पिछले कई विधानसभा चुनावों से 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव एक मायने में अलग है. इस बार एनडीए और महागठबंधन दोनों ही खुल्लमखुल्ला ध्रुवीकरण का खेल खेलने की तैयारी में है. पिछले दिनों बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह की बयानबाजी की है उससे साफ जाहिर है कि पार्टी इस बार खुलकर हिंदू कार्ड खेलने की तैयारी में है.आरजेडी और कांग्रेस में इसमें पीछे नहीं हैं.मुस्लिम समुदाय को टिकट देने में जिस तरह महागठबंधन उदारता दिखाई है उसका साफ मतलब है कि वो भी चाहते हैं कि इस बार ध्रुवीकरण के आधार पर चुनाव लड़ा जाए. हालांकि दोनों ही गठबंधनों को इसका नुकसान हो सकता है. एनडीए 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में और 2021 के बंगाल विधानसभा चुनावों में ध्रुवीकरण की राजनीति का नुकसान देख चुकी है.इसके बावजूद 17 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के वोट का लालच से महागठबंधन ध्रुवीकरण की राजनीति करने से बच नहीं पा रही है.
जिस तरह महागठबंधन की राजनीति मुस्लिम मतदाताओं के चारों ओर केंद्रित होती दिख रही है, उसने यह बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह ध्रुवीकरण वास्तव में विपक्ष के लिए फायदेमंद होगा या अंततः इसका अप्रत्यक्ष लाभ NDA को मिलेगा. बिहार में राजनीति का इतिहास बताता है कि जब भी एक समुदाय का वोट एकतरफा किसी दल या गठबंधन की ओर गया है, तो उसके परिणाम स्वरूप दूसरे समुदायों ने एकजुट होकर उसके खिलाफ वोटिंग की है. यह केवल हिंदू-मुसलमानों के बीच ही नहीं है. यह हिंदू जातियों में भी है. यादवों का वोट जिस तरफ गिरता है ठीक उसके उलट अति पिछड़ी जातियां अपना वोट करती रही हैं.आइये देखते हैं कि बिहार की राजनीति में ध्रुवीकरण का फायदा किस गठबंधन को मिलता है.
1. नीतीश कुमार की सेक्युलर छवि को धक्का लगने से किसे फायदा?
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार लंबे समय तक सेक्युलर नेता के रूप में मुस्लिम समुदाय के बीच लोकप्रिय रहे हैं. 2005 से 2015 तक उनकी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाईं, जैसे वक्फ बोर्ड का गठन, कब्रिस्तानों की फेंसिंग और मदरसों में छात्रवृत्ति, जिससे जेडीयू को मुस्लिम वोटों का एक हिस्सा मिलता रहा. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री कैंडिडेट घोषित करने के विरोध में नीतीश कुमार ने 2013 में एनडीए छोड़कर मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी अलग किस्म की छवि बनाई थी. पर 2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी
2015 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन (आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस) के साथ गठबंधन ने मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण को मजबूत किया, और जेडीयू को 71 सीटें मिलीं, जिसमें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन हुआ। लेकिन 2017 में बीजेपी के साथ गठबंधन ने इस छवि को धक्का पहुंचाया। 2020 के चुनावों में जेडीयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी नहीं जीता.
यह विफलता मुस्लिम मतदाताओं में असंतोष का संकेत थी, क्योंकि एनडीए के तहत बीजेपी की हिंदुत्व एजेंडा ने नीतीश को 'बीजेपी का सहयोगी' बना दिया. 2024 में वक्फ संशोधन विधेयक पर जेडीयू का समर्थन इस छवि को पूरी तरह बदलने वाला साबित हुआ. जेडीयू के समर्थन के बाद पांच मुस्लिम नेताओं का पार्टी छोड़ना इसी का संकेत था.
फिलहाल जेडीयू को भी लग गया कि अब उन्हें मुस्लिम मतदाताओं का वोट नहीं मिलने वाला है. यही कारण है कि इस बार जनता दल यूनाइटेड ने केवल 4 टिकट ही मुसलमानों को दिया है. जाहिर है कि मुसलमानों में जेडीयू को लेकर दूरी हर रोज बढ रही है. जिसका फ आरजेडी और कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए ध्रुवीकरण बढ़ा है. तेजस्वी यादव भी खुलकर खेल रहे हैं . उन्होंने कहा, कि वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे.
2-मुस्लिम ध्रुवीकरण के जवाब में हिंदू एकीकरण
मुस्लिम ध्रुवीकरण के जवाब में बीजेपी ने हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने की रणनीति अपनाई है, जिसके तहत बिहार के 82% हिंदू आबादी को मोबलाइज करने का प्लान है. अयोध्या राम मंदिर के बाद अब सीता मंदिर की योजना इसी रणनीति का हिस्सा है. सीतामढ़ी के पुनाौरा धाम, जहां सीता का जन्म माना जाता है, उसे राम मंदिर की तर्ज पर विकसित करने का ऐलान किया गया है. अगस्त 2025 में गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिलान्यास भी कर दिया. 50 एकड़ में 882 करोड़ की परियोजना के साथ, जो रामायण सर्किट का हिस्सा है.
