आम आदमी पार्टी ने साफ कह दिया है कि हम अब इंडिया ब्लॉक का हिस्सा नहीं हैं. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने स्पष्ट कहा है कि इंडिया ब्लॉक लोकसभा चुनाव के लिए था और इसके बाद हमने हरियाणा और दिल्ली के चुनाव, पंजाब और गुजरात के उपचुनाव अकेले ही लड़े. हम इंडिया ब्लॉक से बाहर हैं. एक सवाल पर उन्होंने कहा कि हम संसदीय मुद्दों पर टीएमसी-डीएमके जैसी पार्टियों का समर्थन लेते हैं और उनको समर्थन देते भी हैं.
संजय सिंह ने कहा कि बीजेपी पिछले 10 साल से 'जीजाजी-जीजाजी' चिल्ला रही है, लेकिन वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे. यह बीजेपी की नाकामी है. संजय सिंह ने इंडिया ब्लॉक से बाहर होने की बात कही और इस गठबंधन में शामिल घटक दलों के साथ समर्थन के लेन-देन की भी. उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा के मुद्दे पर कांग्रेस को निशाना बनाने से परहेज किया और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को घेरा. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से एग्जिट का ऐलान क्यों किया और यह कितना रियलिस्टिक है?
आम आदमी पार्टी का इंडिया ब्लॉक से बाहर होने का औपचारिक ऐलान करना विपक्षी खेमे में बदलते डायनेमिक्स और रणनीतिक संतुलन का संकेत भी माना जा रहा है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार से आम आदमी पार्टी के मनोबल पर नकारात्मक असर पड़ा है. दिल्ली को केंद्र पंजाब के बाद अन्य राज्यों में विस्तार की रणनीतिक रफ्तार भी सुस्त पड़ी है. दिल्ली की हार ने आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर किया.
पंजाब की मजबूरी से बदली रणनीति?
आम आदमी पार्टी जब इंडिया ब्लॉक में शामिल हुई थी, तब उसकी केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पंजाब यानी दो राज्यों में सरकार थी. अब, उसने एग्जिट किया है तो पार्टी केवल एक राज्य पंजाब में ही सत्ता में है. अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी, दोनों ने ही विस्तार से ज्यादा पंजाब की सत्ता बचाए रखने के लिए संगठन को मजबूत करने पर पूरा ध्यान लगा दिया है.
इस सीमावर्ती संवेदनशील राज्य में मुख्य विपक्ष कांग्रेस ही है, ऐसे में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर साथ की वजह से भ्रम की स्थिति थी. पंजाब में 2027 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. दिल्ली की हार के बाद आम आदमी पार्टी के सामने भगवंत मान की सरकार के खिलाफ पांच साल की एंटी इनकम्बेंसी से पार पाकर अब अपने इस इकलौते किले को बचाना प्राथमिकता है.
पंजाब के चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए भविष्य की दिशा तय करने वाले भी माने जा रहे हैं. खुद अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली चुनाव के बाद से ही पंजाब में सक्रिय हैं और पार्टी नहीं चाहेगी कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का साथ लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी उसके लिए नुकसानदेह साबित हो.
लोकसभा चुनाव में पंजाब के दोनों प्रतिद्वंद्वी इंडिया ब्लॉक में थे, लेकिन सूबे में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकी थी. तब पंजाब की 13 में से सात सीटें कांग्रेस ने जीतीं और सत्ताधारी दल तीन सीटें ही जीत सका था. आम आदमी पार्टी ने तब सभी 13 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया था.
ऐसे चुनावी नतीजों के लिए पार्टी के नेता और कार्यकर्ता राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस से गठबंधन को ही जिम्मेदार बता रहे थे. आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेता भी लगातार यह बात कहते आ रहे थे कि पंजाब की सियासत के लिए जरूरी है कि पार्टी कांग्रेस से दूर खड़ी नजर आए.
