150 जवानों की हत्या, 1 करोड़ का इनाम, 70 घंटे का ऑपरेशन... आतंक के पर्याय नक्सली बसवराजू के खात्मे की कहानी

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छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा जिलों के ट्राइ-जंक्शन अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षा बलों ने माओवादी संगठन सीपीआई (माओवादी) के महासचिव और सबसे कुख्यात नक्सली नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को मार गिराया. इसे नक्सलवाद विरोधी अभियान में ऐतिहासिक सफलता मानी जा रही है. बुधवार को समाप्त हुए इस ऑपरेशन में कुल 27 नक्सली मारे गए है. इसमें सबसे अहम नाम बसवराजू का है, जो पिछले चार दशक से सबसे खतरनाक नक्सल नेटवर्क का रणनीतिकार बना हुआ था.

नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू पर छत्तीसगढ़ सरकार ने एक करोड़ रुपए का इनाम घोषित किया था. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी उस पर अलग-अलग इनाम घोषित थे. उसकी गिनती उन चुनिंदा नक्सल नेताओं में होती थी जो पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति दोनों सर्वोच्च निकायों में शामिल था. उसे एक ऐसा नक्सल नेता माना जाता था जो जंगल में अपनी तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था और नेटवर्क के कारण कभी भी पकड़ा नहीं गया. लेकिन इस बार सुरक्षा बलों ने उसे चकमा देते हुए मार गिराया है.

बसवराजू का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेटा गांव में हुआ था. उसने वारंगल के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया था. लेकिन पढ़ाई के बाद उसने बंदूक उठा लिया. साल 1970 के दशक में उसने नक्सली आंदोलन से जुड़कर प्रकाश, कृष्णा, विजय, उमेश और कमलू जैसे कई छद्म नामों से काम करना शुरू कर दिया. वो शुरू में जमीनी कार्यकर्ता था, लेकिन जल्द ही संगठन की रणनीति और हथियारों की ट्रेनिंग में माहिर हो गया. साल 1992 में उसे पीपुल्स वार ग्रुप की केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया. 

उस वक्त इस ग्रुप का महासचिव गणपति हुआ करता था. बसवराजू को गणपति और सीतारामैया जैसे नेताओं से गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण मिला. उसने धीरे-धीरे सैन्य रणनीति, आईडी और बारूदी सुरंगों के संचालन में महारत हासिल कर लिया. साल 2018 में बसवराजू को सीपीआई (माओवादी) का महासचिव नियुक्त किया गया. उसने गणपति की जगह ली, जिसने उम्र और बीमारी के चलते पद छोड़ दिया था. लेकिन बसवराजू की कमजोरी यह रही कि उसके पास संगठन को राजनीतिक रूप से चलाने का अनुभव नहीं था.

बसवराजू की मौत नक्सल नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने जैसा

इसलिए सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उसके कार्यकाल में माओवादी आंदोलन रणनीतिक रूप से कमजोर हुआ. हालांकि वह सैन्य अभियानों के लिए जिम्मेदार रहा और बस्तर में कई बड़े हमलों की साजिश रचता रहा. सुरक्षा विशेषज्ञ और प्रोफेसर डॉ. गिरीशकांत पांडे बताते हैं, "बसवराजू एक सैन्य रणनीतिकार था लेकिन उसके पास राजनीतिक सोच का अभाव था. उसके नेतृत्व में माओवादी आंदोलन ने दिशा खो दी. यही वजह है कि माओवादी आंदोलन दिशा भटक गया. उसकी मौत माओवादी नेटवर्क की रीढ़ तोड़ने जैसा है.''

बसवराजू के कार्यकाल में हुए बड़े नक्सली हमले...

2003 में अलीपीरी बम विस्फोट:- आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू की हत्या का प्रयास.
2010 में दंतेवाड़ा नरसंहार:- इस हमले में 76 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे.
2013 में झीरम घाटी हमला:- इसमें वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग मारे गए थे.
2019 में श्यामगिरी हमला:- बीजेपी विधायक भीमा मंडावी सहित पांच लोग मारे गए.
2020 में मिनपा एंबुश:- सुकमा में हुए नक्सली हमले में 17 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे.
2021 में टेकलगुड़ेम हमला:- बीजापुर में उस साल का सबसे बड़ा नक्सली हमला, जिसमें 22 जवान शहीद हो गए.

सुरक्षा घेरे को तोड़ने में सफल रहे सुरक्षा बल

सुरक्षा बलों को खुफिया सूचना मिली थी कि बसवराजू समेत संगठन की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो के कई सदस्य अबूझमाड़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा ट्राई-जंक्शन पर डेरा डाले हुए हैं. इसके बाद चार जिलों नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और कोंडागांव की डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड, एसटीएफ और अन्य इकाइयों ने संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया. 70 घंटे चले इस अभियान में एक बड़े जंगल क्षेत्र की घेराबंदी की गई. मुठभेड़ के दौरान भारी गोलीबारी हुई. सुरक्षा बल बसवराजू के सुरक्षा घेरे को तोड़ने में सफल रहे. 

बसवराजू की मौत, नक्सलियों के लिए झटका

इस अभियान में बसवराजू मारा गया. ऑपरेशन में डीआरजी का एक जवान शहीद हुआ, जबकि कुछ अन्य घायल हुए. बड़ी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद और इलेक्ट्रॉनिक सामग्री बरामद की गई. उसकी मौत से सीपीआई (माओवादी) को बड़ा झटका लगा है. सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अब संगठन में ऐसा कोई अनुभवी नेता नहीं बचा है जो 40 से 50 वर्ष की उम्र का हो और नेतृत्व की क्षमता रखता हो. मौजूदा नेतृत्व या तो बुजुर्ग है या अनुभवहीन है. इससे नक्सली नेटवर्क के बिखराव की आशंका जताई जा रही है.

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