एक पायलट ने पूछा, 'तुमने फ्यूल क्यों बंद कर दिया?' दूसरे ने जवाब दिया, 'मैंने ऐसा नहीं किया.' 12 जून को एअर इंडिया बोइंग 787-8 के हादसे का शिकार होने से कुछ सेकेंड पहले की यह बातचीत फ्लाइट ऑडियो रिकॉर्डर से बरामद हुई है. यह खुलासा भारतीय विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) की ओर से हादसे के ठीक एक महीने बाद शेयर की गई अंतरिम रिपोर्ट का हिस्सा था.
कॉकपिट की वीडियो रिकॉर्डिंग क्यों नहीं?
इस रिपोर्ट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं और कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर की मांग भी तेज हो गई है. लोगों का कहना है कि जब ऐसे हालात में वीडियो फुटेज से सटीक जवाब मिल सकते हैं, तो सिर्फ़ ऑडियो पर ही निर्भर क्यों रहें?
भारत और विदेश में लोग पूछ रहे हैं कि जिन विमानों में इतने हाईटेक इलेक्ट्रॉनिक्स होते हैं, उनके कॉकपिट में कैमरे क्यों नहीं हो सकते, जो विकट परिस्थितियों में लिए गए फैसले और एक्शन को रिकॉर्ड कर सकें.
नए विमानों में कैमरे लगाना मुमकिन
हालांकि विमानों के औसतन एक दशक पुराने होने की वजह से कॉकपिट में कैमरे लगाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन नए विमानों में कैमरे लगाना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए. हवाई हादसे की जांच करने वाली एक स्वतंत्र अमेरिकी सरकारी एजेंसी, राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (NTSB) ने करीब 25 साल पहले कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर की मांग की थी.
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अगर कारों और ट्रकों में कैमरे लग सकते हैं, तो हवाई जहाज़ों में क्यों नहीं? अहमदाबाद में हुए एअर इंडिया विमान हादसे के बाद भारत और विदेश दोनों जगह लोग यही सवाल पूछ रहे हैं. इस भयावह विमान हादसे में 260 लोग मारे गए थे, जिनमें कई विदेश नागरिक भी शामिल थे.
किस बात को लेकर विरोध?
कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर के लिए सबसे बड़ी बाधा खुद पायलट हैं. उनका तर्क है कि कॉकपिट से ली गई फुटेज प्राइवेसी का उल्लंघन करेगी क्योंकि पायलट बहुत ज्यादा तनावपूर्ण हालात में बेफिक्र होकर काम करते हैं, और यह उस कल्चर को भी प्रभावित करेगा जहां जूनियर पायलट सीनियर पायलटों की टिप्पणियों और फैसलों पर सवाल उठाते हैं. पायलटों को यह भी डर है कि एयरलाइन कंपनियां कैमरों का इस्तेमाल उन पर नजर रखने के लिए कर सकती हैं.
फिर यह डर भी है कि हवाई हादसे के वीडियो लीक हो सकते हैं, जैसे कुछ मामलों में फ्लाइट रिकॉर्डर से ऑडियो लीक हो गया है और इससे पीड़ितों के रिश्तेदारों को गहरा सदमा पहुंच सकता है.
कामकाज प्रभावित होने का तर्क
कॉकपिट कैमरों का विरोध खास तौर पर अमेरिका में यूनियनों की ओर से किया जाता है, जहां एविएशन इंडस्ट्री की विशालता और पायलटों की संख्या को देखते हुए ये प्रभावशाली हैं. पायलटों की कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर को लेकर दूसरी आपत्ति यह है कि उन्हें, खास तौर से गंभीर हालात में ऐसे काम करने पड़ते हैं जो निर्धारित मानदंडों के खिलाफ होते हैं, और एक कैमरा उन गतिविधियों को रिकॉर्ड करेगा. कैमरा एक ऑब्जर्बर का रोल निभाएगा. ऐसे में पायलट तर्क देते हैं कि इस माहौल के साथ वे बेहतर ढंग से काम नहीं कर सकते.
