बिहार की मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में इस बार किस गठबंधन का पलड़ा भारी रहेगा? पहली नजर में जवाब महागठबंधन होगा. इसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, तीन वाम दल और विकासशील इंसान पार्टी शामिल हैं. वजह साफ है कि मुस्लिम वोटरों को आम तौर पर महागठबंधन का पारंपरिक समर्थक माना जाता है.
वहीं, आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं. बिहार की कुल 51 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों में से 2020 के चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 35 सीटें जीती थीं. यानी एनडीए की स्ट्राइक रेट लगभग 70 फीसदी रही जो राज्य के बाकी इलाकों से कहीं ज्यादा थी. साल 2010 में भी एनडीए का प्रदर्शन और बेहतर रहा था. 2015 में बीजेपी और जेडीयू के अलग-अलग चुनाव लड़ने के कारण सीटें घटीं, लेकिन हर बार बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
ये 51 सीटें बिहार के सात जिलों में किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया, दरभंगा, पश्चिम चंपारण और सीतामढ़ी फैली हैं. इनमें मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है. किशनगंज बिहार का एकमात्र जिला है जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. यहां मुस्लिम जनसंख्या करीब 68% है. कटिहार में ये अनुपात 45%, अररिया में 43% और पूर्णिया में करीब 38% है. बाकी तीन जिलों में मुस्लिम आबादी लगभग 22% है.
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किशनगंज को छोड़कर बाकी सभी जिलों में बीजेपी और उसके सहयोगियों का प्रदर्शन लगातार मजबूत रहा है. उदाहरण के लिए कटिहार में 2020 के चुनाव में बीजेपी ने सात में से तीन सीटें जीतीं, जबकि एक सीट जेडीयू के खाते में गई. अररिया और पूर्णिया में भी यही पैटर्न रहा. इनमें कुल 13 सीटों में से आठ पर बीजेपी-जेडीयू ने कब्जा किया.
इसके अलावा चार और जिले पूर्वी चंपारण, सुपौल, मधुबनी और सिवान हैं जहां मुस्लिम आबादी 18% या उससे ज्यादा है. इन चार जिलों में कुल 35 विधानसभा सीटें आती हैं. यहां भी रुझान लगभग वही रहा. साल 2015 और 2020 दोनों चुनावों में बीजेपी इन इलाकों में सबसे बड़ी पार्टी रही जबकि 2010 में ये स्थिति जेडीयू के पक्ष में थी. 2020 में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने इन 35 सीटों में से 24 पर जीत दर्ज की थी जबकि 2010 में ये आंकड़ा 31 तक पहुंच गया था.
क्या इस बार कहानी बदल जाएगी?
CSDS (Centre for the Study of Developing Societies) के सर्वे लगातार ये दिखाते हैं कि बिहार के ज्यादातर मुस्लिम वोटर महागठबंधन के साथ रहते हैं. लेकिन असल नतीजे अक्सर इसके उलट दिखते हैं. संभव है कि कई सीटों पर कई मुस्लिम उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से वोट बंट जाता है और इसी वजह से बीजेपी-एनडीए को फायदा मिल जाता है.
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