संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने बुधवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि जलवायु परिवर्तन एक 'तत्काल और अस्तित्व के लिए खतरा' है और देशों को साझेदारी में काम करते हुए उत्सर्जन को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे. अदालत की यह सलाह भविष्य में जलवायु से जुड़ी कानूनी लड़ाइयों की दिशा तय कर सकती है.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, ICJ ने यह भी कहा कि अगर कोई देश जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करता, तो दूसरे प्रभावित देश उस पर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं. इस फैसले का पर्यावरण संगठनों ने जोरदार स्वागत किया है. कई कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि यह उन छोटे द्वीपीय और तटीय देशों की बड़ी जीत है जिन्होंने अदालत से यह साफ करने की मांग की थी कि जलवायु परिवर्तन को लेकर देशों की कानूनी जिम्मेदारियां क्या हैं.
कोर्ट ने क्या कहा?
जज यूजी इवसावा ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'देशों को जलवायु समझौतों के तहत तय की गई कड़ी जिम्मेदारियों का पालन करना होगा, वरना यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाएगा.' उन्होंने कहा कि 'राज्यों को मिलकर उत्सर्जन कम करने के ठोस लक्ष्य हासिल करने चाहिए.'
जज ने यह भी कहा कि हर देश की राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं महत्वाकांक्षी होनी चाहिए, ताकि वे 2015 के पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा कर सकें, जिनका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखना है.
'वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रयास से ही निकलेगा समाधान'
ICJ ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत 'स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण का अधिकार सभी मानवाधिकारों की नींव है.' अपने दो घंटे लंबे फैसले में जज इवसावा ने कहा कि 'ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन मानव गतिविधियों से हो रहा है और यह किसी एक देश तक सीमित नहीं है. इसलिए समाधान भी वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रयास से ही संभव है.
उन्होंने कहा कि धनी और औद्योगिक देश, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से सबसे ज्यादा प्रदूषण किया है, उन्हें इस संकट के समाधान की जिम्मेदारी सबसे पहले लेनी चाहिए. हालांकि ICJ की यह सलाह गैर-बाध्यकारी (non-binding) है, लेकिन इसका कानूनी और राजनीतिक असर काफी बड़ा होगा. विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में होने वाले जलवायु मुकदमे इस फैसले को नजरअंदाज नहीं कर सकते.
दो सवाल, जिनके जवाब में अदालत ने सुनाया फैसला
अदालत से दो सवालों पर राय मांगी गई थी. पहला- अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत देशों की जलवायु को बचाने की क्या जिम्मेदारियां हैं? दूसरा- अगर कोई देश जलवायु को नुकसान पहुंचाता है, तो उसके कानूनी परिणाम क्या होंगे? धनी देशों ने अदालत से कहा कि उनकी जिम्मेदारियां पहले से मौजूद जलवायु संधियों जैसे पेरिस समझौते के अनुसार तय होनी चाहिए, जो कि बाध्यकारी नहीं हैं.
वहीं, विकासशील और छोटे द्वीपीय देशों ने अदालत से कठोर कानूनी जिम्मेदारियों और वित्तीय सहायता की मांग की. छोटे देशों ने यह मामला इसलिए उठाया क्योंकि 2015 के पेरिस समझौते के बावजूद दुनिया में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है.
UN की रिपोर्ट दे चुकी है चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि अगर मौजूदा जलवायु नीतियां जारी रहीं, तो 2100 तक धरती का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ सकता है, जो बेहद खतरनाक है. अब तक करीब 60 देशों में 3,000 से ज्यादा जलवायु से जुड़े मुकदमे दर्ज हो चुके हैं, और यह फैसला ऐसे मुकदमों को और बल देगा.
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