किसी भी मां-बाप के लिए संतान उसकी जान से बढ़कर होती है, उसे खरोंच भी आ जाए तो मां-बाप के हलक से निवाला नीचे नहीं उतरता. लेकिन जरा सोचिए वही मां-बाप रोज अपने जिगर के टुकड़ों को गहरे पानी और उफान मारती नदी पार कर स्कूल जाते कैसे देखते होंगे. खबर मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले से है. जहां स्कूल जाने के लिए बच्चों को मोटरबोट का सहारा है, लेकिन गहरे पानी का डर ऐसा कि स्कूल जब बच्चों को इस वजह से दाखिला देने से मना करता है, तो यही माता-पिता बच्चों की पढ़ाई के लिए स्टांप पेपर पर लिखित शपथ पत्र देकर जिम्मेदारी लेते हैं कि नदी पार करने पर अगर कोई हादसा हुआ तो जिम्मेदारी उनकी ही होगी.
दरअसल, मंदसौर के अंतरिखुर्द गांव में 8वीं के बाद स्कूल नहीं है. एक नजदीकी स्कूल 15-17 किमी दूर है, जहां माता-पिता बच्चों को नहीं भेजना चाहते. जबकि पड़ोसी जिले नीमच के आंतरीबुजुर्ग में स्कूल नदी पार करके सिर्फ 2.5 किमी दूर पड़ता है, इसलिए बच्चे स्टीमर बोट से उफनती नदी पार करते हैं. यहां बारिश में रेतम नदी, जिसमें चंबल डैम का बैकवाटर भी शामिल है, उफान पर रहती है.
अभिभावकों का कहना है, ''हमने भी यहीं पढ़ाई की थी. पहले नाव से जाते थे. सरकार को अब पुल बनाना चाहिए.'' वे स्टांप पेपर पर लिखकर देते हैं कि नदी पार करने की जिम्मेदारी उनकी है.
स्कूल प्रिंसिपल युवराज चंदेल बताते हैं कि बच्चे पहले से नाव से आ रहे हैं. मना करने पर अभिभावक स्टांप पेपर पर लिखित शपथ पत्र देते हैं, जिससे स्कूल जिम्मेदारी से बच जाता है.
स्थानीय विधायक माधव मारु ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन यादव और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा से पुल निर्माण की मांग की है. पुल बनने से मंदसौर और नीमच जिले जुड़ेंगे, बच्चों को बेहतर स्कूल मिलेगा और दूरी कम होगी.
प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग ने 'आजतक' से कहा, ''मामले की जांच होगी. फिजिबिलिटी के आधार पर पुल बनाया जाएगा.''
बहरहाल, शिक्षा पाने का अधिकार हर बच्चे का है. लेकिन जब यह अधिकार बच्चों की जान दांव पर लगाकर हासिल करना पड़े, तो सवाल सिर्फ अभिभावकों से नहीं, बल्कि सरकार और व्यवस्था से भी होना चाहिए. मंदसौर और नीमच को जोड़ने वाला पुल बनेगा तो न केवल बच्चों की राह आसान होगी, बल्कि दो जिलों का विकास भी तेजी से होगा. सवाल यह है कि कब तक मासूमों के भविष्य की नाव ऐसे ही उफनती नदी के सहारे चलेगी?
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