छत्तीसगढ़ का प्रमुख चिकित्सा संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) रायपुर डॉक्टरों और स्टाफ की कमी से जूझ रहा है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में 35 डॉक्टर इस्तीफ़ा दे चुके हैं. संस्थान में लगभग 40% फैकल्टी पद खाली हैं.
संस्थान छोड़ने वाले डॉक्टरों ने अपने परिवार के ट्रांसफर और प्राइवेट इंडस्ट्री में बेहतर अवसरों को अपने जाने का प्रमुख कारण बताया है, हालांकि कोई भी कैमरे पर बोलने को तैयार नहीं था.
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने इस संकट को स्वीकार करते हुए कहा कि सरकार डॉक्टरों को बनाए रखने के लिए कदम उठा रही है, लेकिन उन्होंने व्यापक चुनौतियों की ओर भी इशारा किया.
उन्होंने बताया कि राज्य भर में कई एनएचएम कर्मचारी 10 मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं, जिनमें से चार मांगें पहले ही मान ली गई हैं, जिनमें 27% वेतन वृद्धि, 5 लाख रुपए के कैशलेस इलाज का प्रावधान, मनमाने ढंग से बर्खास्तगी से सुरक्षा और सालाना 30 दिनों का सवेतन अवकाश शामिल है.
मंत्री जायसवाल ने कहा कि ट्रांसफर पॉलिसी, अनुकंपा नियुक्ति और वेतन ग्रेड संशोधन जैसी शेष मांगों पर विचार करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है, जिसकी रिपोर्ट तीन महीने में आने की उम्मीद है.
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव ने कहा कि यह पलायन कई कारणों से हुआ है, जिनमें करियर में उन्नति, निजी अस्पतालों में ज़्यादा वेतन और दूसरे राज्यों में जीवनसाथी की नियुक्ति के कारण तबादला शामिल हैं. उन्होंने इस नकारात्मक धारणा को दूर करने की ज़रूरत पर भी जोर दिया कि छत्तीसगढ़ एक नक्सल प्रभावित राज्य है, जो युवा डॉक्टरों को एम्स रायपुर में जाने से रोकता है.
स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर तत्काल उपाय नहीं किए गए, तो कर्मचारियों की कमी और बढ़ सकती है, जिससे मध्य भारत के लाखों मरीजों को गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करने की संस्थान की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
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