बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने एक के बाद एक कई बड़े वादे किए हैं. सबसे ज्यादा तेजस्वी यादव के उस फैसले की चर्चा है जिसमें सरकार बनने के बाद महिलाओं के लिए माई-बहन मान योजना के तहत मकर संक्रांति (14 जनवरी) से सभी पात्र महिलाओं को एकमुश्त 30,000 रुपये की राशि देने का वादा किया गया है. जीविक दीदियों के फायदे की भी बात की है. इतना ही नहीं किसानों के लिए भी उन्होंने कई घोषणाएं कीं. उन्होंने वादा किया कि धान पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के अतिरिक्त 300 रुपये प्रति क्विंटल और गेहूं पर 400 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया जाएगा. इसके अलावा, किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली दी जाएगी और उनके बिजली बिल पूरी तरह माफ किए जाएंगे. सवाल उठता है कि क्या मेनिफेस्टो में वादों की कमी रह गई थी कि तेजस्वी को फिर से कई वादे करने पड़ गए?
1-वोटिंग से 2 दिन पहले का ड्रामा क्या कहता है?
आम तौर पर घोषणापत्र रिलीज के बाद नए वादे बहुत कम होते रहे हैं. पर वोटिंग के 3 दिन पहले तक कई एक्जिट पोल्स में महागठबंधन को 90-100 सीटें मिलती देख कर पार्टी चिंतित हो गई . इसके पीछे कारण यह बताया गया कि महिलाओं का 55% वोट NDA को जा रहा है. खासकर EBC और OBC महिलाओं का वोट भी एनडीए को मिलता दिख रहा है. तेजस्वी को 'लास्ट मिनट सर्ज' चाहिए था. 2020 में भी RJD ने अंतिम दिनों में '10 लाख नौकरियां' का वादा किया था, जो वायरल हुआ और उसका लाभ पार्टी को मिला था. 30,000 कैश बांटने का आंकड़ा जाहिर है अपील कर सकता है. दरअसल अमित शाह की 30 अक्टूबर की रैली में 'माई बहन' को 'मोदी की गारंटी' बताया गया. एनडीए महिलाओं की स्पेसफिक योजनाओं को लेकर लीड लेती दिख रही थी.
2-महिला मतदाता बना निर्णायक वर्ग
बिहार की राजनीति में पिछले डेढ़ दशक में महिलाएं निर्णायक मतदाता वर्ग बनकर उभरी हैं. नीतीश कुमार ने इस वर्ग को सबसे पहले गंभीरता से समझा. यहां तक पूरे देश में वे पहले मुख्यमंत्री थे जिसने महिलाओं को अपना वोट बैंक बनाया. मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, आरक्षण में महिलाओं की हिस्सेदारी, आंगनबाड़ी कर्मियों और जीविका समूहों के लिए योजनाएं जैसी पहलों ने महिलाओं को सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त किया.
हाल के वर्षों में मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना (महिलाओं को 10,000 रुपये की सहायता) ने नीतीश की लोकप्रियता को ग्रामीण महिला वर्ग में फिर मजबूत किया. 2024 के लोकसभा चुनावों और 2025 के विधानसभा चुनावों में सर्वेक्षणों में यह साफ दिखा कि महिला मतदाता 5 से 7 प्रतिशत तक अधिक मतदान करती हैं, और उनका झुकाव स्थिर शासन और सीधी आर्थिक मदद देने वाली सरकार की ओर होता है.यह केवल बिहार का ही नहीं पूरे देश की महिलाओं का रुख है.
जाहिर है कि तेजस्वी यादव, जो युवाओं और बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर आगे बढ़े थे, उन्हें महसूस हुआ कि केवल रोजगार की राजनीति पर्याप्त नहीं है. उन्हें महिलाओं के बीच सीधा भावनात्मक और आर्थिक जुड़ाव बनाना होगा.उसके बाद इस तरह के फैसले लिए गए.
तेजस्वी यादव यह भी समझ गए हैं कि बिहार की महिलाएं अब केवल जाति या पति के प्रभाव से नहीं, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता और सुरक्षा के आधार पर वोट करती हैं. महिलाओं को सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ अब नकद लाभ और आत्मनिर्भरता की भी उम्मीद होती है.
2020 और 2021 के बाद से बिहार के राजनीतिक सर्वे में यह स्पष्ट दिखा है कि महिलाओं में नीतीश कुमार की स्वीकार्यता किसी भी नेता से अधिक रही है.तेजस्वी का यह ऐलान महिलाओं के बीच ऐसा संदेश देने की कोशिश है कि महिलाओं का असली हितैषी अब RJD है, न कि JDU.
