वदामि संस्कृतं सदा... क्या आप भी 'देवताओं की भाषा' बोलना चाहते हैं? ह‍िट है संस्कृत स‍िखाने की ये पहल

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'तत् व्यजनम्, एतत् करदीपम्...' सील‍िंग फैन और फिर हाथ में पकड़ी छोटी टॉर्च की ओर इशारा करते हुए एक व्यक्त‍ि बार-बार ये वाक्य दोहराता है. 15-20 की संख्या में 5 साल से लेकर 75 साल की उम्र के दर्शक वहां बैठे हैं और ऐसे सिर हिलाते हैं जैसे सब समझ आ रहा हो. बारी-बारी से हर कोई उन्हीं दो वस्तुओं की ओर इशारा करता है और कहता है, 'तत् व्यजनम्, एतत् करदीपम्.'  

इसका अर्थ है कि'ये पंखा है, ये हाथ की टॉर्च है' इस तरह ज्यादातर लोग समझ चुके हैं कि संस्कृत में इन दो वस्तुओं को क्या कहते हैं. उन्हें 'तत्' (वह) और 'एतत्' (यह) का मतलब भी समझ आ गया. उन्हें आगे भी समझाया जाता है कि ये नपुंसक लिंग की संज्ञा थे, पुल्लिंग संज्ञाओं के लिए 'सः' और 'एषः' होता, जबकि स्त्रीलिंग के लिए 'सा' और 'एषा' होता.इस तरह ज्यादातर लोगों को ये भी समझ आ गया कि वे संस्कृत को इसी भाषा के माध्यम से सीखने जा रहे हैं. दूसरी भाषा लाकर अनुवाद करने से सीखने की इस प्रक्रिया में मदद नहीं मिलती. 

ये कक्षा करीब दो घंटे तक चलती है. यहां बैठे लोगों को मिले हैंडआउट के चार गीतों शिविरगीतम्, उद्देश्यगीतम्, एकतामंत्रः और संकल्पः में एक या दो गीतों के साथ क्लास की शुरुआत होती है. इसके बाद छोटी-छोटी बातचीत शुरू होती है (भवतः नाम किम्?) फिर संस्कृत में ही धीरे-धीरे संख्याएं और काल जैसी विभिन्न अवधारणाएं पेश की जाती हैं. 

ये पूरा दृश्य पूर्वी दिल्ली के एक सोसाइटी के फ्लैट के बेसमेंट में हो रहे 10 दिन के संभाषण संस्कृत कार्यशाला के हैं. ये दिल्ली में अप्रैल-मई में गैर-लाभकारी संगठन संस्कृत भारती द्वारा आयोजित 1,008 कार्यशालाओं में से एक है. संस्कृत भारती असल में संस्कृत और उसमें निहित सांस्कृतिक ज्ञान को पुनर्जनन के लिए समर्पित एक आंदोलन है, जिसकी शुरुआत 1981 में बेंगलुरु से हुई थी. संगठन का दावा है कि उसने 1.2 लाख कार्यशालाओं के माध्यम से 1 करोड़ से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया है और 1.35 लाख से अधिक शिक्षकों को तैयार किया है. 

पूर्वी दिल्ली की कार्यशाला में कुछ प्रतिभागी हिंदी में सवाल पूछते हैं लेकिन शिक्षक संस्कृत और इशारों में जवाब देते हैं ताकि संस्कृत इंप्रूव हो. अंत में टीचर एक छोटी पंचतंत्र जैसी कहानी सरल संस्कृत में सुनाते हैं. मजेदार बात ये है कि ज्यादातर लोग समझ लेते हैं. यह कोई छोटा आश्चर्य नहीं है कि वे एक ऐसी भाषा जो कथित तौर पर मृत मानी जाती है, में कितनी जल्दी जीवंत हो उठते हैं, कम से कम दिन में कुछ घंटों के लिए. 

मिशन संस्कृत को नया जीवन देने का...

संस्कृत भारती की वेबसाइट के अनुसार 'हमारा मिशन: एक भाषा का पुनर्जनन, एक संस्कृति का कायाकल्प, भारत नामक राष्ट्र का पुनर्निर्माण! संस्कृत भारती एक आंदोलन है जो संस्कृत भाषा के साथ-साथ उसमें निहित साहित्य, परंपरा और ज्ञान प्रणालियों के निरंतर संरक्षण, विकास और प्रचार के लिए है'.  

