संस्कृत भाषा में एक सूक्ति है, 'शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम्'. यानी कि शरीर ही सभी प्रकार के धर्म करने का माध्यम है. इसी बात को और अधिक विस्तार तरीके से समझाते हुए एक श्लोक में कहा गया है कि यदि धन चला गया तो समझिए कि कुछ नहीं गया, यदि स्वास्थ्य चला गया तो समझिए कि आधा धन चला गया, लेकिन अगर धर्म और चरित्र चला गया तो समझिए सबकुछ चला गया. इस श्लोक में धन सिर्फ रुपये-पैसे को नहीं कहा जा रहा है, बल्कि स्वास्थ्य और चरित्र यानी आचरण को भी सबसे बड़ा धन बताया जा रहा है.
अमरता के वरदान का दिन है धनतेरस
सनातन परंपरा में सृष्टि के निर्माण के साथ ही मानव जीवन के लिए जरूरी उन्नत विचार स्थापित हैं. समय-समय पर इन्हीं विचारों को याद दिलाने और समाज में इनकी स्थापना बनाए रखने के लिए त्योहारों-पर्वों की परंपरा विकसित की गई. इन परंपराओं का सबसे बड़ा केंद्र है, दीपावली- प्रकाश का पर्व. यह पर्व सिर्फ बाहरी उजाले का पर्व नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना को भी जगाने का पर्व है.
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से इसकी शुरुआत हो जाती है, जिसे कि धनत्रयोदशी और धनतेरस भी कहते हैं. आयुर्वेद में अमरता का वरदान देने वाले भगवान धन्वंतरि के नाम पर यह दिन धनतेरस कहलाया, लेकिन उनके नाम की शुरुआत में 'धन' शब्द होने से यह पर्व केवल धन को समर्पित रह गया है.
शुद्धिकरण का दिन भी है दिवाली का पहला दिन
असल में धनतेरस, या धन त्रयोदशी सिर्फ धन के संग्रह का पर्व या उत्सव नहीं है, बल्कि यह दिन समृद्धि और भाग्य को बढ़ावा देने का एक उत्सव है, देवी लक्ष्मी को इसके प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है और कुबेर इसके प्रधान देवता हैं और धन्वंतरि जो कि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे वह भी इस तिथि के देवता हैं. धनतेरस शारीरिक, वैचारिक और मानसिक शुद्धिकरण का दिन है.
इस दिन देवी लक्ष्मी के साथ धन्वंतरी की भी पूजा की जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, धन्वंतरी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए थे. उनके पास आयुर्वेद की पवित्र पुस्तक और अमृत से भरा कलश था, अमृत वह पेय है जो एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी मिश्रण है और अमरता प्रदान करता है. इस प्रकार धन्वंतरी को देवताओं का वैद्य माना जाता है.
दक्षिण भारत की स्वास्थ्य परंपरा
भारत के दक्षिण में, विशेष रूप से तमिलनाडु में, नरक चतुर्दशी की पूर्व संध्या पर, या धन्वंतरी त्रयोदशी पर, ब्राह्मण महिलाएं "मरुंधु" बनाती हैं, जिसका अर्थ है दवा. नरक चतुर्दशी पर, प्रार्थना के दौरान मरुंधु अर्पित किया जाता है और सूर्योदय से पहले सुबह के समय खाया जाता है. मरुंधु की रेसिपी वास्तव में परिवारों से बेटियों और बहुओं को अक्सर सौंपी जाती हैं.
मरुंधु को त्रिदोषों के कारण शरीर में असंतुलन को ठीक करने के लिए लिया जाता है. हालांकि धनतेरस की उत्पत्ति से जुड़ी ढेरों कथाएं मिलती हैं, जो लोक मान्यताओं पर हावी हैं. दक्षिण में यह मान्यता भी हावी है कि महादेव शिव ने धनतेरस के ही दिन वैद्यनाथ अवतार लिया था, इसलिए वैद्यों के लिए यह दिन बहुत खास है और शैव परंपरा इसे उत्साह के साथ मनाती है.
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