बर्थडे के मौके ने निशांत कुमार को फिर से राजनीति के मैदान में खींच लिया है. 20 जुलाई को निशांत कुमार ने पैर छूकर पिता का आशीर्वाद लिया, और चुनाव बाद पिता के फिर से मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद जाहिर की - लेकिन एनडीए में नीतीश कुमार के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने निशांत कुमार के जन्मदिन के बहाने नया राजनीतिक शिगूफा छोड़ दिया है.
निशांत कुमार के राजनीति में आने को लेकर काफी दिनों से अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन किसी तरफ से कोई ठोस पहल या संकेत नहीं नजर आया है. अलग अलग दौर में नीतीश कुमार के दोस्त और दुश्मन की भूमिका में देखे गये राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू को निशांत कुमार के हवाले कर देने का सुझाव दिया है.
उपेंद्र कुशवाहा शुरू से ही नीतीश कुमार को अपना राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी मानते रहे हैं, और बिहार की राजनीति में ये भी माना जाता है कि नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उपेंद्र कुशवाहा की नजर तेजस्वी यादव से कहीं ज्यादा रही है - और उपेंद्र कुशवाहा के ताजा बयान को भी उसी दायरे में देखा जा रहा है.
नीतीश कुमार की पूरी राजनीति परिवारवाद के खिलाफ रही है. उनकी छवि भी ऐसी ही बनी हुई है. और, ऐसे दौर में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार बीजेपी के नेताओं को परिवारवाद की राजनीति से बाज आने को कहा है - आखिर, उपेंद्र कुशवाहा के बयान का क्या मकसद हो सकता है?
क्या उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार के खिलाफ एक और चिराग पासवान बनने जा रहे हैं? क्या उपेंद्र कुशवाहा की पीठ पर भी बीजेपी ने चिराग पासवान की तरह हाथ रखा है?
सलाह में फिक्र कितनी, सियासत कितनी
उपेंद्र कुशवाहा से पहले एनडीए के एक और सहयोगी जीतनराम मांझी भी निशांत कुमार के राजनीति में आने को लेकर अपनी राय जाहिर कर चुके हैं. वो तो सवालिया लहजे में भी पूछ चुके हैं कि नेता का बेटा नेता क्यों नहीं हो सकता? लेकिन, निशांत कुमार को लेकर दोनों नेताओं के रुख में थोड़ा फर्क भी है.
जीतनराम मांझी जहां निशांत कुमार के राजनीति में आने के पक्षधर दिखे हैं, वहीं उपेंद्र कुशवाहा तो नीतीश कुमार को जेडीयू का पूरा दारोमदार निशांत कुमार को ही हैंडओवर कर देने की सलाह दे रहे हैं - और इसीलिए उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर शक-शुबहे की गुंजाइश भी बन रही है.
निशांत कुमार ने जन्मदिन के मौके पर पिता नीतीश कुमार के पैर छूकर आशीर्वाद लिये, और पहले की ही तरह मीडिया से अपनी बात कही. पहले निशांत पिता के स्वास्थ्य को लेकर भी बयान दे चुके हैं, और नीतीश कुमार की सेहत पर उठते सवालों को सिरे से खारिज कर चुके हैं.
न्यूज एजेंसी ANI से निशांत कुमार ने कहा है, मेरे पिता फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे... एनडीए की सरकार बनेगी... मुझे जनता पर पूरा भरोसा है... पिछले 20 साल में उनके द्वारा किए गए काम का फल लोग उन्हें जरूर देंगे... और उन्हें फिर से भारी बहुमत से जिताएंगे... जनता पर पूरा भरोसा है.
