एयर इंडिया प्लेन क्रैश: हादसे में अकेले बचने वाले लोगों को जिंदगी भर सताती है ये बीमारी

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विश्वास कुमार रमेश खुद को 'सबसे भाग्यशाली इंसान' कहते हैं, लेकिन उनके इन शब्दों के पीछे गहरा दर्द छिपा है. 12 जून को अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया प्लेन हादसे में 241 लोगों की जान चली गई थी और रमेश अकेले जिंदा बचे थे. उसी फ्लाइट में उनके छोटे भाई अजय भी थे, जो उनसे महज कुछ ही सीट दूर बैठे थे. रमेश जलते हुए मलबे से किसी तरह बचकर बाहर निकले, लेकिन उस दिन की यादें अब भी उनका पीछा नहीं छोड़ती हैं. वे कहते हैं, 'मुझे अब भी लगता है कि मैं उसी पल में फंसा हुआ हूं. रातों को नींद नहीं आती. सबसे ज्यादा यही सवाल सताता है जब मेरा भाई नहीं बचा, तो मैं क्यों बच गया?' हादसे ने ना केवल उनकी फिजिकल कंडीशन बल्कि मानसिक स्थिति को भी हिलाकर रख दिया है.  

48 साल के रमेश अब इंग्लैंड के लीसेस्टर में रहते हैं, लेकिन कहते हैं कि उनका जीवन पूरी तरह बदल गया है. रमेश ने बताया, 'मैं ज्यादातर समय अपने कमरे में अकेला बैठा रहता हूं. न अपनी पत्नी से बात करता हूं, न बेटे से. दिमाग से वो रात निकलती ही नहीं है.' 

रमेश की मानें तो उनके शरीर में अब भी दर्द रहता है, जिसका कारण उनके पैरों, कंधों और पीठ पर लगी चोट हैं, लेकिन सबसे बड़ा दर्द उनके अंदर है. रमेश कहते हैं, 'मेरा भाई मेरा सहारा था. उसने हमेशा मेरा साथ दिया. अब मैं बिल्कुल अकेला हूं.' डॉक्टरों ने उन्हें पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) बताया है, लेकिन घर लौटने के बाद से उन्हें ठीक से इलाज नहीं मिला. अब सवाल ये है कि आखिर पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर होता क्या है? इसके लक्षण क्या हैं और ये कब जानलेवा हो जाता है? 

PTSD क्या होता है?

PTSD यानी 'आघात के बाद का मानसिक तनाव.' मतलब जब कोई इंसान किसी बहुत डरावने या दर्दनाक हादसे से गुजरता है, तो उस घटना का असर उसके मन और सोच पर लंबे समय तक बना रहता है. ऐसे में दिमाग बार-बार वही घटना याद करता है, जैसे वह आज भी हो रही हो. यही PTSD है. विश्वास कुमार रमेश को भी 12 जून को हुआ प्लेन क्रैश हादसा हर वक्त सता रहा है.  

क्या होते हैं PTSD के लक्षण?
जब कोई इंसान किसी डरावनी या दर्दनाक घटना से गुजरता है, तो उसका असर लंबे समय तक रह सकता है. ऐसे लोग अक्सर

  • बार-बार उस हादसे को याद करते हैं (बुरे सपने के जरिए) 
  • अपने बच जाने पर गिल्ट या शर्म महसूस करते हैं.
  • उन जगहों या चीजों से बचते हैं जो उन्हें उस घटना की याद दिलाएं.
  • नींद न आना, ध्यान न लगना या लोगों से बात करने का मन न होना जैसी दिक्कतें झेलते हैं.
  • खुद को अंदर से सुन्न, उदास महसूस करते हैं और कभी-कभी आत्महत्या जैसे विचार भी आ सकते हैं.

एक्सपर्ट्स की मानें तो ऐसे लगभग 8 से 15% लोग जो किसी बड़े सदमे से गुजरते हैं, उन्हें PTSD हो सकता है, जिसके लिए प्रोफेशनल मदद जरूरी होती है.

जब हादसे में जान बच जाना भी लगे गलती
रमेश जैसे कई लोग सर्वाइवर गिल्ट से भी जूझते हैं. ऐसे लोग अपने आप से ये सवाल करते रहते हैं, 'मैं कैसे बच गया जबकि बाकी नहीं बचे?' मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, ये एक तरह का गहरा शोक है. अगर ये भावना लंबे समय तक बनी रहे या रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करे, तो ये PTSD या डिप्रेशन का लक्षण हो सकता है.

एक स्टडी में पाया गया कि हादसे या विस्फोट के सालों बाद भी कई लोग PTSD के लक्षण झेल रहे थे. खासकर वो जिन्होंने अपने किसी रिश्तेदार या सगे-संबंधी को खोया हो.

सदमे से कैसे उबरा जा सकता है?  
एक्सपर्ट्स का कहना है कि PTSD से उबरने में वक्त और मदद दोनों की जरूरत होती है. जो हुआ उसके बारे में खुलकर बात करना, परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, या किसी ग्रुप से जुड़ना बहुत मदद कर सकता है.

कई लोग दूसरों की मदद करके अपने दर्द में अर्थ ढूंढते हैं, जैसे पीड़ितों के परिवारों को मदद देना या अपने सगे-संबंधियों की याद में कोई अच्छा काम करना. एक्सपर्ट के शब्दों में, 'जब आप अपने दर्द को किसी अच्छे काम में बदलते हैं, तो धीरे-धीरे मन हल्का होने लगता है.'

हमेशा राहत की बात नहीं होती जान बच जाना
फिल्ममेकर काई डिकेंस कहते हैं, 'जो लोग बच जाते हैं, वे भी अपने अंदर बहुत कुछ खो देते हैं. उन्हें ‘चमत्कार’ कहना अच्छा तो लगता है, लेकिन इससे उन पर ‘मजबूत बने रहने’ का दबाव और बढ़ जाता है.'

रमेश कहते हैं, 'शरीर का दर्द तो शायद ठीक हो जाएगा, लेकिन दिल का दर्द अब भी ताजा है.' उनका बिजनेस बर्बाद हो चुका है और वो मानसिक और आर्थिक दोनों स्तर पर संघर्ष कर रहे हैं. एयर इंडिया की ओर से मुआवजा और औपचारिक सहायता जरूर दी जा रही है, लेकिन रमेश को अब असली जरूरत लंबे समय की मानसिक देखभाल और इंसानियत भरे साथ की है. क्योंकि किसी हादसे से बच जाना कहानी का अंत नहीं होता बल्कि एक नई शुरुआत होती है, जिसमें फिर से जीने की हिम्मत जुटानी पड़ती है.

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