गुजरात के लिए भी कांग्रेस से दूरी जरूरी
साल 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अकेले ही मैदान में उतरी थी. आम आदमी पार्टी तब पांच ही सीटें जीत सकी थी, लेकिन उसका वोट शेयर 13.1 फीसदी रहा था. इसका नतीजा यह हुआ कि 2017 के चुनाव में 42.2 फीसदी वोट शेयर के साथ 77 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2022 में महज 17 सीटों पर सिमट गई और उसका वोट शेयर भी 14.5 फीसदी की गिरावट के साथ 27.7 फीसदी पर आ गया.
बीजेपी का वोट शेयर 2017 में 50 के मुकाबले 3.3 फीसदी बढ़कर 2022 में 53.3 फीसदी पहुंच गया. जाहिर है, आम आदमी पार्टी को उन मतदाताओं के ही वोट मिले, जो कांग्रेस को मिलते थे. आम आदमी पार्टी ने पिछले ही महीने हुए गुजरात की विसावदर उपचुनाव में जीत हासिल कर इस सीट पर कब्जा बरकरार रखा था.
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इस जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी को गुजरात में कांग्रेस का विकल्प बनने की उम्मीद नजर आ रही है. इसके लिए जरूरी है कि पार्टी बीजेपी के साथ ही कांग्रेस पर भी समान रूप से हमलावर रहे और इंडिया ब्लॉक में रहते उसके लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं होता. आम आदमी पार्टी अगर कांग्रेस को टार्गेट करती भी, तो इंडिया ब्लॉक में साथ की वजह से जनता तक पहुंचते-पहुंचते उसकी धार कुंद हो जाती.
'एकला चलो' AAP की रिवाइवल स्ट्रैटेजी!
अन्ना हजारे की अगुवाई में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी का उदय ही जनता को कांग्रेस और बीजेपी का राजनीतिक विकल्प देने की सोच के साथ हुआ था. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के इंडिया ब्लॉक में आ जाने से इसका बीजेपी और कांग्रेस, दोनों से समान दूरी का सिद्धांत कमजोर पड़ा.
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साल 2013 के दिल्ली चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाने का उदाहरण था ही. दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के पीछे अरविंद केजरीवाल का लोकसभा चुनाव में गठबंधन को भी एक वजह बताया जाता है. नेशनल प्लान फेल होने के बाद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने अब एकला चलो का नारा दे दिया है, तो उसके पीछे जड़ों की ओर लौट लोकल फोकस की रिवाइवल स्ट्रैटेजी भी वजह मानी जा रही है.
इंडिया ब्लॉक से AAP की एग्जिट कितनी रियलिस्टिक
आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से एग्जिट का ऐलान कर दिया है, लेकिन सवाल ये भी उठ रहे हैं कि यह कितना रियलिस्टिक है. इसके पीछे वजह उसका डीएमके-टीएमसी जैसे दलों के साथ समर्थन के लेन-देन की बात करना भी है. डीएमके तमिलनाडु में कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी है. टीएमसी और कांग्रेस पश्चिम बंगाल में एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इंडिया ब्लॉक में साथ हैं. गठबंधन से बाहर हैं, लेकिन गठबंधन के दलों के साथ समर्थन का लेन-देन भी चलेगा. यह भी चर्चा के केंद्र में है.
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कहा यह भी जा रहा है कि आम आदमी पार्टी पंजाब-गुजरात की मजबूरी के कारण कांग्रेस से दूर दिखना चाहती है और बीजेपी के साथ वह जा नहीं सकती. बीजेपी की केंद्र में सरकार है और उसके विरोध की सियासत में वह पीछे दिखना भी नहीं चाहेगी. ऐसे में इंडिया ब्लॉक में न होकर भी आम आदमी पार्टी इंडिया ब्लॉक के साथ ही जाएगी. हां, उसकी एक रणनीति कांग्रेस के साथ सार्वजनिक रूप से मंच साझा नहीं करने की हो सकती है.
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