AI से पूछकर अपना इलाज करना सही या गलत? इस नई स्टडी में छुपा है सही जवाब

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आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हर किसी की लाइफ में घुस चुका है. लोग हेल्थ से जुड़े छोटे-बड़े सवाल भी सीधे AI से पूछ लेते हैं, कब डॉक्टर के पास जाना है, कौन-सी दवा सही है, क्या ये लक्षण किसी बीमारी का संकेत हैं? लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जो जवाब AI देता है, वो सच में कितना भरोसेमंद है?

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक लेटेस्ट स्टडी ने इस भरोसे पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. MIT टेक्नोलॉजी में छपी इस स्टडी के बारे में बताया गया है. स्टडी के अनुसार अब ज्यादातर टॉप AI मॉडल न सिर्फ हेल्थ से जुड़े सवालों के जवाब दे रहे हैं बल्कि डॉक्टर की तरह आगे फॉलोअप सवाल भी कर रहे हैं, डायग्नोसिस का अंदाजा भी लगाने लगे हैं. लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि पहले जो मेडिकल डिस्क्लेमर (यह AI डॉक्टर नहीं है) नजर आता था, वो अब गायब हो चुका है.

क्या कहती है नई स्टडी 

स्टडी की लीड रिसर्चर और स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन की फुलब्राइट स्कॉलर सोनाली शर्मा ने बताया कि उन्होंने साल 2023 में जब AI मॉडल टेस्ट किए थे तो सभी बड़े मॉडल एक बात जरूर कहते थे कि मैं डॉक्टर नहीं हूं. कई बार तो AI इमेज इंटरप्रेट करने या सलाह देने से साफ इनकार कर देता था. लेकिन 2025 आते-आते तस्वीर पूरी तरह बदल गई. अब न कोई डिस्क्लेमर, न कोई चेतावनी… AI बिना किसी हिचकिचाहट के मेडिकल सलाह बांट रहा है.

शोध में OpenAI, Anthropic, DeepSeek, Google और Elon Musk की xAI समेत कुल 15 बड़े AI मॉडल्स को 500 मेडिकल सवालों और 1500 मेडिकल इमेज पर टेस्ट किया गया. नतीजे चौंकाने वाले थे. जहां 2022 में 26% से ज्यादा बार डिस्क्लेमर दिखता था, 2025 में ये आंकड़ा गिरकर महज 1% से भी नीचे चला गया.

मरीज के लिए खतरनाक है ये

स्टडी की को-ऑथर और स्टैनफोर्ड में डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. रॉक्साना दानेशजौ कहती हैं कि AI जब हर सवाल का जवाब बड़ी आत्मविश्वास से देता है और डिस्क्लेमर गायब हो जाते हैं तो यूजर ये भूल जाते हैं कि सामने कोई डॉक्टर नहीं, बल्कि मशीन है. उनका कहना है कि गलत जानकारी से सीधा असर मरीज की जान तक पर पड़ सकता है.

खास बात ये भी है कि कंपनियां इससे पल्ला झाड़ती दिखती हैं. OpenAI और Anthropic जैसे दिग्गजों ने ये नहीं बताया कि डिस्क्लेमर जानबूझकर हटाए गए या नहीं. वे बस Terms of Service का हवाला देते हैं, जिसमें साफ लिखा होता है कि स्वास्थ्य फैसले AI पर निर्भर होकर न लें. Google और DeepSeek ने तो कोई जवाब ही नहीं दिया.

MIT के AI एक्सपर्ट पट पटरानुतापोर्न का कहना है कि कंपनियां जानबूझकर यूजर का भरोसा जीतने के लिए डिस्क्लेमर हटा रही हैं ताकि ज्यादा लोग इन टूल्स का इस्तेमाल करें. लेकिन खतरा यह है कि कंपनियां तो जिम्मेदारी से बच जाएंगी, नुकसान आम आदमी को उठाना पड़ेगा.

एमरजेंसी में एआई की मदद कितनी फायदेमंद

सबसे खराब स्थिति उन मॉडलों की है जो सीधे एमरजेंसी सवालों का जवाब दे देते हैं. DeepSeek और xAI जैसे मॉडल तो मेडिकल इमेज भी बिना किसी चेतावनी के ‘डायग्नोज’ कर रहे हैं. OpenAI का GPT-4.5 और Elon Musk का Grok भी इसी ट्रेंड पर चल रहे हैं.

शोधकर्ताओं का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य वाले सवालों पर AI थोड़ी सावधानी बरतता है लेकिन मेडिकल इमर्जेंसी, दवा के इंटरेक्शन या गंभीर बीमारियों पर यह बेधड़क सलाह देता है. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि ये मॉडल अपनी 'confidence score' के आधार पर तय कर रहे हैं कि डिस्क्लेमर देना है या नहीं. यानी मशीन खुद तय कर रही है कि वह सही है या गलत  जबकि हकीकत ये है कि मशीन को ‘समझ’ नहीं होती, सिर्फ डेटा प्रोसेसिंग होती है.

डॉ. दानेशजौ का साफ कहना है कि AI एक शानदार टूल है लेकिन डॉक्टर का विकल्प नहीं. वहीं रिसर्चर्स का मानना है कि अगर AI से हेल्थ रिलेटेड सवाल पूछते हैं तो एक बार डॉक्टर से क्रॉस चेक जरूर करें.

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