3- NDA की ‘महिला स्कीम पॉलिटिक्स’ का जवाब
इस घोषणा के पीछे सबसे बड़ा कारण था एनडीए, खासकर नीतीश कुमार की योजनाओं का दबदबा. मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत नीतीश सरकार पहले ही 10,000 रुपये की सहायता दे चुकी थी, और इसका लाभ लाखों महिलाओं तक पहुंच चुका है.
यह योजना ग्रामीण इलाकों में खासकर जीविका समूहों के माध्यम से इतनी लोकप्रिय हो गई कि महागठबंधन के कार्यकर्ताओं ने खुद रिपोर्ट दी कि महिलाओं में नीतीश को लेकर सकारात्मक रुझान है. बीजेपी ने अपने प्रचार में महिलाओं के लिए दोहरी सुरक्षा ,मोदी की केंद्र योजनाएं और नीतीश की राज्य योजनाएं का नारा जोर-शोर से चलाया. इसलिए महागठबंधन को यह अहसास हुआ कि अगर उन्होंने महिला मतदाताओं को सीधी आर्थिक प्रोत्साहन योजना से नहीं जोड़ा, तो एनडीए को निर्णायक बढ़त मिल जाएगी.
तेजस्वी का माई बहन योजना के तहत 30000 रुपये एक निश्चित तिथि (14 जनवरी ) तक पहुंचाने का ऐलान इसी दबाव में आया. तेजस्वी का यह वोटिंग से पहले आखिरी दांव है.
4-वोटिंग से दो दिन पहले क्यों?
तेजस्वी यादव ने यह घोषणा वोटिंग से सिर्फ दो दिन पहले की है जाहिर है कि यह चुनावी रणनीति की दृष्टि से सोची-समझी चाल थी. आरजेडी को उम्मीद है कि इतनी नजदीकी घोषणा से एनडीए के पास इस वादे की आलोचना या खंडन का पर्याप्त समय नहीं मिलेगा.
आरजेडी की योजना है कि बिहार के ग्रामीण इलाकों में दो दिन में इस सूचना को हर पंचायत और गांव तक पहुंचा दिए जाए. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना रहा है कि अंतिम 48 घंटे मतदाता के निर्णय को अंतिम रूप देने में निर्णायक होते हैं. तेजस्वी चाहते हैं कि महिलाओं को लगे कि आरजेडी के जीतते ही उन्हें तुरंत 30,000 रुपये मिलेंगे. जाहिर है कि यह रणनीति कारगर हो सकती है.
5. आर्थिक गणित बनाम राजनीतिक प्रतीक
अधिकतर अर्थशास्त्री यह सवाल उठाते रहे हैं कि बिहार जैसी कमजोर वित्तीय स्थिति वाले राज्य में हर महिला को 30,000 रुपये देना कितना मुश्किल होगा. लेकिन तेजस्वी यादव का चुनाव प्रचार के पहले दिन से उद्देश्य आर्थिक न होकर किसी तरह राजनीतिक लाभ लेना रहा है.
बिहार में 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या लगभग 4.8 करोड़ है. यदि केवल गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को यह लाभ दिया जाए, तो यह संख्या करीब 1.5 से 2 करोड़ होती है. हर महिला को 30,000 देने का अर्थ है कि लगभग 60,000 करोड़ का बजट तैयार करना, जो बिहार के वार्षिक बजट का लगभग 20% है. यानी व्यावहारिक रूप से यह योजना फिलहाल लागू करना कठिन है. लेकिन चुनावी संदर्भ में यह संदेश देने के लिए पर्याप्त है कि महागठबंधन भी महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में किसी भी तरह नीतीश कुमार से पीछे नहीं है.
6. जाति समीकरण के साथ महिलाओं के समर्थन जरूरी
महागठबंधन की पारंपरिक ताकत हमेशा MY समीकरण ही रहा है.लेकिन इस समीकरण की सीमा कुस 35–37% वोट तक ही सीमित रह जाती है. इतने वोट से सरकार बनाने की उम्मीद तो नहीं के बराबर ही है. महिलाओं को बिना अपने साथ मिलाए तेजस्वी इस सीमा को 45% से ऊपर नहीं ले जा सकते हैं. तेजस्वी को यादव और मुस्लिम वर्ग की महिलाओं का समर्थन तो स्वाभाविक रूप से मिल रहा है. पर इस योजना का उद्देश्य EBC, दलित, कोइरी-कुशवाहा और महादलित महिलाओं को जोड़ना भी है.
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