आज या कल, कब है गोवर्धन पूजा? जानें क्या रहेगा पूजन का मुहूर्त

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Govardhan Puja 2025: गोवर्धन पूजा दिवाली के बाद मनाया जाता है. ये प्रकृति की पूजा है, जिसका आरंभ भगवान कृष्ण ने किया था. इस दिन समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा होती है. ये पूजा ब्रज से आरंभ हुई थी और धीरे धीरे ये पूजा पूरे भारतवर्ष में प्रचलित हो गई. यह त्योहार विशेष रूप से ब्रज (मथुरा, वृंदावन), गुजरात और राजस्थान में धूमधाम से मनाई जाता है.

इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा होती है, जिसे भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर उठा कर इंद्रदेव के अहंकार को दूर किया था. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान को छप्पन भोग यानी 56 प्रकार के व्यंजन जैसे दाल, चावल, मिठाई, फल, सब्जी आदि अर्पित किए जाते हैं. ये भोग भगवान के प्रति कृतज्ञता और प्रेम का प्रतीक है. इस बार यह त्योहार 22 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा.

गोवर्धन पूजा 2025 तिथि (Govardhan Puja 2025 Tithi)

पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 54 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 22 अक्टूबर को रात 8 बजकर 16 मिनट पर होगा.

गोवर्धन पूजा का पूजन मुहूर्त (Govardhan Puja 2025 Pujan Muhurat)

द्रिक पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा का पहला मुहूर्त 22 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 26 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. दूसरा मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर शाम 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. इस दिन शाम की पूजा का मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 29 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.

गोवर्धन पूजा 2025 पूजन विधि (Govardhan Puja 2025 Pujan Vidhi)

इस दिन सुबह जल्दी उठकर घर और आंगन की साफ-सफाई करें. फिर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत जैसा छोटा सा पर्वत बनाएं या यदि संभव न हो तो अनाज से भी बना सकते हैं. इसके आस-पास बछड़े और ग्वालिन की मूर्तियां रखकर दीपक, फूल, जल और अन्न अर्पित करें. पूजा के बाद गोवर्धन की परिक्रमा करें.

गाय और बछड़ों की भी इस दिन पूजा होती है. उन्हें गुड़ खिलाएं और चारा जरूर दें. इससे घर में सुख-समृद्धि आती है और बच्चों का व्यवहार भी सुधारता है. जो लोग डिप्रेशन या चिंता से पीड़ित हैं, उनके लिए भी गौ पूजा लाभदायक मानी जाती है. पूजा के बाद भगवान को छप्पन भोग लगाएं और उसे ब्राह्मण, गरीब और अपने परिवार में बांटें. इससे घर में समृद्धि बढ़ती है. साथ ही इस दिन दीपदान जरूर करें, जिससे अंधकार दूर होता है और जीवन में खुशहाली आती है. 

गोवर्धन पूजा पौराणिक कथा (Govardhan Puja katha)

विष्णु पुराण में गोवर्धन पूजा के महत्व का वर्णन मिलता है. बताया जाता है कि देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया था और भगवान श्री कृष्ण इंद्र के अहंकार को चूर करने के लिए एक लीला रची थी. इस कथा के अनुसार एक समय गोकुल में लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ गीत गा रहे थे. यह सब देखकर बाल कृष्ण ने यशोदा माता से पूछा कि, आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं. कृष्ण से सवाल पर मां यशोदा ने कहा कि, हम देवराज इंद्र की पूजा कर रहे हैं. माता यशोदा के जवाब पर कृष्ण ने फिर पूछा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं. तब यशोदा मां ने कहा कि, इंद्र देव की कृपा से अच्छी बारिश होती है और अन्न की पैदावार होती है, हमारी गायों को चारा मिलता है. माता यशोदा की बात सुनकर कृष्ण ने कहा कि, अगर ऐसा है तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि हमारी गाय वहीं चरती है, वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से बारिश होती है. श्री कृष्ण की बात मानकर सभी गोकुल वासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी.

यह सब देख देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. प्रलयकारी वर्षा देखकर सभी गोकुल वासी घबरा गए. इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और गोवर्धन पर्वत को छोटी सी उंगली पर उठा लिया और समस्त ग्राम वासियों को पर्वत के नीचे बुला लिया. यह देखकर इंद्र ने बारिश और तेज कर दी लेकिन 7 दिन तक लगातार मूसलाधार बारिश के बावजूद गोकुल वासियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. इसके बाद इंद्र को अहसास हुआ कि मुकाबला करने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता है. इंद्र को जब यह ज्ञान हुआ कि वह भगवान श्री कृष्ण से मुकाबला कर रहा था, इसके बाद इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा याचना की और स्वयं मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया. इस पौराणिक घटना के बाद से गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई.

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