खतरनाक है कर्नाटक का रोहित वेमुला बिल, जातिगत बंटवारे की राजनीति में एक और कड़ी जुड़ी

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दिसंबर 2023 में तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बनी. सीएम बने रेवंत रेड्डी. मई 2024 में रोहित वेमुला सुसाइड केस में रेवंत सरकार ने खात्‍मा रिपोर्ट लगा दी. रिपोर्ट में कहा गया कि रोहित वेमुला अनुसूचित जाति के नहीं थे. उन्होंने अपनी पहचान उजागर होने के चलते सुसाइड कर लिया. यह क्लोजर रिपोर्ट अगर बीजेपी की किसी सरकार ने जारी की होती तो कहा जाता कि रोहित वेमुला के साथ न्याय नहीं हुआ. पर चूंकि दलित अधिकारों के लिए सबसे अधिक बयानबाजी करने वाले राहुल गांधी की पार्टी की ही एक सरकार ने यह रिपोर्ट लगाई इसलिए इस पर सवाल नहीं उठे. मामला दब गया. लेकिन, जिस रोहित वेमुला की जाति पर ही विवाद था, उसे पिछड़ी जाति के उत्‍पीड़न का पोस्‍टर बॉय बनाकर कर्नाटक सरकार जो करने जा रही है, वह और भी खतरनाक है.

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा रोहित वेमुला के नाम पर एक ऐसा बिल लाए जाने की खबर है, जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति के अलावा ओबीसी और अल्‍पसंख्‍यक छात्र भी अगर अपने साथ होने वाले उत्‍पीड़न की शिकायत करते हैं तो नए कानून के तहत एक गंभीर अपराध दर्ज किया जाएगा. गौरतलब है कि रोहित वेमुला बिल को जल्दी पेश करने के लिए कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को राहुल गांधी ने पत्र लिखा था. लेकिन, राहुल गांधी को यह अंदाजा नहीं है कि सवर्ण छात्र, फैकल्टी और संस्थान को घेरने वाला यह कठोर बिल किस तरह से देश और समाज को खंडित करने की हैसियत रखता है.  

क्या है कर्नाटक सरकार का प्रस्तावित रोहित वेमुला बिल

कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तावित रोहित वेमुला (रोकथाम और अन्याय का निवारण) (शिक्षा और सम्मान का अधिकार) बिल, 2025 ने भारत में सामाजिक और राजनीतिक बहस को तेज कर दिया है.  बिल का उद्देश्य अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), और अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा में समानता सुनिश्चित करना और भेदभाव को रोकना है. 

कानून के किसी भी उल्लंघन के लिए, संस्थान के मामलों के प्रभारी व्यक्ति को एक वर्ष के कारावास और 10,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. इसके साथ ही राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं को कोई वित्तीय सहायता या अनुदान नहीं देगी. प्रस्तावित अधिनियम के तहत किया गया प्रत्येक अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होगा.

अदालत, जुर्माने के अतिरिक्त, आरोपी द्वारा भेदभाव के शिकार व्यक्ति को देय उचित मुआवजा भी प्रदान करेगी, जो अधिकतम 1 लाख रुपये तक होगा. बार-बार अपराध करने पर व्यक्ति को तीन वर्ष की कैद और 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.

जाहिर है कि इस तरह के भेदभाव को रोकने और सजा देने के लिए पहले से ही कानून है. कॉलेज में दलित छात्रों के साथ शोषण न हो इसके लिए भी कानून है. जो हर जगह दलित लोगों को शेल्टर प्रदान करता है. रही बात ओबीसी और मुसलमानों को इस तरह का अधिकार देने की तो जाहिर है यह देश को बांटने वाला साबित होगा. दलितों को छोड़कर देश में और कोई भी शोषित और उत्पीड़ित इस तरह से नहीं है कि उनके लिए संवैधानिक व्यवस्था करनी पड़े.  

3-नया कानून सामाजिक विघटन का कारण बनेगा?

सोशल मीडिया पर इस बिल की जबरदस्त आलोचना हो रही है. माना जा रहा है कि ये प्रावधान सामान्य वर्ग (General Category) के छात्रों, शिक्षकों, और प्रशासकों को निशाना बना सकते हैं. X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि बिल सामान्य वर्ग को उत्पीड़क के रूप में चित्रित करता है. एक हैंडल तो लिखता है कि भारत में इस तरह के कानून ब्राह्मणों के खिलाफ ऐसा ही नफरत फैला रहे हैं जैसा कि यूरोप में यहूदियों के खिलाफ फैलाया गया था. अभी कांग्रेस की योजना इसे कांग्रेस सरकार वाले राज्यों में लागू करने की है. जाहिर है कि धीरे-धीरे इस कानून के नाम पर मोबिलाइजेशन कराने की कोशिश की जाएगी. जिससे जातिगत आधार पर समाज में विभाजन बढ़ना तय किया जा सकता है. 

