दीपावली के अवसर पर हर घर में मां लक्ष्मी की पूजा होती है. माना जाता है कि उनकी कृपा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है, लेकिन हर बार दिवाली के मौके पर ये सवाल बड़ा हो जाता है कि आखिर देवी की किस तरह की प्रतिमा पूजा के ली जानी चाहिए. असल में कई जगहों पर इस तरह बताया जाता है कि देवी की उल्लू वाहन वाली प्रतिमा नहीं लेनी चाहिए, या फिर उनकी खड़ी अवस्था में प्रतिमा नहीं लेनी चाहिए. ऐसी तमाम बातें दिवाली पूजा से पहले कन्फ्यूजन पैदा करती हैं.
बात ये है कि देवी का कोई भी स्वरूप गलत या अशुभ नहीं है, बल्कि देवी के हर स्वरूप के साथ एक रहस्यमय प्रतीक जुड़ा हुआ है. जब आप पूजा करने जाते हैं तो आपको अपनी इच्छा और मनोकामना का ध्यान करना चाहिए और कामना की प्रवृत्ति के अनुसार देवी की प्रतिमा का चुनाव करना चाहिए. देवी लक्ष्मी सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी तीनों ही गुणों की प्रधान देवी हैं, इसलिए उनका स्वरूप हर गुण और हर कामना के अनुसार अलग हो जाता है.
मां लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूप
मां लक्ष्मी के स्वरूप और उनके साथ जुड़े प्रतीकों जैसे हाथी, उल्लू और कमल के पीछे गहरी धार्मिक और दार्शनिक व्याख्याएं छिपी हैं. सनातन परंपरा शुक्रवार का दिन सभी देवियों को समर्पित माना गया है. विशेष रूप से इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. शास्त्रों के अनुसार, शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की उपासना करने से घर में सौभाग्य और सुख-सुविधा की वृद्धि होती है. हर शुक्रवार को देवी की आराधना करने से घर में कभी दरिद्रता नहीं ठहरती.
लेकिन, शुक्रवार के अलावा दिवाली का दिन देवी लक्ष्मी की पूजा का सबसे बड़ा दिन होता है. इस दिन देवी की पूजा उनके संपूर्ण स्वरूप में करते हैं. जिनमें खुद देवी की मौजूदगी, उनके वाहन, उनके पुत्र के रूप में सिद्ध गणपति भी साथ होते हैं. मां लक्ष्मी का एक प्रसिद्ध रूप है गजलक्ष्मी. इस स्वरूप में देवी के दोनों ओर दो हाथी खड़े रहते हैं, जो अपनी सूंड से जल बरसाते हैं.
हाथी यहां केवल पशु नहीं, बल्कि 'जल और जीवन' के प्रतीक हैं. हाथी निरंतरता के साथ अचल सामर्थ्य के भी प्रतीक हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि लक्ष्मी जी का संबंध जल से है, क्योंकि जल ही कृषि, जीवन और संपन्नता का मूल है. हाथी के द्वारा की गई जल वर्षा 'वर्षा का प्रतीक' यानी सुख का प्रतीक माना गया है.
इसलिए मां लक्ष्मी के साथ हाथियों की उपस्थिति 'संपन्नता, वर्षा और उर्वरता' को दर्शाती है. यानी जिस घर में गजलक्ष्मी की पूजा होती है, वहां धन और समृद्धि की वर्षा होती है.
तो अगर आपकी कामना है कि आप माता से स्थिर संपन्नता चाहते हैं, स्त्रियां संतान चाहती हैं और वंश वृद्धि की चाहत है तो दिवाली के दिन गजलक्ष्मी की पूजा करें. यह बहुत सौभाग्य देने वाली और शुभ-लाभ देने वाली प्रतिमा होती है और देवी की इस प्रतिमा की स्थापना भर से एक सकारात्मक प्रभाव बनने लगता है.
हाथी अपनी सूंड से जल क्यों बरसाते हैं?
