दीपक का क्या है महत्व... दिवाली की रात क्यों जलाए जाते हैं दीये, जानिए वैदिक कारण

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सनातनी परंपरा में 'दीपदान' या दीपक जलाने का बहुत महत्व है. पूरे वर्ष में कार्तिक अमावस्या की रात सबसे अधिक अंधेरी होती है, लेकिन इस दिन इतने दीप जलते हैं कि अमावस्या की यह रात भी प्रकाश से भर जाती है. अमावस्या नकारात्मकता का प्रतीक है और दीपक की लौ सकारात्मक संदेश. इसलिए अधिक अंधेरी रात होने के कारण नकारात्मक शक्तियां बहुत अधिक न बढ़ जाएं और हावी न होने लगें तो दीपक की ज्योति उनके दमन का भी कार्य करती है. इसलिए दीपक का महत्व प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में रचा बसा हुआ है.

सृजन का प्रतीक है दीप जलाना
भारतीय सनातनी परिवारों में हर एक दिन की शुरुआत पूजन आदि से होती है. एक तरफ जब सू्र्य उदित हो रहा होता है तब घंटी की ध्वनि के साथ पूरे घर में आरती जलाकर दिखाने की परंपरा नए दिन की घोषणा का प्रतीक है. यह नवसृजन और सकारात्मकता को निमंत्रण है. इसके साथ ही सूर्य व अग्नि को साक्षी मानकर उन्हीं की तरह संसार को प्रकाशित करने का संकल्प भी है. देवताओं को दीप समर्पित करते समय भी ‘त्रैलोक्य तिमिरापहम्’ कहा जाता है, यानी दीप के समर्पण का उद्देश्य तीनों लोकों में अंधेरे का नाश करना ही है. 

ब्रह्मांड की ऊर्जा का सूक्ष्म स्वरूप
पौराणिक मान्यता है कि अग्नि की ऊर्जा  सृष्टि में तीन रूपों में दिखाई देती है. यह ब्रह्मांड में विद्युत ऊर्जा के रूप में है. ग्रहमंडल में सूर्य है और पृथ्वी पर ज्वाला रूप में इसकी मौजूदगी है. एक सूक्ति ‘सूर्याशं संभवो दीप:’ में कहा गया है कि  दीपक की उत्पत्ति सूर्य के अंश से हुई है. इसलिए दीपक का प्रकाश  इतना पवित्र है कि मांगलिक कार्यों से लेकर भगवान की आरती तक में इसका प्रयोग होता ही है. 

सूर्य की उत्पत्ति खुद परमात्मा के नेत्रों की ज्योति से हुई है. इसलिए आरती जलाते हुए यह भाव मन में होता है कि यह प्रकट की जा रही अग्नि परमात्मा का ज्योति स्वरूप ही है. यही ज्योति हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करेगी. सही दिशा भी दिखाएगी.

Diwali

पूजा में दीपक है पवित्रता का संकल्प
हमारे शास्त्रों में यूं भी नौ प्रकार की पूजा-अर्चना का विधान है, जिसके तहत दीप पूजा व दीपदान को श्रेष्ठ माना गया है. इसी दीप का प्रकाश संन्ध्या वंदन के समय दिन के अंत की घोषणा करता है, जो इस बात का प्रतीक है कि जब सृष्टि में कुछ भी शेष नहीं होगा, यानी कि अंधकार होगा, तो भी दीपक की ज्योति रहेगी, जो फिर से एक नए सृजन की दिशा दिखाएगी.

यजुर्वेद में परमात्मा का जो स्वरूप बताया गया है, उसमें भी सूर्य-चंद्र और अग्नि प्रमुख घटक की तरह ही हैं. इसमें बताया गया है कि परमात्मा-रूपी पुरुष के मन से चन्द्रमा उत्पन्न हुआ, उसके चक्षु से सूर्य, श्रोत्र से वायु और प्राण, मुख से अग्नि, नाभि से अन्तरिक्ष, सिर से अन्य सूर्य जैसे प्रकाश से भरपूर तारागण, दो चरणों से भूमि और इसी प्रकार सब लोक उत्पन्न हुए . 

