रूस मदद कर नहीं सकता, बाकी साझेदार साफ... ईरान पर हमले की टाइमिंग गजब चुनी है इजरायल ने

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13 जून, 2025 को इजरायल ने ईरान के सैन्य ठिकानों, परमाणु सुविधाओं और तेल-गैस संयंत्रों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए. इस हमले को "ऑपरेशन राइजिंग लायन" नाम दिया गया, जिसमें 200 से ज्यादा लड़ाकू विमानों ने हिस्सा लिया. इन हमलों में ईरान के चार वरिष्ठ सैन्य कमांडर, छह परमाणु वैज्ञानिक और 78 नागरिक मारे गए. विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल ने हमले का समय इतनी चतुराई से चुना कि ईरान के प्रमुख सहयोगी, खासकर रूस, उसकी मदद नहीं कर पा रहा है. अन्य सहयोगी देश भी हिचकिचा रहे हैं. 

इजरायल ने यही समय क्यों चुना?

इजरायल ने ईरान पर हमले के लिए ऐसा समय चुना जब ईरान के सहयोगी देश अपनी-अपनी समस्याओं में उलझे हैं. यह रणनीति इजरायल को सैन्य और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर फायदा दे रही है. मुख्य कारण इस प्रकार हैं...

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रूस की कमजोर स्थिति

रूस, ईरान का सबसे बड़ा सैन्य सहयोगी, इस समय यूक्रेन युद्ध में बुरी तरह फंसा है. 2022 से चल रहे इस युद्ध ने रूस की सैन्य और आर्थिक ताकत को कमजोर कर दिया है. रूस ने ईरान को S-300 और S-400 जैसी हवाई रक्षा प्रणालियां दी थीं, लेकिन वह अब न तो अतिरिक्त हथियार भेज सकता है. न ही सैन्य सहायता दे सकता है. 

Israel-Iran conflict

रूस की सेना को यूक्रेन में भारी नुकसान हुआ है. उसकी अर्थव्यवस्था पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रही है. ऐसे में, ईरान के लिए सैन्य समर्थन देना रूस के लिए मुश्किल है. ईरान ने रूस को ड्रोन और मिसाइलें सप्लाई की थीं, जिससे रूस पर ईरान का उधार चढ़ा हुआ है. लेकिन रूस की मौजूदा स्थिति उसे जवाबी मदद देने से रोक रही है.

चीन की तटस्थता

चीन ईरान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. उसका तेल खरीदता है. लेकिन चीन ने इस संघर्ष में तटस्थ रहने का फैसला किया है. वह इजरायल और अरब देशों के साथ भी व्यापार करता है, इसलिए वह खुलकर ईरान का पक्ष नहीं लेना चाहता. 

चीन की अर्थव्यवस्था भी 2025 में मंदी का सामना कर रही है. वह वैश्विक तेल कीमतों में उछाल से बचना चाहता है, जो युद्ध बढ़ने से हो सकता है. इसलिए, वह ईरान को केवल कूटनीतिक समर्थन दे रहा है, सैन्य मदद नहीं.

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अरब देशों की दूरी

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और अन्य खाड़ी देश (GCC) ईरान के साथ ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण संबंध रखते हैं. 2023 में सऊदी अरब और ईरान ने चीन की मध्यस्थता से संबंध सुधारने की कोशिश की, लेकिन ये देश इजरायल के खिलाफ खुलकर नहीं बोल रहे.

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सऊदी अरब और UAE ने अब्राहम समझौते (2020) के बाद इजरायल के साथ व्यापार और कूटनीतिक संबंध बढ़ाए हैं. वे ईरान के परमाणु कार्यक्रम से भी चिंतित हैं, इसलिए वे इस युद्ध में तटस्थ बने हुए हैं. ये देश तेल उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं ताकि वैश्विक बाजार में कीमतें स्थिर रहें. वे युद्ध में उलझकर अपनी अर्थव्यवस्था को जोखिम में नहीं डालना चाहते.

अमेरिका और पश्चिमी देशों का समर्थन

इजरायल को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का मजबूत समर्थन प्राप्त है. अमेरिका ने इजरायल को F-35 विमान, बम और मिसाइलें दी हैं. अमेरिकी नौसेना का USS गेराल्ड फोर्ड विमानवाहक पोत पूर्वी भूमध्य सागर में तैनात है, जो इजरायल को सुरक्षा दे रहा है. अमेरिका ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे ईरान की तेल बिक्री और हथियार खरीदने की क्षमता कम हुई है.