वैसे भी कर्नाटक की जनसंख्या में दलित-आदिवासी, ओबीसी और मुसलमानों का हिस्‍सा करीब 94 प्रतिशत है. दूसरी तरफ सवर्णों की जनसंख्या राज्‍य में केवल 6 प्रतिशत है. कांग्रेस को लगता है कि अगर हम 6 प्रतिशत सवर्णों को छोड़कर 94 परसेंट समर्थकों के साथ जाते है् तो हमें चुनावों में ज्यादा फायदा होगा.

यूं भी राहुल गांधी जाति जनगणना को लेकर बहुत पहले से राजनीति कर रहे हैं. लेकिन, कर्नाटक सरकार द्वारा पेश किया जाने वाला रोहित वेमुला बिल उसके आगे की कड़ी है. राहुल गांधी समझते हैं कि जाति जनगणना के हिसाब से धन संपत्ति में तो वो हिस्सेदारी दिला नहीं पाएंगे, ऐसे में जातियों के बीच अधिकारों की लड़ाई को जातिगत कानून बनाकर और तीखा किया जाए. इससे हिंदू वोटबैंक टूटेगा, जो अभी एकजुट होकर भाजपा को वोट करता है. 

4- शिक्षण संस्थानों के संस्थागत स्वायत्तता भी कमजोर पड़ेगी

बिल में उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों को भेदभाव के मामलों में घेरने की कोशिश की गई है.दोषी पाए जाने पर संस्थाओं की सरकारी सहायता बंद करने का प्रावधान है. भारत में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को स्वायत्तता दी जाती है ताकि वे स्वतंत्र रूप से शैक्षणिक और प्रशासनिक निर्णय ले सकें. लेकिन, बिल के तहत सरकारी हस्तक्षेप बढ़ सकता है, जिससे संस्थानों को अपनी नीतियों और कार्यप्रणाली में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

आलोचकों का कहना है कि यह बिल संस्थानों को सरकारी दबाव में ला सकता है, जिससे वे निष्पक्षता के बजाय राजनीतिक दबाव में काम करने को मजबूर हो सकते हैं. अगर भेदभाव की शिकायतों की जांच के लिए समितियों का गठन प्रस्तावित है,अगर ये समितियां सरकारी नियंत्रण में होंगी, तो शैक्षणिक संस्थानों की स्वतंत्रता और भी कम हो सकती है.

5- झूठे आरोपों और दुरुपयोग की आशंका

बिल में भेदभाव को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है, जिसके तहत बिना वारंट के गिरफ्तारी हो सकती है. जाहिर है कि ऐसे अधिकारों का अकसर दुरुपयोग ही होता है. 
कॉमरेड मलाल नाम के एक हैंडल ने इसे बहुत खूबसूरती से बयान किया है. इस हैंडल ने लिखा है कि....

आप किसी कॉलेज में सवर्ण छात्र हैं. आपने किसी ग़ैर-सवर्ण सहपाठी को आपने अपनी बाइक देने से मना कर दिया. किसी को अपने बर्थडे में नहीं बुलाया. किसी ने आपको डेट के लिए प्रोपोज किया और आपने मना कर दिया. आपकी गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड से आपका ब्रेकअप हो गया.

आपने किसी से bully होने से इंकार कर दिया. किसी से छोटा-मोटा झगड़ा हो गया. आप किसी स्टूडेंट पोलिटिकल पार्टी के मेम्बर बन गए और किसी से लफड़ा हो गया. 

आप प्रोफेसर हैं और किसी स्टूडेंट को अपने पनिश कर दिया. किसी स्टूडेंट के नहीं आने पर अटेंडेंस नहीं लगाया.

ऐसी हज़ार बहानों का सहारा लेकर आपके HOD से आपकी शिकायत हो सकती है. HOD आप पर कारवाई नहीं करता है तो उसे पहले एक साल विथ जुर्माना , फिर तीन साल जेल विथ जुर्माने का सजा हो जाएगा. 

कॉलेज का एजुकेशन फण्ड खत्म कर दिया गया जाएगा.

अंत में यह हैंडल लिखता है कि यह सांप्रदायिक लक्षित हिंसा विधेयक से भी खतरनाक विधेयक है. कांग्रेस अब इस देश को खंड खंड करने पर उतारू हो चुकी है.

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