फेसबुक पर अपनी पोस्ट में उपेंद्र कुशवाहा ने बताया है कि निशांत कुमार के जन्मदिन की जानकारी उनको मीडिया और सोशल मीडिया से मिली. निशांत कुमार को तंदुरुस्त और खुशहाल रहने की शुभकामना देते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार को बेटे को लेकर सलाह भी दी है, 'आदरणीय नीतीश कुमार जी से अति विनम्र आग्रह है कि समय और परिस्थिति की नजाकत को समझते हुए सच को स्वीकार करने की कृपा करें... अब सरकार और पार्टी दोनों का (साथ-साथ) संचालन स्वयं उनके लिए भी उचित नहीं है... सरकार चलाने का उनका लंबा अनुभव है जिसका लाभ राज्य को आगे भी मिलता रहे.'
उपेंद्र कुशवाहा ने इसे बिहार और जेडीयू दोनों के हित में बताया है. उनका दावा है कि सिर्फ वही नहीं जेडीयू नेता और कार्यकर्ता भी ऐसा ही चाहते हैं. लगे हाथ उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार को आगाह भी किया है. कहते हैं, पार्टी की जवाबदेही के हस्तांतरण के विषय पर समय रहते ठोस फैसला ले लें... इसमें विलंब दल के लिए अपूरणीय नुकसान का कारण बन सकता है... शायद ऐसा नुकसान जिसकी भरपाई कभी हो भी नहीं पाये.
पोस्ट के आखिर में उपेंद्र कुशवाहा ने अलग से नोट भी लिखा है, मैं जो कुछ कह रहा हूं... जदयू के नेता शायद मुख्यमंत्री जी से कह नहीं पाएंगे, और कुछ लोग कह भी सकते हों... तो वैसे लोग वहां तक पहुंच ही नहीं पाते होंगे.
उपेंद्र कुशवाहा की सलाह को जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने सिरे से खारिज कर दिया है. कहते हैं, नीतीश कुमार ही पार्टी का चेहरा हैं और कार्यकर्ता उनके साथ हैं.
क्या कुशवाहा भी चिराग की राह पर हैं?
उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान दोनों ही बीजेपी और जेडीयू के साथ एनडीए में हैं. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान का सियासी जौहर देखा जा चुका है. चिराग पासवान की रणनीति से नीतीश कुमार को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था, और जाहिर है सीधा फायदा बीजेपी को मिला.
चिराग पासवान भी कह चुके हैं कि चुनाव बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन जिस तरह चिराग पासवान और उनके समर्थक बिहार की किसी सामान्य विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का संकेत दे रहे हैं, निशाने पर तो नीतीश कुमार ही नजर आते हैं - और हाल फिलहाल बिहार की आपराधिक घटनाओं को लेकर भी चिराग पासवान, नीतीश कुमार पर तेजस्वी यादव की ही तरह हमलावर नजर आते हैं.
करीब तीन महीने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार दौरे में बीजेपी कार्यकर्ताओं को परिवारवाद की राजनीति से दूर रहने के लिए अलर्ट किया था, ‘राजनीति में परिवारवाद नहीं होना चाहिए... जमींदारी प्रथा नहीं होनी चाहिए... ऐसा न हो कि आप नहीं तो हमारे पुत्र-पुत्री… ये नहीं होना चाहिए.'
बीजेपी कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान सवाल भी किया था, 'आखिर कार्यकर्ता मेहनत क्यों करता है? उसके मेहनत का फल क्यों नहीं मिलना चाहिए?'
जब मोदी बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को परिवारवाद की राजनीति से दूरी बनाने की सलाह दे रहे हैं, तो ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा के बयान का क्या मतलब समझा जाये? ये तो नीतीश कुमार को फंसाने की ही कोई चाल लगती है. और, ये चाल भी चिराग पासवान से ही मिलती जुलती है. और, अगर वास्तव में उपेंद्र कुशवाहा भी चिराग पासवान के ही रास्ते चल रहे हैं, तो इसमें बीजेपी का भी फायदा होना चाहिए.
बिहार की राजनीति में क्या वास्तव में उपेंद्र कुशवाहा भी विधानसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान की ही लाइन पर चल रहे हैं?
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