यह मिथिलांचल (79 विधान सभा सीटें) में हिंदुओं को एकजुट करने का प्रयास है, जहां यादव-ब्राह्मण-राजपूत जातियों का वर्चस्व है. एनडीए मुस्लिम ध्रुवीकरण के जवाब में 'घुसपैठिए' मुद्दे को उठा रहा है. बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों के बहाने बीजेपी सीमांचल में अवैध प्रवास का मुद्दे पर फोकस कर रही है. जहां मुस्लिम आबादी 68% तक है. चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) ने 68.5 लाख नाम काटे और 21.5 लाख नए जोड़े, जिसे विपक्ष 'मुस्लिम वोटरों को हटाने की साजिश' बता कर एनडीए के खिलाफ अपने वोटर्स को ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहा था.
दूसरी तरफ अमित शाह ने कहा कि एनडीए घुसपैठियों को बाहर करेगा.सीमांचल (किशनगंज, कटिहार) में यह मुद्दा हिंदू वोटों को एकजुट कर रहा है, जहां 2020 में एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीतीं थीं. पर बीजेपी की यहां सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि एआईएमआईएम इस बार यहां कितना खेल कर पाती है.
कहा जा रहा है कि एसआईआर से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में 20-30% नाम कटने की शिकायतें हैं, जो महागठबंधन के लिए नुकसान के समान है. लेकिन एनडीए का दावा है कि यह 'फर्जी वोट' हटाने से पारदर्शिता बढ़ेगी. यदि मुस्लिम वोट एनडीए के खिलाफ ध्रुवीकृत हो, तो हिंदू जाति से ऊपर उठकर वोटिंग कर सकते हैं . जाहिर है कि बीजेपी को फायदा होना तय है.
3-योगी और गिरिराज सिंह के बयान
जब एक पार्टी खुलकर किसी धर्म-समुदाय को नामक हराम कहती है या बोलती है कि उस पार्टी को उस समुदाय का वोट नहीं चाहिए, तो यह स्पष्ट ध्रुवीकरण वाली भाषा कही जा सकती है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और योगी आदित्यनाथ की बातें कुछ ऐसी ही हैं जो सीधे सीधे हिंदुओं को मोबलाइज करने वाली हैं.
योगी की सभाओं में 'बुलडोजर पॉलिसी' और 'राम-सीता' का जिक्र हिंदू मतदाताओं को लामबंद करना है. योगी ने दानापुर में कहा कि आरजेडी-कांग्रेस बुरका पॉलिटिक्स से बिहार को बर्बाद करेंगे.
गिरिराज सिंह ने एक रैली में कहा कि मुसलमान लाभ ले लेते हैं सभी केंद्रीय योजनाओं का, लेकिन BJP को वोट नहीं देते… ऐसे लोगों को ‘नामक हराम’ कहा जाता है. इस बयान में स्पष्ट ढंग से हिन्दू-मुसलमान का भेद उभरता है, और वोट बैंक की राजनीति के संदर्भ में सामाजिक विभाजन की भाषा देखने को मिलती है.
गिरिराज सिंह ने एक बार कहा कि हम सनातन धर्म के लोग … दुर्गा पूजा में अस्त्र-शस्त्र की पूजा करते हैं … हिंदुओं को उनके घरों में देवी-देवताओं के हाथों में अस्त्र-शस्त्र रखना चाहिए. इस तरह के बयान यह संकेत देते हैं कि हिन्दू धार्मिक प्रतीक और गतिविधियां चुनावी रणनीति का हिस्सा बन रही हैं.
4-मोदी के नाम पर हिंदू एकजुटता का दांव
हरियाणा , दिल्ली और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सघन चुनाव अभियान से खुद को दूर रखा. इन राज्यों के मुकाबले बिहार में पीएम मोदी ने पार्टी का मोर्चा खुद संभाल रखा है.
बिहार के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बिहार में करीब 15% मतदाता नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देते हैं, जो एनडीए का मजबूत आधार है. 2024 लोकसभा में मोदी की छवि ने एनडीए को 176 विधान सभा क्षेत्रों में बढ़त दिलाई थी.मोदी का नाम ही हिंदू एकीकरण को बढ़ावा देता है, खासकर ऊपरी जातियों और ईबीसी आदि में. यदि मुस्लिम ध्रुवीकरण महागठबंधन को मजबूत करे, तो मोदी का नाम हिंदुओं को जाति से ऊपर उठाकर एनडीए की ओर मोड़ने बहुत बड़ा कारक साबित हो सकता है.
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