भारत में अब कई महिलाएं 30 के आखिर या 40 की शुरुआत में ही पेरिमेनोपॉज की स्थिति में पहुंच रही हैं. ये मेनोपॉज से पहले का वो समय है जब शरीर में हार्मोनल उतार-चढ़ाव जल्दी शुरू हो जाता है. डॉक्टर्स के मुताबिक पहले ये स्थिति 45-50 की उम्र में आती थी, लेकिन अब ये घटकर 35-40 तक आ गई है.
इसकी वजह है लगातार बढ़ता तनाव, नींद की कमी, ज्यादा देर बैठकर रहने वाली लाइफस्टाइल, पौष्टिक आहार की कमी, धूम्रपान और PCOS जैसी हार्मोनल बीमारियों का इलाज न करवाना. साथ ही, पर्यावरण में बढ़ते टॉक्सिन्स और मोटापे के मामले भी इस समय से पहले आने वाले मेनोपॉज के ट्रेंड को बढ़ा रहे हैं. वर्ल्ड मेनोपॉज से पहले मारेन्गो एशिया हॉस्पिटल फरीदाबाद की स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. श्वेता मेंदीरत्ता ने पेरिमेनोपॉज को लेकर जागरूक किया.
मेनोपॉज जल्दी, जागरूकता कम
डॉ. श्वेता ने बताया कि भारत में लगभग 15 करोड़ महिलाएं 45 वर्ष से अधिक उम्र की हैं, जिनमें से ज्यादातर या तो मेनोपॉज की ओर बढ़ रही हैं या वो इससे गुजर चुकी हैं. औसतन भारतीय महिलाओं में मेनोपॉज की उम्र 46-47 साल होती है, जो पश्चिमी देशों की महिलाओं से कुछ साल पहले है. इसके बावजूद जागरूकता बहुत कम है. ज्यादातर महिलाएं तब तक डॉक्टर के पास नहीं जातीं जब तक लक्षण उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ को गंभीर रूप से प्रभावित न करने लगें.
लक्षण पहले से ज्यादा तीव्र और...
उन्होंने बताया कि हॉट फ्लैशेज (अचानक गर्मी लगना), अनियमित पीरियड्स, मूड स्विंग्स, वेजाइनल ड्रायनेस, नींद की गड़बड़ी और वजन बढ़ना आदि आम लक्षण हैं. लेकिन अब ये लक्षण पहले से ज्यादा लंबे और तीव्र हो गए हैं. ये रूटीन के कामकाज और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर असर डालते हैं. आज की महिलाएं परिवार और प्रोफेशन जिम्मेदारी दोनों संभाल रही हैं, जिससे तनाव और हार्मोनल असंतुलन बढ़ता है.
मेनोपॉज के बाद बढ़ता है कई बीमारियों का खतरा
डॉ. श्वेता ने चेताया कि मेनोपॉज के बाद ऑस्टियोपोरोसिस, हार्ट डिजीज, थायरॉयड इम्बैलेंस और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है. शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर घटने से सिर्फ प्रजनन तंत्र ही नहीं, बल्कि हड्डियां, मेटाबॉलिज्म और हृदय-तंत्र भी प्रभावित होते हैं. उन्होंने कहा कि मेनोपॉज सिर्फ एक शारीरिक नहीं बल्कि भावनात्मक परिवर्तन भी है. महिलाएं इसे अक्सर उम्र का असर मानकर नजरअंदाज कर देती हैं और डॉक्टर से सलाह नहीं लेतीं, जिससे बाद में दिक्कतें बढ़ जाती हैं.
बढ़ सकता है बोन लॉस और डिप्रेशन का रिस्क
डॉ श्वेता आगे बताती हैं कि अगर मेनोपॉज से जुड़े लक्षणों को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो हड्डियां कमजोर होना, फ्रैक्चर का खतरा, दिल की बीमारी, लगातार थकान और सेक्सुअल हेल्थ की दिक्कतें बढ़ सकती हैं. नींद की कमी और चिंता (Anxiety) से कॉग्निटिव डिक्लाइन यानी याददाश्त कम होने का खतरा भी बढ़ जाता है.
डॉ. श्वेता का सुझाव है कि महिलाएं 35 साल की उम्र के बाद ही अपने हार्मोनल बदलावों पर ध्यान दें. अगर पीरियड्स, एनर्जी लेवल या मूड में बदलाव दिखे तो थायरॉयड, विटामिन D और लिपिड प्रोफाइल जैसे टेस्ट जरूर कराएं.
अब भी टैबू है ‘मेनोपॉज’ शब्द
भारत में अब भी मेनोपॉज पर खुलकर बात नहीं होती. कई महिलाएं इसे 'औरतपन का अंत' मान लेती हैं, जिससे इस पर चुप्पी और शर्म का माहौल बन जाता है. डॉ. श्वेता कहती हैं कि पेरिमेनोपॉज के बारे में जागरूकता बेहद कम है. जैसे लोग पीरियड्स या प्रेग्नेंसी पर सहज होकर बात करने लगे हैं, वैसे ही मेनोपॉज पर भी खुलकर बातचीत होनी चाहिए.
मेनोपॉज कोई बीमारी नहीं, नेचुरल प्रोसेस है
उन्होंने कहा कि मेनोपॉज को लेकर कई मिथक हैं जैसे ये कोई बीमारी है. ये भी मिथक है कि हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (HRT) सभी के लिए असुरक्षित है, या मेनोपॉज के साथ वजन बढ़ना और मूड स्विंग्स होना तय है. असल में, मेनोपॉज जीवन का एक प्राकृतिक चरण है. सही गाइडेंस, लाइफस्टाइल में बदलाव, जरूरी सप्लीमेंट्स और कुछ मामलों में शॉर्ट-टर्म HRT से लक्षणों को सुरक्षित और असरदार तरीके से संभाला जा सकता है.”
ये हैं बचाव के तरीके
डॉ. श्वेता कहती हैं कि मेनोपॉज को सहज रूप से संभालने के लिए समग्र (होलिस्टिक) तरीका सबसे बेहतर है. संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, योग और माइंडफुलनेस का अभ्यास बहुत मदद करता है. दूसरा चरण है कि कैल्शियम, विटामिन D, ओमेगा-3 और फाइटोएस्ट्रोजेन्स (जैसे सोया) से भरपूर भोजन लिए जाएं.
जो महिलाएं नियमित रूप से एक्सरसाइज करती हैं, फाइबरयुक्त खाना खाती हैं और 7 से 8 घंटे की नींद लेती हैं, उन्हें मेनोपॉज के लक्षण कम महसूस होते हैं और वे लंबे समय तक स्वस्थ रहती हैं. इसलिए लाइफस्टाइल के इस चरण को भी ध्यान रखना चाहिए.
HRT पर फैली गलतफहमी दूर करें
डॉ. श्वेता मेंदीरत्ता ने कहा कि HRT अगर डॉक्टर की निगरानी में दी जाए तो बिल्कुल सुरक्षित और असरदार है. ये खास तौर पर उन महिलाओं के लिए मददगार है जिन्हें बहुत ज्यादा हॉट फ्लैशेज, नींद की समस्या या हड्डियों की कमजोरी है. हर महिला को इसकी जरूरत नहीं होती, लेकिन जिनको होती है, उनके जीवन की गुणवत्ता में यह बड़ा सुधार ला सकती है.
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