'मेरा नाम अर्पित सिंह है, लेकिन मैं अकेला हूं. बाकी सब भाग गए हैं. यह कहना है उस असली अर्पित सिंह का, जिसके नाम पर यूपी के अलग-अलग जिलों में एक्स-रे टेक्नीशियन की तैनाती हो चुकी थी और तीन करोड़ से अधिक सैलरी निकाली जा चुकी है. टेक्नीशियन की भर्ती में रामपुर, बलरामपुर, बांदा, फर्रुखाबाद, शामली, और अमरोहा के सरकारी दस्तावेजों पर नाम अर्पित सिंह था लेकिन जब जांच का शिकंजा कसने लगा, तो फर्जीवाड़े की पोल खुल गई और हाथरस वाले असली अर्पित को छोड़कर बाकी सब भाग गए.
मुझे मीडिया से पता चला कि मैं छह जगह नौकरी कर रहा हूं
असली अर्पित बताते हैं कि पांच सितंबर को जब मीडिया में खबर आई तो मुझे खुद पता चला कि मेरे नाम से छह जिलों में नौकरी हो रही है. मैं तो हैरान रह गया. तुरंत अपने अधिकारियों को जानकारी दी. मामला लखनऊ पहुंचा और फिर मुझे और बाकी छह लोगों को वहां बुलाया गया. लेकिन लखनऊ पहुंचते ही सच सामने आ गया. जैसे ही कागज वेरिफिकेशन शुरू हुआ, बाकी सभी लड़के भाग खड़े हुए. मैं अकेला खड़ा रहा. उसी दिन मुझे समझ आ गया कि इस पूरे खेल में मेरा नाम इस्तेमाल हुआ है.
मेरे नाम-पिता का नाम इस्तेमाल, बाकी सब अलग
अर्पित की मानें तो उनके असली दस्तावेज बिल्कुल सही हैं. वह कहते हैं कि मेरी नियुक्ति मई में हुई थी. बाकी लोगों की जुलाई-अगस्त में. उनके आधार नंबर अलग थे, कागज अलग थे. बस नाम और पिता का नाम मेरे जैसा डाल दिया गया. इसी से ये पूरा फर्जीवाड़ा रचा गया.
सिर्फ मैं ही नहीं, अंकुर के नाम से भी दो लोग नौकरी कर रहे थे
असली अर्पित कहते हैं कि ये फर्जीवाड़ा सिर्फ मेरे नाम से नहीं हुआ. एक अंकुर नाम का लड़का है, उसके नाम से भी दो जिलों में पोस्टिंग निकली. यानी यह नेटवर्क बड़ा है और इसके पीछे किसी संगठित गिरोह का हाथ साफ झलकता है.
मैं निर्दोष हूं, मेरी कोई गलती नहीं
असली अर्पित का कहना है कि मैं अकेला हूं जो जांच में खड़ा रहा. बाकी सब भाग गए. मैंने खुद अधिकारियों को जानकारी दी. मेरी नियुक्ति साफ और वैध है. इस पूरे फर्जीवाड़े में मेरी कोई गलती नहीं.
रामपुर वाला अर्पित गायब
रामपुर की कहानी तो और भी फिल्मी है. 2016 में बिलासपुर तहसील के पीएचसी पर पोस्टिंग हुई, 2023 तक वहीं ड्यूटी करता रहा, फिर रामपुर के टीबी विभाग में आ गया. लेकिन 1 सितंबर से अचानक गायब हुआ. न घर पर मौजूद, न फोन चालू. सीएमओ डॉ. दीपा सिंह कहती हैं कि 6 सितंबर को शासन से आदेश आया. हमने पूरी रिपोर्ट भेज दी. एफआईआर दर्ज हो गई है. आरोपी फरार है."
बांदा: 7 महीने तनख्वाह लेने के बाद फरार
बांदा के नरैनी सीएचसी में भी यही कहानी. यहां भी एक अर्पित ने 7-8 महीने नौकरी की, वेतन उठाया और अचानक लापता हो गया. सीएमओ ने जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी है.
बलरामपुर: बैंक खाता सीज
बलरामपुर के पचपेड़वा सीएचसी में जब अर्पित के नाम का मामला सामने आया तो सीएमओ डॉ. मुकेश रस्तोगी ने तुरंत एक्शन लिया. हमने उसका पूरा सेवा अभिलेख मंगवाया, बैंक खाता सीज करवाया और रिपोर्ट शासन को भेज दी. फिलहाल आरोपी फोन बंद करके फरार है.
फर्रुखाबाद, अमरोहा और शामली वाले भी भाग गए
फर्रुखाबाद, अमरोहा और शामली में भी एक्स-रे टेक्नीशियन बने ‘अर्पित’ अचानक से लापता हो गए. अमरोहा वाला 2016 से 2022 तक सेवा में रहा और फिर गायब हो गया.
राजनीति भी गरमाई
मामला खुलने के बाद राजनीति भी तेज हो गई है. योगी सरकार का आरोप है कि यह फर्जी नियुक्तियां पिछली सरकारों के समय हुईं. विपक्ष का कहना है कि मौजूदा सरकार में भी जांच तंत्र फेल है.
अब बड़ा सवाल
- एक ही नाम से अलग-अलग जिलों में नियुक्ति आखिर कैसे हो गई?
- वेरिफिकेशन की प्रक्रिया में इतनी बड़ी चूक किसकी जिम्मेदारी है?
- क्या इसमें विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत है?
(साथ में आमिर खान, सिद्धार्थ गुप्ता, बीएस आर्या, शरद मलिक, फिरोज खान, सुजीत शर्मा का इनपुट)
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