जब 8 साल की लड़ाई में सद्दाम हुसैन ने तोड़ दी थी ईरान की कमर, अब इजरायल पड़ रहा भारी

7 hours ago 1

लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंध झेल रहा ईरान अब इजरायल के साथ सीधे युद्ध में है. इजरायल ने बीते हफ्ते गुरुवार रात ईरान पर हमला कर उसके नतांज परमाणु संयंत्र और कई मिसाइल साइटों को तबाह कर दिया. इजरायल ने ईरान के शीर्ष सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिकों की भी हत्या कर दी. इजरायल और ईरान की लड़ाई की सबसे बड़ी वजह है ईरान का परमाणु कार्यक्रम, जिसे लेकर इजरायल का मानना है कि ईरान परमाणु बम बनाने के करीब है. वहीं, ईरान इससे साफ इनकार करता है और उसका कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल और केवल नागरिक उद्देश्यों के लिए है.

ईरान पर इजरायल के हमले की टाइमिंग इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका उससे वार्ता कर रहा है. अमेरिका का ट्रंप प्रशासन ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए उसके साथ एक परमाणु समझौता करना चाहते हैं. समझौते की शर्तों में ईरान से मांग की जा रही है कि वो अपना यूरेनियम संवर्धन रोके. संवर्धित यूरेनियम ही परमाणु बम बनाने के लिए इस्तेमाल होता है. लेकिन ईरान से संवर्धन रोकने से इनकार कर दिया जिससे वार्ता कमजोर पड़ गई थी. इसी बीच अमेरिका के सहयोगी इजरायल ने ईरान पर हमला कर दिया.

अमेरिकी प्रतिबंधों से अलग-थलग पड़े ईरान के लिए यह कोई पहला युद्ध नहीं है बल्कि उसका इतिहास देखें तो वो कई युद्ध झेल चुका है जिसमें सबसे विनाशकारी इराक के साथ उसका युद्ध है. इस युद्ध की खास बात ये थी कि उस दौरान खुद इजरायल ने इराक के खिलाफ ईरान का साथ दिया था. इस युद्ध में ईरान में भारी तबाही हुई थी.

जब इराक ने कर दिया था ईरान पर हमला

ईरान और इराक का युद्ध 1980 में शुरू हुआ जब इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने दोनों देशों की सीमा का निर्धारण करने वाली नहर शत अल-अरब के विवाद को मुद्दा बताकर ईरान पर हमला कर दिया. हुसैन ने दुनिया को ऐसे दिखाया कि वो लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद की वजह से ईरान पर हमला कर रहे हैं लेकिन इसकी असल वजह कुछ और ही थी.

हुसैन तब काफी मजबूत शासक माने जाते थे और उन्होंने देश की सेना को बेहद शक्तिशाली बनाया था. हमले से ठीक एक साल पहले 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई थी और अयातुल्लाह खुमैनी सत्ता में आए थे. ईरान राजनीतिक बदलाव के दौर से गुजर रहा था और तभी हुसैन ने सोचा कि क्यों न ईरान के तेल संपन्न खुजेस्तान पर कब्जा कर लिया जाए. 

तेहरान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इराकी राष्ट्रपति हुसैन ने दावा किया था ईरान की नई स्थापित इस्लामिक सरकार उनके देश और मध्य-पूर्व को अस्थिर करना चाहती है. उनका कहना था कि इससे पहले खुमैनी की सत्ता उनके लिए खतरा बने, वो खुद खुमैनी को सत्ता से हटा देंगे. 

इसी तर्क के साथ उन्होंने ईरान पर हमला कर दिया और इस हमले में उन्हें अमेरिका समेत दुनिया की बड़ी शक्तियों का साथ भी मिला.

इराक ने ईरान के एयर बेस और दूसरे रणनीतिक ठिकानों पर बमबारी की. हमले के एक हफ्ते बाद ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दोनों पक्षों से संघर्षविराम का आह्वान किया और शांति से सभी मुद्दे सुलझाने की बात कही. जवाब में इराकी राष्ट्रपति हुसैन ने कहा कि अगर ईरान संघर्षविराम पर राजी हो जाता है तो उनका देश भी राजी हो जाएगा. लेकिन ईरान से संघर्षविराम से साफ इनकार कर दिया. 

