ना अपना कोई मुल्क, ना किसी देश की नागरिकता... कौन होते हैं स्टेटलेस, क्या हैं इनकी चुनौतियां?

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बिहार में चुनाव आयोग की तरफ से मतदाताओं की पहचान के लिए चलाए जा रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले EC की इस पहल का मकसद फर्जी वोटरों को लिस्ट से हटाना और नए मतदाताओं को जोड़ना है. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने लोगों की नागरिकता का पता लगाने के लिए यह मुहिम चलाई है.

बिहार में वोटर लिस्ट जांच पर सवाल

बिहार समेत देश के कई राज्यों में नागरिक न होते हुए भी कई लोग वोटिंग का अधिकार हासिल कर चुके हैं. सीमांचल के इलाके में ऐसे वोटर्स की संख्या काफी ज्यादा बताई जाती है और बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार जैसे देशों के नागरिक घुसपैठ कर यहां दाखिल हो गए हैं. विपक्ष का आरोप है कि सरकार SIR के जरिए ऐसे लोगों से वोटिंग का अधिकार छीनना चाहती है, जो किसी भी कारण से अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए हैं.

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कोई भी देश अपने नागरिकों को वोटिंग का अधिकार देता है, घुसपैठियों को वोट करने या सरकार चुनने का अधिकार नहीं है. SIR की प्रक्रिया के दौरान भी कई लोगों की शिकायत है कि उनके पास नागरिकता साबित करने के पर्याप्त सबूत नहीं, जिसके लिए वे अलग-अलग कारण बताते हैं. साथ ही सरकार ने जिन 11 दस्तावेजों को SIR के लिए जरूरी बताया है, उन्हें लेकर भी सवाल हैं, क्योंकि इसमें आधार कार्ड को जगह नहीं दी गई है.  

कौन होते हैं स्टेटलेस?

ऐसे में उन लोगों के बारे में जान लेते हैं, जिनके पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं है. ऐसे लोगों को अनागरिक या स्टेटलेस कहा जाता है. दुनिया में एक करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनके पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं है. न उनका अपना कोई मुल्क है और न ही वे किसी देश के नागरिक हैं.

स्टेटलेस व्यक्ति किसी भी देश के कानून के दायरे में नहीं आता और न ही कोई देश उस पर अपना कानून लागू कर सकता है. ऐसा व्यक्ति देश के नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं और अधिकारों से वंचित होता है. ऐसे व्यक्ति की देश में कोई पहचान नहीं होती, भले ही वहां कई साल से रह रहा हो, लेकिन उसके पास कोई लीगल स्टेटस नहीं होता. 

कैसे छिन जाती है नागरिकता?

उदाहरण के तौर पर समझें तो अगर किसी व्यक्ति ने विदेशी नागरिक से शादी की है और उसके देश में रहना कर दिया है. लेकिन उसे अपने पार्टनर के देश की नागरिकता नहीं मिली और उसने शादी के बाद अपनी मूल नागरिकता भी छोड़ दी है, तो ऐसे में वह शख्स उस दौरान स्टेटलेस हो जाता है. क्योंकि उसके पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं है. ऐसे कपल को बच्चों के सामने भी नागरिकता का संकट आ सकता है और उनके बच्चे भी स्टेटलेस हो सकते हैं.

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कुछ साल पहले भारत के साथ तनाव के बीच नेपाल ने उन भारतीय बेटियों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया था, जो शादी करके वहां गई थीं. कई बार कानूनी दस्तावेजों की कमी और तकनीकी गड़बड़ियों के चलते भी कई लोग स्टेटलेस हो जाते हैं. लेकिन इस हालात में दस्तावेज पूरे करने के बाद नागरिकता बहाल हो जाती है.   

दुनिया में कितने लोग हैं स्टेटलेस? 

संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी UNHCR के मुताबिक नवंबर 2018 में दुनिया के करीब 1.2 करोड़ लोगों के पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं थी. संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने बताया कि स्टेटलेस लोगों में 75 फीसदी लोग अल्पसंख्यक समूहों से हैं और करीब एक तिहाई बच्चे भी इनमें शामिल हैं. भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में गैर-नागरिकों को वोटिंग का अधिकार नहीं है. और यही वजह है कि SIR के जरिए बिहार में ऐसे लोगों की पहचान हो रही है, क्योंकि उनके पास वोटर आईडी कार्ड हैं और वह गैर-नागिरक होते हुए भी मतदान प्रक्रिया में शामिल होते आए हैं.

अगर किसी बच्चे के माता-पिता स्टेटलेस हैं या फिर अलग-अलग देशों से हैं तो जन्म लेने वाला बच्चा भी नागरिकता से वंचित रहता है, क्योंकि कई देशों में माता-पिता की नागरिकता से ही बच्चे की सिटीजनशिप तय होती है. इसके अलावा दुनियाभर में चल रहे संघर्षों और राजनीतिक कारणों की वजह से बहुत बड़ी तादाद में अवैध पलायन होता है और कोई भी देश घुसपैठियों को अपना नागरिक बनाने के लिए राजी नहीं होता, भारत में बसा रोहिंग्या समुदाय इसका उदाहरण है. 

रिफ्यूजी और स्टेटलेस में क्या फर्क?

रिफ्यूजी या शरणार्णी ऐसे लोगों को कहा जाता है जो लोग किसी डर की वजह से अपना देश छोड़ चुके हैं और अब वहां जाने के लिए तैयार नहीं हैं. युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और भेदभाव की वजह से कुछ वर्ग के लोगों के साथ जुल्म होता है और ऐसे लोग अपना देश छोड़कर रिफ्यूजी बन जाते हैं, लेकिन उनके पास नागरिकता बनी रहती है. 

कुछ मामले में शरणार्थी किसी अन्य देश की नागरिकता हासिल करने के लिए मूल देश की सिटीजनशिप सरेंडर कर देते हैं. अगर ऐसे हालात में किसी रिफ्यूजी को कोई नया देश नागरिकता नहीं देता है, तब वे स्टेटलेस कहलाएंगे. 

किन चुनौतियों से होता है सामना?

बगैर नागरिकता के पासपोर्ट या वीजा बनना मुमकिन नहीं है और ऐसे हालात में स्टेटलेस लोग लीगल तरीके से किसी भी देश की यात्रा नहीं कर सकते. साथ ही इनके लिए किसी देश में न्याय हासिल करने और कानूनी मदद लेने में मुश्किल आती है. सामाजिक तौर पर भी स्टेटलेस लोगों को शक की नजर से देखा जाता है और उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.

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म्यांमार में रहने वाला रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय स्टेटलेस घोषित कर दिया गया है, इसकी वजह से लाखों लोग शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं. साथ ही उनमें से कुछ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में अवैध रूप से रह रहे हैं. दक्षिण एशिया में भारत से गए कई लोगों को नागरिकता  नहीं मिली है और वह स्टेटलेस होकर रहने को मजबूर हैं. 

अधिकारों के लिए उठाए गए कदम

UNHCR ने स्टेटलेस लोगों की मदद के लिए 'I Belong' के नाम से एक पहल चलाई है, जिसका मकसद 2024 तक स्टेटलेसनेस को खत्म करना था. साल 1961 में इसे लेकर एक संधि भी हुई थी जिसका मकसद उनके अधिकारों की रक्षा करना था. लेकिन कई देश ने इस संधि को अब तक लागू नहीं किया है. दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में स्टेटलेस लोग अब भी हाशिए पर ही खड़े हुए हैं.

भारत भी इस संधि का हिस्सा नहीं है. फिर भी तिब्बती शरणार्थी और श्रीलंकाई तमिल जैसे कुछ स्टेटलेस समुदाय देश में लंबे वक्त से रह रहे हैं. ऐसे समुदायों के लिए विशेष पहचान पत्र भी जारी किए गए हैं, लेकिन इन लोगों को भारतीय नागरिक को मिलने वाले सभी अधिकार हासिल नहीं हैं. 

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