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कमर्शियल प्लेन में फ्लाइट वीडियो रिकॉर्डर क्यों नहीं होते, यह सवाल समझ में आता है, क्योंकि पायलट कॉकपिट से घंटों वीडियो शेयर करते हैं और ऐसे फुटेज Flightradar24, जस्ट प्लेन्स और एविएशन अट्रैक्ट जैसी एविएशन साइट्स के यूट्यूब चैनलों पर अपलोड करते हैं. इसके अलावा बीजिंग, चीन निर्मित व्यावसायिक विमानों के कॉकपिट में कैमरे लगाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
सीक्रेसी बनाम सिक्योरिटी की बहस
हालांकि, कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर न होने का मुद्दा सीक्रेसी बनाम सिक्योरिटी की बहस पर आकर रुक जाता है. कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर विमान के ब्लैक बॉक्स का हिस्सा होते हैं. हादसों से बचने के लिए मजबूत बाहरी आवरण से बने और मलबे के बीच आसानी से देखे जाने के लिए ऑरेंज कलर के ब्लैक बॉक्स, हवाई हादसे की जांच के लिए काफी अहम होते हैं.
जहां एक ओर उड़ान डेटा रिकॉर्डर विमान के सेंसरों से सैकड़ों पेरामीटर्स को रिकॉर्ड करता है, वहीं दूसरी ओर कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर पायलटों और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) के बीच बातचीत और आवाजें रिकॉर्ड करता है. बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर में दो ब्लैक बॉक्स होते हैं, एक आगे की ओर और दूसरा पीछे की ओर टेल के पास.
विमान के दोनों ब्लैक बॉक्स बरामद
एक सरकारी बयान के मुताबिक दुर्घटनाग्रस्त हुए एअर इंडिया विमान के कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर दोनों बरामद कर लिए गए हैं. एक 13 जून को दुर्घटना स्थल पर स्थित इमारत की छत से और दूसरा 16 जून को विमान के मलबे से मिला है.
ब्लैक बॉक्स 24 जून को अहमदाबाद से दिल्ली लाए गए थे ताकि AAIB लैब में टीम और एनटीएसबी की तकनीकी टीम की ओर से उनकी स्टडी की जा सके. 26 जून की रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, जांचकर्ताओं की ओर से डेटा पूरी तरह से डाउनलोड कर लिया गया था.
पायलटों की बातचीत से उठे सवाल
पंद्रह पेजों की प्रारंभिक रिपोर्ट, जिसमें पायलटों के बीच हुई बातचीत का जिक्र किया गया था, एएआईबी की तरफ से 12 जुलाई को के बाद जारी की गई. कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर के खुलासे से गड़बड़ी और सुसाइड सहित कई थ्योरीज को बल मिला है.
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रिपोर्ट जारी होने के तुरंत बाद, एयरलाइन पायलट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एएलपीए-इंडिया), जो 800 से ज्यादा पायलटों का प्रतिनिधित्व करता है, ने जांच की दिशा पर कड़ी आपत्ति जताई और आरोप लगाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि जांच में पायलटों के अपराध को मानकर काम किया जा रहा है.
'हादसे में मानवीय भूल के सबूत नहीं'
पायलटों के संघ ने कहा कि वह एअर इंडिया विमान दुर्घटना जांच दल में अपने सदस्यों को शामिल करने के लिए कानूनी उपाय पर विचार कर रहा है. यह सच है कि मृतक अपना बचाव नहीं कर सकते और एविएशन सेक्टर की बड़ी कंपनियों के पास अच्छी तरह से संचालित पीआर मशीनरी है.
बकिंघमशायर न्यू यूनिवर्सिटी में एविएशन ऑपरेशंस के सीनियर लेक्चरर और पूर्व पायलट मार्को चान ने फ्रांस24 को बताया, 'कॉकपिट डायलॉग की एक भी लाइन मानवीय भूल का सबूत नहीं है और रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि स्विच क्यों हिले और क्या यह एक्शन ह्यूमन, मैकेनिकल या इलेक्ट्रॉनिक थी.'
ऐसे हालात को देखते हुए कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर से स्थिति को समझने में मदद मिल सकती थी, क्योंकि उड़ान भरने के तुरंत बाद पायलटों को थ्रस्ट की कमी से जूझना पड़ा था, क्योंकि किसी तरह दोनों इंजनों की फ्यूल सप्लाई बंद कर दी गई थी.
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