संस्कृत भारती संस्कृत में उपलब्ध विशाल ज्ञान को दुनिया के सामने लाने और लाखों लोगों को संस्कृत बोलने और सीखने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए काम कर रही है. गृह मंत्री अमित शाह ने 5 मई को दिल्ली विश्वविद्यालय के खेल परिसर में समापन समारोह में अपने संबोधन में भी इसका उल्लेख किया था. संस्कृत के लिए इस आंदोलन की शुरुआत तब हुई जब चमु कृष्ण शास्त्री और उनके दोस्तों जनार्दन हेगड़े और विश्वास महोदय ने 1980-81 में बेंगलुरु में छोटी कार्यशालाएं शुरू कीं. साल 2017 में पद्म श्री से सम्मानित शास्त्री ने 'सरल संभाषण पद्धति' नामक एक शिक्षण पद्धति विकसित की जो रोजमर्रा की बातचीत की क्षमता सिखाने पर केंद्रित थी. 
 
आंदोलन के प्रयासों के कारण आज 6,000 से अधिक घरों में संस्कृत बोली जाती है. संगठन का कहना है कि उसने चार गांवों को 'संस्कृत ग्राम' में बदल दिया है. ये 26 देशों में 4,500 केंद्रों के माध्यम से संस्कृत का प्रचार करता है. इसने 2011 में बेंगलुरु में पहली बार विश्व संस्कृत पुस्तक मेला और 2013 में उज्जैन में संस्कृत साहित्य उत्सव भी आयोजित किया. राष्ट्रीय राजधानी में हाल ही में आयोजित 1,008 मुफ्त कार्यशालाओं में, 23 अप्रैल से शुरू होने वाले 10 दिनों की अवधि में 17,000 से अधिक प्रतिभागियों को संस्कृत से परिचित कराया गया. 

व्याकरण का डर  

नई भाषा सीखने वालों के लिए व्याकरण एक बड़ी बाधा है. यह अंग्रेजी की तरह शुरुआत में ही स्पष्ट नहीं हो सकता, संस्कृत, ग्रीक और लैटिन जैसी शास्त्रीय भाषाओं में संज्ञा या क्रिया के अंत में टैग लगते हैं जो काल, संख्या (एकवचन/बहुवचन) या लिंग को दर्शाते हैं. 

संस्कृत का नाम लेते ही ज्यादातर लोगों को सबसे पहले उन तालि‍काओं को याद करने की बात याद आती है. जैसे रामः-रामौ-रामाः और इसी तरह सात विभक्तियों के लिए, यानी एक वाक्य में संज्ञा की सात तरह की भूमिकाएं, जैसे कर्ता या कर्म. इस तरह, एक संज्ञा के 21 अलग-अलग रूप होते हैं.   

एक तालिका 'अ' से खत्म होने वाली पुल्लिंग संज्ञाओं के लिए काम करेगी. 

वहीं 'आ' से खत्म होने वाली संज्ञाओं, 'ई' से खत्म होने वाली संज्ञाओं के लिए अलग-अलग तालिकाएं हैं, और फिर ये सब स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग के लिए भी है. ज्यादातर भाषाओं के विपरीत संस्कृत में एकवचन और बहुवचन के अलावा द्विवचन भी है जो इसे थोड़ा जटिल बनाता है. इससे पहले कि आप कहें कि किसने किसके साथ क्या किया आपको हर संज्ञा की विभक्ति को समझना होगा, फिर मन ही मन तालिका से क्ल‍ियर करके वाक्य बनाना होगा. वाक्य फिर भी अधूरा होग क्योंकि किसी भी वाक्य का केंद्र क्रिया होती है जो कार्य या घटना को दर्शाती है. वहीं, संस्कृत में क्रियाओं के अपने ही प्रत्यय होते हैं जिन्हें संयोजन कहते हैं. आप शायद इन्हें थोड़ा ऐसे समझ पाएंगे. 

वदति-वदतः-वदन्ति‍ 
वदसि-वदथः-वदथ  
वदामि-वदावः-वदामः  

यह साधारण वर्तमान काल के लिए काम करता है. अंग्रेजी में जहां 3 काल हैं, वहीं संस्कृत में 10 काल हैं. फिर 10 अलग-अलग क्रिया वर्ग हैं तो कम से कम सौ संयोजन तालिकाएं हैं. इसकी तुलना में अंग्रेजी कहीं सरल भाषा है. अधिक से अधिक लोगों द्वारा उपयोग किए जाने के कारण यह और सरल हो गई है. उदाहरण के लिए 'मैं दौड़ा, तुम दौड़े और सभी दौड़े.' लेकिन कई अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं है.
एक प्रसिद्ध विद्वान सी. डब्ल्यू. हंटिंगटन जूनियर ने एक लेख में दिल्ली से वाराणसी की एक ट्रेन यात्रा को याद किया जो कई दशकों पहले हुई थी जिसमें वे 'रूपचन्द्रिका' पढ़ते रहे. उन्होंने ल‍िखा कि ये किताब सालों से मेरी साथी रही है. छह सौ पन्नों की संस्कृत व्याकरण, संज्ञान और संयोजन की तालिकाओं के छह सौ पन्ने जिन्हें याद करना पड़ता है. 

