क्यों ऑस्ट्रेलिया से अमेरिका तक भारतीय प्रवासी निशाने पर?

6 days ago 1

बीते कुछ समय से पश्चिमी देश इमिग्रेंट्स को लेकर लामबंद दिखने लगे. फ्रांस से लेकर जर्मनी और अमेरिका शिकायत कर रहे हैं कि उनके यहां वैध तरीके से तो लोग आ रहे हैं, साथ ही घुसपैठ भी हो रही है. इसे रोकने के लिए कहीं डिपोर्टेशन चल रहा है तो कहीं हेट क्राइम बढ़ गया ताकि लोग घबराकर खुद ही आना बंद कर दें. ऑस्ट्रेलिया भी इसमें शामिल है. हालांकि अलग ये है कि वो भारतीय प्रवासियों पर सबसे ज्यादा नाराज है. 

रविवार को ऑस्ट्रेलिया में इमिग्रेंट्स के खिलाफ भारी प्रदर्शन हुआ. खासकर सिडनी और मेलबोर्न में सड़कें प्रदर्शनकारियों से भरी हुई थीं. सरकार इसे निजो-नाजी प्रोटेस्ट कहते हुए मामले को हल्का करने की कोशिश कर रही है. 

प्रोटेस्ट की खास बात ये रही कि इसमें सबसे ज्यादा विरोध भारतीय समुदाय का दिखता रहा. मार्च फॉर ऑस्ट्रेलिया नाम से एक समूह प्रवासियों के खिलाफ ये मुहिम चला रहा है. उसके मेनिफेस्टो पर लिखा हुआ है- सौ सालों में जितने ग्रीक और इटालियन लोग आए, उससे कहीं ज्यादा भारतीय पांच सालों में यहां आ चुके. ऑस्ट्रलियाई आबादी की शिकायत है कि उनके बच्चे अपने ही देश में घर नहीं पा रहे, अपने ही अस्पतालों में उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. 

भीड़ बढ़ने पर सुविधाओं का बंटना एक बात है, लेकिन भारतीयों का विरोध क्यों हो रहा है, ये सोचने की बात है! ये ट्रेंड ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, पश्चिम के कई देशों में दिख रहा है. 

anti immigration protest australia (Photo- Reuters)इस साल मार्च में भी एंटी-इमिग्रेशन प्रोटेस्ट हो चुके. (Photo- Reuters)

पहले बात करते हैं, ऑस्ट्रेलिया की. साल 2021 की जनगणना के अनुसार, यहां कुल आबादी का केवल 3 प्रतिशत भारतीय हैं. सबसे ज्यादा ब्रिटिश लोग हैं. दूसरे नंबर पर भारतीय और फिर चीन और न्यूजीलैंड के इमिग्रेंट्स हैं. सिडनी और मेलबोर्न में विदेशियों का आना कुछ दशक पहले ही शुरू हुआ. असल में इस देश में वाइट ऑस्ट्रेलिया पॉलिसी थी. लगभग सात दशक तक चली नीति का मकसद था कि देश में श्वेत मूल के लोग ही बसें. 

इस कानून के चलते एशियाई या अफ्रीकी लोगों को वीजा या नागरिकता नहीं मिल पाती थी. साठ के दशक में दुनिया में बड़े बदलाव दिखने लगे. नस्लभेद के खिलाफ ज्यादातर देश लामबंद हुए. दबाव ऑस्ट्रेलिया पर भी पड़ा. लेकिन यही अकेला कारण नहीं. ऑस्ट्रेलियाई सरकार को भी काम के लिए स्किल्ड और अनस्किल्ड लोगों की जरूरत थी. दोनों ही जरूरतें भारत से पूरी हो सकती थीं. पॉलिसी को हटाकर दरवाजे खोल दिए गए. 