इराक के खिलाफ इजरायल ने दिया ईरान का साथ

इराक ने ईरान पर हमला तो कर दिया था लेकिन हमले के बाद ईरान ने जिस तरीके से प्रतिक्रिया दी, इराक को भारी पड़ गई. आज इजरायल ने जो तर्क देकर ईरान पर हमला किया है, वहीं तर्क देकर उसने इराक के खिलाफ ईरान की मदद की. इजरायल इराक के परमाणु कार्यक्रम से नाराज था. यहूदी देश इजरायल ने हमेशा से चाहा है कि क्षेत्र के अरब देश परमाणु हथियार न बना लें क्योंकि उसके अनुसार, यह उसके अस्तित्व के लिए खतरा होगा.

इजरायल का कहना था कि इराक फ्रांस की मदद से परमाणु हथियार बना रहा है जिसे वो इजरायल के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. और जब ईरान और इराक की लड़ाई शुरू हुई तो इजरायल को इराक पर हमले का मौका मिल गया. इजरायल ने इराक के ओसिरक रिएक्टर पर हमला कर उसके कथित परमाणु मंसूबों पर पानी फेर दिया. 

भले ही अमेरिका और बाकी पश्चिमी देश साथ दे रहे थे लेकिन परमाणु रिएक्टर पर हमले से इराक का मनोबल कमजोर पड़ गया. इराक ने हमले के वक्त ईरानी सेना को कम आंका था लेकिन 1982 के आते-आते ईरानी सेना ने अपने उन सभी इलाकों को छुड़ा लिया जिस पर इराकी सेना ने कब्जा किया था. इराक ने इसके बाद संघर्षविराम की पेशकश की लेकिन ईरान ने साफ इनकार कर दिया.

खुमैनी इराक को पहले हमला करने के लिए सबक सिखाने का मन बना चुके थे. हुसैन ने खुमैनी को सत्ता से हटाने के मकसद से ईरान पर हमला किया था और युद्ध शुरू होने के दो सालों के अंदर ही खुमैनी सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल कर इराक में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना करने का मन बना चुके थे.

लेकिन इस लड़ाई में ईरान को भी भारी नुकसान हुआ. सद्दाम हुसैन ने ईरान के खिलाफ बिना किसी रोक-टोक रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया जिसमें लाखों जानें गईं. सद्दाम हुसैन ने मस्टर्ड गैस और नर्व गैस ताबुन जैसे हथियारों से लाखों लोगों की जान ली. सद्दाम हुसैन की इस क्रूरता का अमेरिकी और पश्चिमी देशों ने भरपूर साथ दिया क्योंकि वो ईरान की इस्लामिक सरकार को मजबूत होने से रोकना चाहते थे.

ईरान-इराक की लड़ाई में कौन जीता?

दोनों देशों के बीच यह लड़ाई 8 सालों बाद 1988 में खत्म हुई जिसमें दोनों ही देशों को जान-माल का भारी नुकसान हुआ. लेकिन इराक यह साबित करने में कामयाब रहा कि अरब दुनिया में उसके पास सबसे बड़ी सेना है. माना जाता है कि लड़ाई में दोनों तरफ से 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए. इराक के रासायनिक हमलों में ईरान में बड़ी संख्या में लोग मरे और उसके इंफ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान पहुंचा.

युद्ध में ईरान इराक से अपनी जमीन बचा पाने में तो कामयाब रहा लेकिन वो सद्दाम हुसैन को सत्ता से नहीं हटा पाया. वहीं, इराक ने भी जिस मकसद से ईरान पर हमला किया था, वो उसे हासिल नहीं कर पाया. उसे न ईरानी जमीन मिली और न ही वो खुमैनी को सत्ता से हटा पाया. दोनों देशों के बीच आठ सालों चली जंग इतनी भीषण थी जिससे आज तक दोनों देश पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं. 

ये भी पढें- इराक, जॉर्डन, लेबनान, तुर्की, इजिप्ट... ईरान के पड़ोसी देश इजरायल से जंग में किस तरफ खड़े दिख रहे? 

Read Entire Article