फ्रेंच सीखने वाले भी वर्षों तक 174 पन्नों की एक किताब 'Bescherelle' लेकर चलते हैं जिसमें संयोजन तालिकाएं होती हैं. लेकिन, मजेदार बात ये है कि मूल निवासियों को इसकी कभी जरूरत नहीं पड़ती. जैसा कि मजाक में कहा भी जाता है कि फ्रेंच सीखने वाला पेरिस जाता है और उसे आश्चर्य होता है कि यहां तक कि छोटे बच्चे भी फ्रेंच में धाराप्रवाह बोलते हैं. 

किसी सीखने वाले की तुलना में बच्चे भाषा को स्वाभाविक रूप से सीखते हैं. उन्हें वाक्य बनाने से पहले उन तालिकाओं को याद नहीं करना पड़ता. वहीं एक वयस्क सीखने वाले के लिए यह कुछ हद तक मुंबई या बेंगलुरु में रहने के बाद बातचीत में मराठी या कन्नड़ सीखने जैसा होगा. संस्कृत भारती की कार्यशालाओं में छात्रों को कई स्तरों पर संस्कृत सीखने के उपकरण प्रदान किए जाते हैं. 

Image: Ashish Mehta

भाषा सीखने का स्वाभाविक तरीका  

भाषा सीखने की तकनीक व्याकरण को छोड़ देती है और उस तरीके को अनुकरण करने की कोशिश करती है जिससे बच्चे अपनी मातृभाषा सीखते हैं. संस्कृत भारती की कार्यशालाओं में भी शिक्षक एक छोटे वाक्य से शुरू करते हैं जैसे 'मम नामः राजेशः' ये कहते हुए वो खुद की ओर इशारा करते हैं. फिर एक प्रतिभागी से पूछते हैं: 'भवतः नाम किम्?' ज्यादातर लोग इसे समझ लेते हैं और जवाब देते हैं: 'मम नामः रामेशः.' 
अगर अंत में ':' (विसर्ग) छूट जाता है तो शिक्षक सुधार करते हैं और बाकी लोग संकेत समझ जाते हैं. फिर, वे एक महिला की ओर मुड़ते हैं और पूछते हैं, 'भवत्याः नाम किम्?' स्त्रीलिंग के लिए सवाल की शुरुआत में थोड़ा बदलाव होता है और जवाब में नाम के अंत में विसर्ग नहीं लगता जैसे 'मम नाम स्मिता.'  

हर दिन प्रतिभागी बेसमेंट में इस आत्मविश्वास के साथ आते हैं कि वे उस भाषा में कम से कम कुछ पंक्तियों की बातचीत कर सकते हैं जो उन्हें पहले केवल कुछ मंत्रों और श्लोकों तक पता थी.  ऊपर दिखाए गए 'वदामि/वदसि' को कक्षा में पेश किया जाता है, लेकिन केवल बातचीत में. जल्द ही भूतकाल और भविष्यकाल को भी इसी तरह पेश किया जाता है. संख्याओं के अलावा वे समय बताना और सप्ताह के दिन सीखते हैं. 

महत्वपूर्ण रूप से, प्रतिभागियों को पेन या नोटबुक लाने की जरूरत नहीं होती. इसे एक संस्कृत बोलने वाले शहर के बाजार में टहलने की तरह समझें. दसवें दिन तक वे संस्कृत में लिखने के लिए तैयार हो जाते हैं जैसे कि पांच मिनट के नाटक की स्क्रिप्ट या अपने सीखने के अनुभव का एक छोटा वर्णन.   

संस्कृत क्यों सीखें?  

वे ऐसी भाषा क्यों सीखना चाहते हैं जिसका व्यावहारिक उपयोग लगभग नहीं है? कुछ सीखने वाले अपनी धर्म की भाषा सीखना चाहते हैं. वहीं, कुछ हिंदू गर्व और पहचान के उदय से प्रेरित हैं. एक बुजुर्ग सज्जन कहते हैं कि 'मैं मंत्र, स्तोत्र और श्लोकों का उच्चारण पूरी समझ और बेहतर तरीके से करना चाहता हूं.'एक मिड‍िल क्लास फै‍म‍िली की महिला कहती हैं  कि मैं अपनी स्कूल जाने वाली बेटियों की संस्कृत पढ़ाई में मदद करना चाहती हूं. वहीं एक अन्य महिला जो एक उच्चतर माध्यमिक संस्कृत शिक्षिका हैं. उनका कहना है कि वो ये नया तरीका सीखना चाहती हैं जो कक्षा शिक्षण से बहुत अलग है. युवा या तो अपनी स्कूल की संस्कृत पढ़ाई को पूरा करने के लिए यहां हैं या भविष्य में इस विषय का विचार करने के लिए. 

