मध्यप्रदेश में स्कूलों के जर्जर हालात की तस्वीरें आए दिन सामने आती रहती हैं. सवाल यह उठता है कि स्कूलों के रखरखाव के लिए राज्य और केंद्र सरकार से मिलने वाली मदद के बावजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर के हालात में सुधार क्यों नहीं आ पाता है? इसका जवाब शहडोल जिले के सकंदी और निपनिया सरकारी स्कूलों में कराए गए काम के वायरल हो रहे बिलों में मिलता है. अगर बिलों पर जाएं तो सकंदी के स्कूल में 4 लीटर पेंट की पुताई के साथ-साथ 168 मजदूरों और 65 मिस्त्रियों का भुगतान निकाल लिया गया. बिल देखने पर यही लगता है कि क्या 4 लीटर पेंट की पुताई करने में इतने मजदूर और मिस्त्री लग गए?
इस मामले में aajtak ने ब्यौहारी के एसडीएम नरेंद्र सिंह धुर्वे से फोन पर बातचीत की. उनका कहना था कि फर्जीवाड़े की खबर मिलते ही वे जांच के लिए स्कूल गए थे. स्कूल में कराया गया काम गुणवत्ताविहीन तो है ही, साथ ही अपूर्ण भी है. उन्होंने सारे दस्तावेज जांच के लिए मंगवाए हैं और जांच के बाद दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी.
SDM का यह भी कहना था कि स्कूल की छत की मरम्मत का काम कराया गया था, जिसमें मजदूर और मिस्त्री लगाने की बात सामने आ रही है. वायरल हो रहा बिल अधूरा है, एक और बिल है, जिसमें बाकी सामग्री का उल्लेख है.
ब्यौहारी विकासखंड के शासकीय हाई स्कूल ग्राम सकंदी में फर्जी बिल में 168 मजदूर और 65 राजमिस्त्री 4 लीटर ऑयल पेंट की पुताई के लिए लगे थे, जिसकी राशि 1 लाख 6 हजार 984 रुपए कोषालय से निकाल ली गई है.
इसी तरह शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय निपनिया में भी 275 मजदूर और 150 राजमिस्त्री, 20 लीटर ऑयल पेंट की पुताई, 10 खिड़कियां लगवाने और चार दरवाजों की फिटिंग के लिए 2 लाख 31 हजार 685 रुपए निकाले गए हैं.गौरतलब है कि दोनों स्कूलों में मेंटेनेंस फंड से कार्य कराया गया है. हैरानी की बात यह है कि स्कूल जहां मौजूद हैं, वहां इतने राजमिस्त्री और मजदूर नहीं हैं.
इसका बिल 'सुधाकर कंस्ट्रक्शन' ग्राम पंचायत ओदारी, तहसील ब्यौहारी के नाम से लगाया गया है, जिसमें निपनिया प्रिंसिपल ने 4 अप्रैल 2025 को बिल सत्यापित किया है, जबकि सुधाकर कंस्ट्रक्शन (ओदारी, तहसील ब्यौहारी) की ओर से 5 मई 2025 को बिल तैयार किया गया. अब सवाल यह उठता है कि प्राचार्य की ओर से एक महीने पहले ही उक्त बिल को सत्यापित कर दिया गया, जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है.
ज्ञात हो कि ट्रेजरी ऑफिसर द्वारा बिल का भुगतान कर दिया गया है. मध्यप्रदेश में ग्रामीण स्कूलों की जर्जर हालत क्यों है? इसका जवाब शहडोल के इस मामले से मिल जाता है. पहले स्कूलों का निर्माण गुणवत्ताविहीन किया जाता है. बाद में समय-समय पर मेंटेनेंस के लिए मिलने वाली राशि का इसी तरह बंदरबांट कर लिया जाता है. हालात सुधरें तो सुधरें कैसे?
बहरहाल, जब बिल सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा, तो अधिकारियों ने जांच कराने की बात शुरू कर दी. जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मरपाची का कहना है कि मामले की जांच करवाई जा रही है.
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