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत,
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत.
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत.
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकान् अकल्पयन्

आशा का प्रतीक भी है दीपक
दीपक को आशा का प्रतीक भी माना गया है. श्रीराम जब वन को गए तब उनके लौट आने की आस और इंतजार में भरत समेत पूरी अयोध्या ने हर रात एक-एक दीपक जलाया था. दीपक की इस लौ में उनकी आशा बंधी थी कि प्रभु जरूर लौट आएंगे. इसीलिए जब श्रीराम 14 वर्षों बाद लौट आए तब देखते हैं कि भरत की नंदीग्राम वाली कुटिया में एक कोने में कालिख की लंबी रेखा बनी हुई है. ऐसा ही तीनों माताओं के कमरों में दिखाई दिया और लगभग अयोध्या के हर घर में भी. 

जब श्रीराम ने इसका कारण पूछा तब, भरत ने बताया कि हम सब अयोध्या वासियों ने इन्हीं दीपकों के सहारे तो अपने दिन काटे हैं भैया. जब भी कभी यह नकारात्मक भावना जोर मारती थी कि आप हमें भूल जाओगे, नहीं वापस आओगे, तब दीपक की यह लौ उस नकारात्मक विचार को भस्म कर डालती थी. अब जब आप आ गए हैं तब तो हम दीप ही दीप जलाएंगे. 

आशा का यह दीप जहां जलता है वहां के वातावरण से सारी नकारात्मकता को सोख लेता है और भस्म कर डालता है. वह उन्हें काजल की कालिख में बदल डालता है. वह उन सभी विचारों को दूर कर देता है जिसमें हार, निराशा और दीनता का दुख पनपकर अपनी जगह बनाते हैं. दीपक की यह ज्योति नवजीवन लाती है. इसलिए भारतीय परंपरा में दीपक की ज्योति को साक्षात परब्रह्म कहा गया है. 

दीप की ज्योति है परमात्मा का स्वरूप
जब महादेव से ऋषि दधीचि समेत अन्य सभी ने उनके सच्चिदानंद स्वरूप के बारे में पूछा कि वह कैसा है?  तब उन्होंने परमात्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा कि 
ओम नमः सच्चिदानंदः रूपाय परमात्मने, 
ज्योतिर्मय स्वरूपाय विश्वमांगल्य मूर्तये. 

उन्होंने कहा कि मैं उस सत चित आनंद देने वाले परमात्मा के स्वरूप को प्रणाम करता हूं जो कि ज्योति स्वरूप है और इसी दिव्य रूप में विश्व का मंगल करता है. इस तरह उन्होंने दीपक के प्रकाश की व्याख्या की. विज्ञान भी जीवन की गुत्थी सुलझाने के क्रम में जहां तक पहुंचा है वहां वह उसने किसी भयंकर नाद और तेज प्रकाश को ही पाया है.विज्ञान कहता है कि उसी तेज प्रकाश में जीवन देने की परमशक्ति है.

Diwali Deepak

दीपक का विशेष मंत्र
दीपक का यह प्रकाश कितना कल्याणकारी है. इस मंत्र से समझिए जो कहता है. 
दीप ज्योति परम ज्योति, दीप ज्योति जनार्दनः. दीपक की ज्योति वह परम ज्योति है जो जनार्दन (परमात्मा) का स्वरूप है. 
दीप हरतु मे पापं, दीप ज्योति नमोस्तुते, वह दीप समस्त पापों को हर लेने वाला है, उसकी ज्योति को नमस्कार है. 
शुभं करोति कल्याणं, आरोग्यं सुख संपदाः, अर्थात, यह दीपक सभी प्रकार से शुभता और कल्याण करता है. सुख की संपदा में वृद्धि करता है. 
द्वेष बुद्धि विनाशायः, आत्म ज्योति नमोस्तुते. द्वेष रखने वाली बुद्धि का विनाश करता है, इस तरह की आत्मा की ज्योति को मैं नमस्कार करता हूं. 

आइए, इस दीपावली हम मिलकर जीवन के पात्र में सकारात्मकता का तेल डालें, वैचारिक शुद्धि की बाती जलाएं और फिर इससे उत्पन्न प्रकाश से शुभता व कल्याण की कामना करें. इसी के साथ दीप पर्व की शुभकामनाएं.

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