साल 1973 से आधिकारिक तौर पर भारतीय भी इस श्वेत देश में जाने और बसने लगे. वैसे अब भी सिडनी काफी छांट-छांटकर लोगों को अपने यहां आने देती. साल 2006 में वहां की तत्कालीन सरकार ने बड़ा बदलाव करते हुए भारतीय स्टूडेंट्स के लिए भी आने और परमानेंट रेसिडेंसी पाने का रास्ता आसान कर दिया. इसके बाद ही भारतीय आबादी वहां बढ़ती चली गई. कयास हैं कि जल्द ही भारतीय लोग वहां बसे ब्रिटिशर्स से भी ज्यादा हो जाएंगे. 

anti immigration protest australia (Photo- Reuters)अमेरिका की तर्ज पर ऑस्ट्रेलिया फर्स्ट का नारा लग रहा है. (Photo- Reuters)

सड़कों, नौकरियों में भारतीय चेहरे बढ़ने के साथ ऑस्ट्रेलिया में उनके खिलाफ गुस्सा भी दिखने लगा. हालांकि वहां की सरकार अलग-अलग समूहों के खिलाफ हेट क्राइम का अलग डेटा नहीं देती, लेकिन भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, साल 2020 से पांच सालों के भीतर नब्बे से कुछ ज्यादा भारतीय छात्र बाहरी होने पर नफरत झेल चुके हैं. इनमें से 4 मामले ऑस्ट्रेलिया में हुए, जिनमें एक की मौत भी हो गई. मैलबर्न में मंदिरों पर गो होम जैसे स्लोगन लिख दिए गए. 

ऐसा क्यों हो रहा है
भारतीय प्रवासियों में पिछले सालों में जबरदस्त तेजी आई. यहां तक कि शायद कुछ वक्त में हम ब्रिटिश आबादी को बायपास कर लें. जब कोई समुदाय तेजी से बढ़ता है और उसकी पहचान साफ दिखने लगती है तो अक्सर बाकी लोग आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर अनसेफ महसूस करने लगते हैं. 

सोशल मीडिया भी एल्गोरिदमिक रेसिज्म फैला रहा है. अगर लोग ज्यादा बार किसी समुदाय के खिलाफ गुस्से वाली पोस्ट शेयर करें, तो एल्गोरिदम समझता है कि ये पॉपुलर है और वही और ज्यादा दिखाने लगता है. नतीजा ये कि नफरत और तेजी से फैलेगी. मिसाल के तौर पर, बीते एकाध साल से कई सोशल प्लेटफॉर्म्स पर चल रहा है कि भारतीय सबसे ज्यादा हेटेड समुदाय हैं, यानी उनसे सबसे ज्यादा नफरत की जाती है. ये ऑर्गेनाइज्ड हेट कैंपेन है, जो अलग बार-बार दिखाया जाए तो यकीन में बदलने लगता है. 

australia anti immigration rally (Photo- Reuters)भारतीय प्रवासी ऑस्ट्रेलिया में कुल आबादी का 3 फीसदी हैं. (Photo- Reuters)

भारतीय प्रवासियों के खिलाफ गुस्से की एक वजह उनका चेहरा-मोहरा और कदकाठी भी है. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोग काफी मिलते-जुलते दिखते हैं. यूरोप, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में रहते लोगों के लिए इनमें फर्क करना मुश्किल होता है. नतीजा यह होता है कि अगर कहीं कोई अपराध या विवाद हो जिसमें दक्षिण एशियाई मूल का इनवॉल्वमेंट हो, तो तुरंत शक भारतीयों पर चला जाएगा. इससे भी गुस्से की वजह जुटती है. 

दुनिया चरमपंथ की तरफ जा रही है. सिडनी और मेलबर्न जैसे शहरों में पिछले कुछ सालों में नियो-नाजी समूह तेजी से बढ़े. ये ग्रुप प्रवासियों, खासकर एशियाई और भारतीय समुदायों के खिलाफ रहते हैं. इसी साल मार्च में भी एक प्रोटेस्ट हुआ था, जिसमें नस्लभेदी नारे लगाए गए. स्थानीय प्रशासन हालांकि इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा कह रहा है लेकिन कोई एक्शन नहीं ले रहा. 

ऑस्ट्रेलिया के अलावा लगभग पूरा वेस्ट भारतीयों से खासकर नाराज है. इसमें ब्रिटेन भी है, अमेरिका भी और यहां तक कि यूरोप के कई देश भी. इसके पीछे 'पड़ोसी ज्यादा सफल क्यों' वाली सोच भी है. दरअसल भारतीय तबका ज्यादा पढ़ा-लिखा और सफल दिख रहा है. इससे स्थानीय लोग डर जाते हैं. कई रसूखदार लोग भी परेशान हैं कि भारतीयों का आर्थिक और राजनीतिक असर बढ़ा है. यही वजह है कि वे प्रवासियों को कल्चरल डायवर्सिटी नहीं, बल्कि कंपीटिशन की तरह देख रहे हैं. ये असुरक्षा गुस्से में बदल रही है.

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