हर साल वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स जारी होता है, जिसमें फिनलैंड और स्वीडन जैसे देश टॉप पर रहते आए. अमेरिका सबसे शक्तिशाली देश है. ड्रीम अमेरिका करीब-करीब सबको लुभाता है, लेकिन वहां के लोग भी प्रसन्नता से लदे-फदे नहीं घूमते. वहीं एक देश ऐसा है, जिसकी चर्चा भले न हो, लेकिन जहां की युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा संतुष्ट है. नब्बे की शुरुआत में सोवियत संघ से टूटकर आजाद हुआ ये देश जल्द ही काफी आगे निकल गया.
पिछले साल की हैप्पीनेस रिपोर्ट में माना गया कि लिथुआनिया में जेन Z सबसे खुशहाल है. रिपोर्ट के अनुसार, 30 साल से कम उम्र की लिथुआनियाई आबादी ने अपनी खुशी को 10 में से लगभग 8 नंबर दिए, जो बाकियों से काफी ज्यादा है. खुशी पर हुए सर्वे में एक खास बात ये भी दिखी कि अस्सी के दशक के बाद जन्मे लोगों की खुशी और संतोष का स्तर लगातार कम हो रहा है. डिजिटल दुनिया की वजह से कनेक्टिविटी तो है लेकिन यही बात अकेलापन और पीछे छूट जाने वाला डर भी ला रही है.
बाकी देशों के युवा जिन बातों से घबराए हुए हैं, लिथुआनिया में भी वो तमाम वजहें हैं, लेकिन फिर भी वहां के युवा खुशहाल हैं. लगभग चार दशक पहले हालात अलग थे. तब उस पर सोवियत संघ का कंट्रोल था. इकनॉमी से लेकर बोलने की आजादी भी सीमित थी. पलायन और असंतोष के बीच विद्रोह हुआ और लिथुआनिया आजाद हो गया.

तुरंत ही उसे यूरोपियन यूनियन में शामिल कर लिया गया. इंटरनेशनल मदद भी मिलने लगी, लेकिन ये उतनी ही थी, जिससे रसोई का बेसिक सामान जुट जाए लेकिन ईंधन न मिल सके. मुद्रा अस्थिर थी. जीवन स्तर तेजी से गिरने लगा. सत्ता बदलने लगी. सोवियत संघ के दौर से तुलना करें तो बोलने की आजादी थी, लेकिन अधभरे पेट के साथ. वक्त के साथ देश ने कई बदलाव किए. इसमें सबसे ज्यादा काम युवाओं पर हुआ.
सरकारी पढ़ाई पर ट्यूशन फीस खत्म कर दी गई. वहीं प्राइवेट कॉलेजों में मामूली फीस ली जा रही है. पढ़ाई के साथ यहां हल्के काम भी किए जा सकते हैं. तो स्टूडेंट्स बिना लोन लिए ये दोनों काम कर पा रहे हैं. गांव से शहर आए बच्चों के लिए कम कीमत पर घर उपलब्ध हैं. शहरों में छोटे-छोटे स्टूडियो अपार्टमेंट आसानी से मिल जाते हैं. स्टूडेंट्स अगर एकाध महीने या ज्यादा वक्त के लिए छुट्टी पर जाना चाहें तो किराए पर लिए कमरे को सब-लेट भी कर सकते हैं ताकि खर्चा निकल जाए. ये सारी सुविधाएं मानसिक तनाव काफी हद तक कम कर देती हैं.

लिथुआनिया भले ही छोटा देश है लेकिन वहां की नाइटलाइफ काफी चमक-दमक वाली है. राजधानी विलनियस के अलावा ज्यादातर शहरों में कॉस्मोपॉलिटन और स्थानीय थीम वाले रेस्त्रां भी मिल जाएंगे. नाइटलाइफ सिर्फ क्लब तक सीमित नहीं. थिएटर, आर्ट गैलरी, और लाइव कॉन्सर्ट पूरे सप्ताहांत चलते हैं. विलनियस का पुराना हिस्सा यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, जहां ऐतिहासिक चर्च, रंग-बिरंगे घर और संकरी गलियों में दुकानें चलती हैं. ये कुछ-कुछ ग्रीस जैसा दिखता है और पर्यटकों के साथ स्थानीय युवाओं को भी बांधे रखता है.
पढ़ाई-लिखाई के बाद आती है नौकरी की बात. तो रूस से जुड़ा होने के दौर में यहां सेंट्रलाइज्ड सिस्टम था, सब कुछ मॉस्को से चलता. आजादी के बाद बाजार खोल दिए गए. इसके साथ थी जीडीपी तेजी से बढ़ी. लोगों के पास काम के मौके बढ़े. लिथुआनिया में बेरोजगारी दर यूरोपियन यूनियन के औसत से भी कम है.
यही वजह है कि ड्रीम अमेरिका की पोटली बांध बाहर निकले युवा भी घर वापसी कर रहे हैं. यहां की सरकार ने एक नारा दिया- Kurk Lietuvai यानी देश के लिए काम करें! ये सूखा बुलावा नहीं, बल्कि सरकार लौटने वाले युवाओं को काफी छूट दे रही है ताकि वे स्टार्टअप शुरू कर सकें या कुछ ऐसा करें, जिससे उनके साथ देश भी आगे बढ़े. यही वजह है कि बीते पांच सालों में यहां री-माइग्रेशन बढ़ा.
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