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ईरान की आंतरिक कमजोरी

ईरान की अर्थव्यवस्था अमेरिकी प्रतिबंधों, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी से जूझ रही है. ईरानी रियाल का मूल्य गिर गया है. जनता में असंतोष बढ़ रहा है. ईरान की सेना को हथियारों और स्पेयर पार्ट्स की कमी है. उसके ज्यादातर लड़ाकू विमान पुराने हैं. हवाई रक्षा प्रणाली सीमित है. हमास और हिजबुल्लाह जैसे ईरान समर्थित समूह इजरायल के साथ पहले से युद्ध में हैं, जिससे ईरान की सैन्य क्षमता बंटी हुई है. ये खत्म ही हो चुके है. 

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इजरायल की रणनीति

इजरायल ने इस हमले की योजना लंबे समय से बनाई थी. उसने निम्नलिखित रणनीतियों का इस्तेमाल किया...

  • F-35 का उपयोग: इजरायल ने अपने अत्याधुनिक F-35I "अदिर" विमानों का इस्तेमाल किया, जो रडार से बच सकते हैं. ये विमान ईरान के ठिकानों पर सटीक हमले करने में सक्षम हैं.
  • सटीक समय: इजरायल ने हमले के लिए उस समय को चुना जब रूस और अन्य सहयोगी ईरान की मदद नहीं कर सकते. यह समय ईरान के लिए सबसे कमजोर था.
  • परमाणु और तेल ठिकानों पर निशाना: इजरायल ने ईरान के परमाणु संयंत्रों (नतांज, फोर्डो) और तेल-गैस सुविधाओं (खार्क द्वीप, अबादान) को निशाना बनाया. इससे ईरान की अर्थव्यवस्था और परमाणु महत्वाकांक्षा को झटका लगा.
  • खुफिया जानकारी: इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने हमले की सटीक जानकारी जुटाई. उसने ईरानी वैज्ञानिकों और सैन्य ठिकानों की सही लोकेशन का पता लगाया.

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ईरान का जवाब

ईरान ने जवाब में इजरायल पर 100 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन दागे. उसने तेल अवीव, यरूशलम और डिमोना परमाणु रिएक्टर को निशाना बनाया. हालांकि, इजरायल के आयरन डोम और डेविड स्लिंग रक्षा सिस्टम ने ज्यादातर मिसाइलों को नष्ट कर दिया. ईरान ने दावा किया कि उसने दो F-35 विमान मार गिराए और एक महिला पायलट को गिरफ्तार किया, लेकिन इजरायल ने इसे झूठ बताया.

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भारत पर असर

इस युद्ध का भारत पर बड़ा असर पड़ सकता है...

तेल की कीमतें: भारत 85% तेल आयात करता है, जिसमें से 60% स्ट्रेट ऑफ होर्मुज से आता है. हमले के बाद तेल की कीमतें 75 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चली गईं. अगर युद्ध बढ़ा, तो यह 100 डॉलर से ज्यादा हो सकती है, जिससे भारत में पेट्रोल-डीजल महंगा होगा.

व्यापार: भारत का इजरायल ($10.7 बिलियन) और ईरान ($2.33 बिलियन) के साथ व्यापार प्रभावित हो सकता है. लाल सागर और सुएज नहर के रास्ते बाधित होने से निर्यात लागत 40-50% बढ़ गई है.

कूटनीति: भारत ने दोनों देशों से शांति की अपील की है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत क्षेत्र में स्थिरता चाहता है. 

विश्व की प्रतिक्रिया

  • अमेरिका: राष्ट्रपति जो बाइडन ने इजरायल का समर्थन किया, लेकिन युद्ध बढ़ने से बचने की सलाह दी.
  • रूस: राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इजरायल की निंदा की, लेकिन सैन्य मदद का कोई वादा नहीं किया.
  • संयुक्त राष्ट्र: महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने दोनों देशों से संयम बरतने को कहा.
  • सऊदी अरब और UAE: इन देशों ने तटस्थ रहने का फैसला किया.
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