक बार फिर एशिया की सबसे बड़ी बनास डेयरी के चेयरमैन पद पर निर्विरोध चुने गए हैं. यह उनका लगातार तीसरा कार्यकाल है. बनास डेयरी के निदेशक मंडल ने उपाध्यक्ष पद के लिए भावाभाई रबारी के नाम पर भी मुहर लगाई है. अब दोनों नेता अगले ढाई साल तक अपने पदों पर बने रहेंगे.

बनास डेयरी के निदेशक मंडल के चुनाव में कुल 16 सीटें थीं, जिनमें से 15 सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए. केवल दांता सीट पर मुकाबला हुआ था, जहां तीन उम्मीदवार मैदान में थे और अंततः भाजपा समर्थित उम्मीदवार की जीत हुई. इसके बाद बोर्ड की बैठक में सर्वसम्मति से शंकर चौधरी को अध्यक्ष और भावाभाई रबारी को उपाध्यक्ष चुना गया.

चुनाव के बाद शंकर चौधरी ने कहा, “बनास डेयरी के लाखों पशुपालकों के सहयोग और विश्वास से ही यह डेयरी नई ऊंचाइयों पर पहुंची है. आने वाले समय में हम बनास डेयरी को वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने का प्रयास करेंगे. हमारा निदेशक मंडल पूरी एकजुटता से काम करेगा ताकि पशुपालकों को और अधिक लाभ मिल सके.”

10 वर्षों से अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे चौधरी

बनास डेयरी की स्थापना स्वर्गीय गलबाभाई नानजीभाई पटेल ने की थी. उनके बाद दलुभाई देसाई और फिर परितभाई भटोल ने अध्यक्ष पद संभाला था. परितभाई भटोल ने 22 वर्षों तक अध्यक्ष के रूप में डेयरी का नेतृत्व किया, जबकि पिछले 10 वर्षों से शंकर चौधरी यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. अब उन्हें एक बार फिर ढाई साल के लिए यह पद सौंपा गया है.

बनास डेयरी का विस्तार अब गुजरात सहित 8 राज्यों में हो चुका है. डेयरी से 3.76 लाख सदस्य जुड़े हुए हैं और इसका वार्षिक टर्नओवर 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक है. डेयरी के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के तहत पशुपालकों के खातों में हर दिन लगभग 35 करोड़ रुपये सीधे ट्रांसफर किए जाते हैं.

350 टन शहद का भी उत्पादन करती है डेयरी

बनास डेयरी ने न सिर्फ दूध उत्पादन बल्कि “स्वीट क्रांति” के रूप में 350 टन शहद का उत्पादन कर नया आयाम जोड़ा है. इसके साथ ही डेयरी के पशुपालकों ने देश का पहला मेडिकल कॉलेज भी स्थापित किया है. डेयरी की पहल से बनासकांठा की महिलाएं आत्मनिर्भर बनी हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली है.

कौन हैं शंकर चौधरी?

शंकर चौधरी गुजरात भाजपा के बड़े ओबीसी नेता हैं और पांच बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने 1998 में मात्र 28 वर्ष की उम्र में पहली बार विधानसभा चुनाव जीता था. वर्ष 2017 को छोड़कर वे हर बार जीत हासिल करते रहे हैं. वे आनंदीबेन पटेल सरकार में राज्य मंत्री रह चुके हैं. इसके अलावा वे भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश भाजपा के महामंत्री भी रह चुके हैं. बनासकांठा और उत्तर गुजरात में उनकी राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत मानी जाती है.

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