पूर्वी दिल्ली में इस कार्यशाला के शिक्षक हिमाचल प्रदेश के राजेश शर्मा के पास संस्कृत में कई डिग्रियां हैं और वे 22 साल से संस्कृत में शिविरों में पढ़ा रहे हैं. उनसे ये पूछने पर कि शिक्षक ऐसी भाषा क्यों सिखाना चाहते हैं जिसके लिए कम लोग हैं? जवाब देते हैं कि संस्कृत हम सभी की माता है और हमारा कर्तन्य है कि हम उसका कम से कम कुछ परिचय प्राप्त करें. इसके अलावा उनका कहना है कि संस्कृत हमारी संस्कृति और विरासत का आधार है. हमारा लक्ष्य है कि शिक्षकों में संस्कृत भाषा के लिए जिज्ञासा पैदा हो. हम भाषा का एक परिचय प्रदान करते हैं. 

श‍िक्षक राजेश शर्मा

आगे क्या?  

दसवें दिन के बाद, यदि अभ्यास जारी नहीं रहा, तो ज्यादातर सीखा हुआ कुछ ही समय में भूल सकता है. इस पर राजेश शर्मा का कहना है कि प्रतिभागी फिर साप्ताहिक बैठकों का समन्वय कर सकते हैं या कम से कम वाट्सएप चैट्स तो संस्कृत में जारी रख सकते हैं. जो संस्कृत को लेकर सीर‍ियस होंगे, संस्कृत भारती पत्राचार सहित विभिन्न गहन पाठ्यक्रम प्रदान करता है. नई दिल्ली और वाराणसी में एक नवीन आवासीय 'संवादशाला' भी है जिसमें प्रतिभागी दो सप्ताह तक संस्कृत में डूबे रहते हैं. वो दैनिक गतिविधियां संस्कृत में करते हैं. उन्हें व्याकरण भी सिखाया जाता है. 

फिर भी जीवन की सामान्य व्यस्तता में बहुत कम छात्र वह सीखा हुआ अभ्यास जारी रख सकते हैं जो उन्होंने कार्यशाला में सीखा. वर्षों में, उनमें से कितने ने वास्तव में संस्कृत में बोलना जारी रखा होगा? इस पर राजेश शर्मा का जवाब है कि संख्या मायने नहीं रखती. मान लीजिए हम सौ लोगों को सिखाते हैं, और उनमें से केवल दस ही गंभीरता से पढ़ाई जारी रखते हैं लेकिन बाकियों ने भाषा का कुछ ज्ञान तो प्राप्त किया ही है और एक दिन अगर कोई उनसे कहे कि 'भवतः नाम किम्?' तो वे जवाब तो दे देंगे. 

SANSKRIT FOR ALL

ऐसे समय में जब संस्कृत को मात्र एक राजनीतिक प्रतीक बनने का खतरा है और स्कूलों में इसे अनिवार्य करने की जोरदार मांगें हो रही हैं. ऐसे में एक संभाषण संस्कृत पाठ्यक्रम उसी विचारधारा का एक हिस्सा लग सकता है. कई संस्कृत भारती शिक्षक और समन्वक RSS से जुड़े हैं. फिर भी दोनों के बीच कोई औपचारिक संबंध नहीं है. हां ये जरूर है कि जरूरत पड़ने पर आरएसएस का सहयोग मिल सकता है. अपनी ओर से संस्कृत भारतीकेवल भाषा के प्रचार के लिए कार्य करता है. 

कक्षाए सरस्वती वंदना के साथ शुरू होती हैं

सभी समुदाय इन कक्षाओं की ओर आकर्षित हुए हैं. तमिलनाडु और केरल जैसे कई राज्यों में संस्कृत सीखने में ईसाई और मुस्लिम शामिल हैं. असल में ये भाषा के बारे में है न कि धार्मिक पहचान के बारे में. इस आंदोलन के प्रणेता चमू कृष्ण शास्त्री अपनी वेबसाइट पर कहते हैं कि वे न केवल यह विश्वास करते हैं कि संस्कृत सभी की है, चाहे जात, लिंग, क्षेत्र या धर्म कुछ भी हो बल्कि सामाजिक सद्भावना के लिए भी काम किया है, विशेष रूप से उपेक्षित वर्गों के लिए, जो लंबे समय तक संस्कृत सीखने से वंचित रहे,. उनके लिए भी संस्कृत संभाषण शिविर आयोजित किए जाते हैं. 

Report: Ashish Mehta

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