तुर्की का कट्टर दुश्मन, भारत का पक्का दोस्त... छोटे से देश साइप्रस में इंडिया को क्यों है इतनी दिलचस्पी?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15-16 जून को साइप्रस का दो दिवसीय दौरा किया, जो दो दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी. यह दौरा पीएम मोदी के तीन देशों की यात्रा का हिस्सा था, जिसमें कनाडा (G7 सम्मेलन के लिए) और क्रोएशिया भी शामिल हैं. यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर है. इजरायल, ईरान और कुछ समय के लिए लेबनान का हवाई क्षेत्र बंद था, जिससे प्रधानमंत्री के विमान को अरब सागर, सोमालिया, इथियोपिया, इरीट्रिया और मिस्र होते हुए साइप्रस पहुंचना पड़ा.

साइप्रस की यह यात्रा प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक है. भारत भूमध्यसागर और यूरोप में अपने रिश्तों को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश कर रहा है और साइप्रस इस रणनीति में अहम भूमिका निभा रहा है. यह यात्रा 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद हुई, जिसे तुर्की के लिए भारत का सीधा संदेश माना जा रहा है. तुर्की लंबे समय से पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है और हाल के वर्षों में भारत विरोधी गतिविधियों में उसकी भूमिका बढ़ी है. तुर्की से आए ड्रोन हमलों ने भारत की चिंता बढ़ा दी थी, जिसके बाद भारत ने साइप्रस और ग्रीस से अपने रिश्ते मजबूत करने शुरू कर दिए.

भारत और साइप्रस का दशकों पुराना रिश्ता

भूमध्यसागर में स्थित साइप्रस 1960 में ब्रिटिश राज से आजाद हुआ. लेकिन जल्द ही ग्रीक और तुर्की मूल के साइप्रसियों के बीच तनाव शुरू हो गया. एक दशक बाद, 1974 में, ग्रीस की सैन्य तानाशाही (जुंटा) के समर्थन से साइप्रस में एक तख्तापलट किया गया, जिसका उद्देश्य साइप्रस को ग्रीस के साथ एकीकृत करना था. इसके जवाब में, तुर्की ने तुर्की साइप्रसियों की रक्षा का हवाला देते हुए साइप्रस पर सैन्य हमला कर दिया.

हालांकि बाद में निकोसिया में वैध सरकार बहाल कर दी गई, लेकिन तुर्की सेना द्वीप के उत्तरपूर्वी हिस्से में बनी रही. बाद में उस क्षेत्र ने खुद को 'तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस' घोषित कर दिया- एक राजनीतिक इकाई जिसे केवल अंकारा द्वारा मान्यता प्राप्त है.

भारत लगातार इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत समाधान का समर्थन करता आया है. भारत ने साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा बल (UNFICYP) में बड़ी भूमिका निभाई है और तीन भारतीय सैन्य अधिकारी यूएन मिशन के प्रमुख रह चुके हैं.

UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थक

साइप्रस भारत की अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं का दृढ़ता से समर्थन करता आया है. इस द्वीप राष्ट्र ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार में भारत को स्थायी सदस्यता देने के प्रस्ताव का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया है. इसके अलावा, साइप्रस ने भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौते का भी समर्थन किया है, विशेष रूप से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) जैसे वैश्विक नियामक संस्थानों में.

मजबूत होते भारत-साइप्रस के आर्थिक संबंध

प्रधानमंत्री मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस की मौजूदगी में कई अहम आर्थिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. वित्तीय सेवा क्षेत्र में व्यावसायिक जुड़ाव की संभावना पर बल देते हुए, दोनों नेताओं ने एनएसई इंटरनेशनल एक्सचेंज गिफ्ट सिटी, गुजरात और साइप्रस स्टॉक एक्सचेंज के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाने का स्वागत किया. एनआईपीएल (एनपीसीआई इंटरनेशनल पेमेंट्स लिमिटेड) और यूरोबैंक साइप्रस ने दोनों देशों के बीच सीमा पार भुगतान के लिए यूपीआई शुरू करने पर सहमति व्यक्त की. इससे पर्यटकों और व्यवसायों को लाभ होगा. 

प्रधानमंत्री ने भारत-ग्रीस-साइप्रस (आईजीसी) व्यापार और निवेश परिषद के शुभारंभ का भी स्वागत किया, जो शिपिंग, लॉजिस्टिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा, नागरिक उड्डयन और डिजिटल सेवाओं जैसे क्षेत्रों में त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देगा. प्रधानमंत्री ने इस तथ्य का स्वागत किया कि कई भारतीय कंपनियां साइप्रस को यूरोप के प्रवेश द्वार और आईटी सेवाओं, वित्तीय प्रबंधन और पर्यटन के केंद्र के रूप में देखती हैं.

दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग को मिलेगा बढ़ावा

साइप्रस अगले वर्ष यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता संभालने की तैयारी कर रहा है. ऐसे में दोनों नेताओं ने भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्धता की पुष्टि की. उन्होंने वर्ष के अंत तक भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते को पूरा करने के बारे में आशा व्यक्त की, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि व्यापार गोलमेज चर्चा ने व्यावहारिक सुझाव दिए हैं जो संरचित आर्थिक रोडमैप का आधार बनेंगे. इससे व्यापार, नवाचार और रणनीतिक क्षेत्रों में दीर्घकालिक सहयोग सुनिश्चित होगा.

साइप्रस भारत के लिए यूरोप में निवेश और व्यापार का एक केंद्र बनता जा रहा है. वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और साइप्रस के बीच व्यापार 136.96 मिलियन डॉलर का था. भारत से दवाइयां, सिरेमिक्स, इस्पात, वस्त्र और मशीनरी निर्यात होती हैं, जबकि साइप्रस से दवाइयां, पेय पदार्थ और अन्य उत्पाद भारत आते हैं.

यूरोप में भारत के लिए साइप्रस की अहम भूमिका

भारत की 'इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC)' योजना में साइप्रस एक अहम कड़ी है, जो भारत को मिडिल ईस्ट और यूरोप से जोड़ता है. इसके अलावा साइप्रस में समुद्री ऊर्जा संसाधन भी हैं, जहां भारत सहयोग करना चाहता है. तुर्की के साथ समुद्री विवादों के चलते भारत इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति मजबूत करना चाहता है. साइप्रस 2026 में यूरोपीय संघ की अध्यक्षता करेगा, जो भारत-यूरोप फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) के लिए भारत को यूरोप में मजबूत साझेदार दिलाने में मदद कर सकता है.

दिसंबर 2022 में रक्षा सहयोग पर समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर होने के बाद से दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग लगातार आगे बढ़ रहा है. इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए, दोनों देशों ने निकोसिया में 2025 के लिए द्विपक्षीय रक्षा सहयोग कार्यक्रम (BDCP) को अंतिम रूप दिया. वर्तमान में साइप्रस के लिए भारतीय रक्षा सलाहकार (डिफेंस अटैची) काहिरा स्थित भारतीय दूतावास में तैनात हैं और वही रक्षा समन्वय की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.

दिसंबर 2022 में भारत-साइप्रस के बीच रक्षा सहयोग समझौता हुआ था, जिसे अब 2025 तक के लिए विस्तारित किया गया है. साइप्रस में 11,000 से अधिक भारतीय नागरिक रहते हैं, जो आईटी, शिपिंग, कृषि और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. भारत और साइप्रस मिलकर स्टार्टअप इकोसिस्टम में भी सहयोग की योजना बना रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने यूरोप को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत रणनीतिक साझेदारी चाहता है, खासकर जब वह ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधि बनने का प्रयास कर रहा है.

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