गजलक्ष्मी के चित्रों और मूर्तियों में हाथी अक्सर अपनी सूंड से जल की धार बरसाते हुए दिखाए जाते हैं. यह दृश्य केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि **अनंत धन और समृद्धि के प्रवाह का प्रतीक है. सूंड से बरसता जल दर्शाता है कि धन और वैभव कभी रुकना नहीं चाहिए, बल्कि जीवन में निरंतर प्रवाहित होना चाहिए. मां लक्ष्मी को समृद्धि की देवी माना गया है, इसलिए उनका यह स्वरूप धन की निरंतरता और पवित्रता दोनों को सामने रखता है.
लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू क्यों है? क्या उल्लू वाली प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए?
आम धारणा है कि मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू है. यह प्रतीकात्मक है. उल्लू को अंधकार में देखने वाला प्राणी कहा जाता है. इसका अर्थ यह है कि मां लक्ष्मी अपने भक्तों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती हैं. उल्लू सजगता, विवेक और स्थिरता का भी प्रतीक है. यह संदेश देता है कि धन प्राप्त करना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही जरूरी है उसका सदुपयोग और संतुलन बनाए रखना.
लक्ष्मी जी की बड़ी बहन ‘अलक्ष्मी’ का रहस्य
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि मां लक्ष्मी की एक बड़ी बहन ‘अलक्ष्मी’ भी हैं. कहा जाता है कि जहां केवल लक्ष्मी का वास होता है, वहां धन तो आता है, लेकिन शांति नहीं रहती, इसीलिए मां लक्ष्मी की पूजा के साथ भगवान विष्णु की उपासना भी अनिवार्य मानी गई है. जहां विष्णु जी का वास होता है, वहां संतुलन, धर्म और मर्यादा बनी रहती है और यही सुख-समृद्धि का वास्तविक आधार है. इसलिए भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में ऐसी प्रतिमा लानी चाहिए जिसमें गरुण उनके वाहन के तौर पर स्थापित हो.
मां लक्ष्मी का नाम ‘कमला’ क्यों है?
मां लक्ष्मी को ‘कमला’ नाम से भी पुकारा जाता है, क्योंकि वे कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था, और वे कमल से उत्पन्न हुई थीं. कमल जल में रहते हुए भी 'अस्पृश्य और निर्मल' रहता है. यही गुण मां लक्ष्मी के हैं. इसलिए वे कमल-प्रिय भी है और कमला कहलाती हैं. कमल यह भी सिखाता है कि समृद्धि और वैभव के बीच रहते हुए भी मनुष्य को निर्लिप्त और शुद्ध रहना चाहिए.
इसलिए अगर आप को देवी की कृपा के जरिए माया के बंधन काटने हों तो आप शुद्ध भाव वाली कमलासीन प्रतिमा लाकर उनकी पूजा करें. कमला लक्ष्मी, शुद्ध बुद्धि देने वाली, तंत्र-मंत्र और माया के प्रभाव को काटने वाली, सरस्वती स्वरूप वाली और स्थिर सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं. इन्हें बुद्धि लक्ष्मी भी कहते हैं और यह देवी ज्ञान की भी प्रतीक हैं.
मां लक्ष्मी केवल धन की देवी नहीं हैं. वे संतुलन, श्रम, पवित्रता और विवेक की प्रतीक हैं. उनके साथ जुड़े प्रतीक कमल, हाथी और उल्लू हमें सिखाते हैं कि "धन वही शुभ है जो धर्म से अर्जित हो, विवेक से उपयोग में आए और करुणा से बांटा जाए." इस दीपावली पर जब आप मां लक्ष्मी की आराधना करें, तो केवल वैभव ही नहीं, बल्कि संयम और संतुलन की प्रार्थना भी करें. यही सच्ची लक्ष्मी कृपा है. यही उनकी अलग-अलग प्रतिमाओं के रहस्य हैं.
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