भारत में आजकल एक-दो नहीं बल्कि बहुत सी लड़कियां और महिलाएं PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) और PCOD (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज) जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं. ये दोनों हार्मोनल प्रॉब्लम्स हैं, जिनका पता अगर जल्दी नहीं लगता है तो यह आगे चलकर गंभीर रूप ले सकती हैं. ये प्रॉब्लम्स 15 से 25 साल की महिलाओं में ज्यादा देखने को मिल रही हैं. PCOS और PCOD, महिला के रिप्रोडक्टिव हेल्थ, मेटाबॉलिज्म और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं.
डॉक्टर्स के मुताबिक, भारत में PCOS का प्रभाव 3.7% से 22.5% महिलाओं में पाया जाता है और यह देश के अलग-अलग इलाकों में भिन्न हो सकता है. दुनिया भर में PCOS लगभग 8% से 13% महिलाओं को प्रभावित करता है जो अपनी रिप्रोडक्टिव ऐज में होती हैं.
PCOS और PCOD क्या हैं?
PCOD तब होता है जब महिला की ओवेरी में बहुत सारे एग्स बनते हैं, जो सही तरीके से डेवलप नहीं होते, जिससे सिस्ट बनते हैं और मेल हार्मोन का लेवल बढ़ता है. यह इर्रेगुलर पीरियड्स, ज्यादा ब्लीडिंग और पीरियड्स के दौरान दर्द का कारण बन सकता है.
PCOS से पीड़ित महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द, वजन बढ़ना, चेहरे या शरीर पर एक्स्ट्रा बाल उगना और कभी-कभी ओवेरी में सिस्ट बनने जैसे कई तरह के लक्षण हो सकते हैं. हालांकि, सभी महिलाओं में सिस्ट नहीं होते. PCOS मोटापे, हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज और हार्ट हेल्थ के बिगड़ने का कारण बनता है. यह इनफर्टिलिटी का मुख्य कारण भी है क्योंकि यह ओवेरी से एग्ज के निकलने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है.
पता लगने में होने वाली परेशानियां
बहुत सी महिलाएं यह नहीं जान पातीं कि उन्हें PCOS या PCOD है क्योंकि वे इसके लक्षणों पर ध्यान नहीं देती हैं. इनके ज्यादातर लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. समय पर पता न लगने की वजह से आगे चलकर यह समस्याएं गंभीर हो सकती हैं, जैसे इनफर्टिलिटी, डायबिटीज, मोटापा, मानसिक समस्याएं जैसे चिंता और डिप्रेशन भी हो सकते हैं.
2021 में हुई एक रिसर्च के अनुसार, लगभग 45% महिलाओं को इलाज शुरू करने के बाद भी PCOS के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं थी. कई महिलाओं को अलग-अलग डॉक्टर्स से भ्रमित करने वाली सलाह मिली, जिससे उनका डॉक्टर्स पर विश्वास कम हो गया है.
PCOS और PCOD को कैसे मैनेज करें?
PCOS और PCOD का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इन्हें समय रहते पहचान कर और लाइफस्टाइल में बदलाव करके आसानी से मैनेज किया जा सकता है. ये चीजें करके महिलाएं इन समस्याओं से निजात पा सकती हैं.
हेल्दी डाइट लें और रोजाना एक्सरसाइज करने से हार्मोनल बैलेंस में मदद मिलती है. चीनी और जंक फूड कम करने से ब्लड शुगर और इंसुलिन लेवल को कंट्रोल किया जा सकता है. योग और ध्यान जैसे उपाय स्ट्रेस कम करने में मदद करते हैं, जो हार्मोनल बदलाव को कंट्रोल करने में मददगार होते हैं. डॉक्टर यह भी सलाह देते हैं कि अगर महिलाएं 5-10% वजन कम कर सकें, तो उनके लक्षणों में सुधार हो सकता है और फर्टिलिटी रेट भी बढ़ सकता है.
मेडिकल ट्रीटमेंट:
कुछ दवाएं PCOS और PCOD के लक्षणों को कंट्रोल करने में मदद करती हैं.
1. इन दवाओं में गर्भनिरोधक गोलियां शामिल हैं, जो पीरियड्स को रेगुलर करती हैं और मेल हार्मोन लेवल को कम करती हैं.
2. एंटी-एंड्रोजन दवाएं चेहरे या शरीर पर एक्सट्रा बालों के डेवलप्मेंट को कम करती हैं.
3. अगर दवाएं असरदार नहीं होतीं, तो डॉक्टर फर्टिलिटी बढ़ाने में मदद के लिए सर्जरी (लैप्रोस्कोपिक ओवेरियन ड्रिलिंग) का सुझाव दे सकते हैं. इस ट्रीटमेंट को कराने में 20,000 रुपयचे से 50,000 रुपये तक का खर्चा आ सकता है. ये पैसे इलाज की जरूरतों के आधार पर बदल सकती है.
लॉन्गटर्म इफेक्ट्स
अगर PCOS और PCOD का सही तरीके से इलाज न किया जाए, तो ये गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं, जैसे टाइप 2 डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम्स और कैंसर. PCOS इनफर्टिलिटी का भी एक बड़ा कारण है. इसके अलावा, शारीरिक समस्याओं के अलावा महिलाओं को मानसिक समस्याएं जैसे कॉनफिडेंस की कमी, चिंता और डिप्रेशन का सामना भी कर सकती हैं.
रेगुलर ट्रीटमेंट से क्या होता है?
अक्सर महिलाएं सोशल स्टिग्मा के डर से अपनी हेल्थ के बारे में बात नहीं करतीं, जिससे उन्हें मदद नहीं मिल पाती. डॉक्टर्स का कहना है कि समय पर इन सभी चीजों का पता लगना बहुत जरूरी है. इसके लिए ब्लड शुगर टेस्ट, कोलेस्ट्रॉल टेस्ट और अल्ट्रासाउंड जैसे टेस्ट किए जा सकते हैं, जिससे PCOS और PCOD के लक्षण जल्दी पहचान में आ सकें.
PCOS-PCOD के बारे में बढ़ाएं जागरूकता
PCOS और PCOD से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका जागरूकता बढ़ाना है. परिवारों, स्कूलों और अस्पतालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे युवा महिलाओं को इन समस्याओं के लक्षण जल्दी पहचानने में मदद करें. उन्हें बिना किसी शर्म के मदद लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी हेल्थ प्रॉब्लम्स का समय रहते इलाज करवा सकें.