इजरायल और आतंकी संगठन हमास के बीच जंग डोनाल्ड ट्रंप के बीच-बचाव से रुक चुकी. अब चरण-दर-चरण चीजें हो रही हैं. इजरायली सेना पीछे हट चुकी. बंधक लौटाए जा चुके. इससे पहले कि गाजा को नए सिरे से बनाया जाए, हमास को हथियार छोड़ना होगा. यही समस्या है. सत्ता और ताकत का स्वाद चख चुका गुट इसके लिए आसानी से तैयार नहीं दिखता.
इसकी तुलना आयरलैंड में हुए गुट फ्राइडे एग्रीमेंट से हो रही है, जब एक मिलिटेंट संगठन ने डिसआर्म होने में दशकभर लगा दिया था.
क्यों हो रही चर्चा
कुछ हफ्तों पहले जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी 20 पॉइंट वाली गाजा शांति योजना पेश की, तो कई जानकारों ने कहा कि इसमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की एक पुरानी डील की झलक दिखती है- गुड फ्राइडे एग्रीमेंट. यह समझौता साल 1998 में हुआ था, जिसने उत्तरी आयरलैंड में करीब 30 साल से चल रहे हिंसक झगड़ों को खत्म करने की शुरुआत की थी.
पॉलिटिको की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप की योजना में कई बातें ऐसी हैं जो या तो गुड फ्राइडे एग्रीमेंट से ली गईं या उससे प्रेरित लगती हैं, खासकर हथियार छोड़ने की बात.
क्या हुआ था आयरलैंड में
इसके उत्तरी हिस्से में साठ के दशक के आखिर से लेकर साल 1998 तक संघर्ष चला. इसमें कत्लेआम इतना ज्यादा था, कि इसे द ट्रबल्स कहा गया. यह संघर्ष धार्मिक और राजनीतिक दोनों वजहों से था. एक तरफ थे कैथोलिक आयरिश राष्ट्रवादी, जो चाहते थे कि उत्तरी आयरलैंड ब्रिटेन से अलग होकर आयरलैंड रिपब्लिक का हिस्सा बन जाए. दूसरी तरफ थे प्रोटेस्टेंट यूनियनिस्ट, जो ब्रिटेन के साथ रहना चाहते थे. टकराव धीरे-धीरे हिंसक बगावत में बदल गया.
गाजा पट्टी में विस्थापितों की वापसी शुरू हो चुकी है. (Photo- AP)यहीं पर आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) का रोल आया. उसने ब्रिटिश सेना और पुलिस पर हमले शुरू कर दिए. संघर्ष में साढ़े तीन हजार से ज्यादा मौतें हुईं और हजारों लोग जख्मी हो गए.
समझौते के बाद भी बना रहा तनाव
कई कोशिशों के बाद आखिरकार नब्बे के अंत में ब्रिटेन, आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड की पार्टियों ने मिलकर गुड फ्राइडे एग्रीमेंट पर दस्तखत किए. ऊपरी तौर पर तो शांति आ गई लेकिन आईआरए ने हथियार छोड़ते-छोड़ते लगभग पूरा दशक ले लिया. दरअसल उसे डर था कि डिसआर्म होते ही दुश्मन ताकतें उसे धोखा दे सकती हैं. इससे उनकी राजनीतिक मांगें अधूरी रह जातीं. इसलिए उन्होंने पहले यह देखना चाहा कि गुड फ्राइडे एग्रीमेंट सच में लागू हो रहा है या नहीं.
दूसरी वजह थी, दल के लड़ाकों और समर्थकों का गुस्सा. तीन दशक की हिंसा में हजारों लोग मारे गए थे. गुट ये मानने को राजी नहीं था कि लड़ाई खत्म हो चुकी. उनके लिए हथियार छोड़ने का मतलब था, अपने मकसद से पीछे हट जाना.
वे छुटपुट हिंसा करते ही रहे. इस दौरान ब्रिटेन और आयरलैंड की सरकारों ने गुड फ्राइडे एग्रीमेंट को ठोस रूप देना शुरू किया.
- कैद किए गए आईआएए लड़ाके रिहा कर दिए गए.
- ब्रिटिश सैनिकों को आयरलैंड से हटाया गया.
- दल की राजनीतिक शाखा को पॉलिटिक्स में जगह मिली.
- अंतरराष्ट्रीय निगरानी भी रही ताकि पक्का हो कि हथियार नष्ट हो रहे हैं. इससे दोनों पक्ष आश्वस्त हुए.
उत्तरी आयरलैंड की तरह ही आशंका है कि हमास भी उसी डर में जीते हुए जल्दी हथियार नहीं छोड़ सकेगा. पहला चरण लगभग पूरा हो चुका, जिसमें कैदियों और बंधकों का लेन-देन शामिल था. अब दूसरा स्टेप है. यहीं पर हमास और उसके साथी गुटों को अपने हथियार छोड़ने हैं. यही सबसे मुश्किल हिस्सा माना जा रहा है.
गाजा का इंफ्रास्ट्रक्चर नए सिरे से बनाने में अमीर पड़ोसी देशों से मदद की गुहार की जा चुकी. (Photo- AP)हमास को इसके बाद राजनीति से भी दूरी बनानी होगी. सत्ता शून्यता की स्थिति में कई पुराने समूह आ चुके हैं, जो गाजा पट्टी पर अपना दावा मजबूत कर रहे हैं. हमास ने उन तमाम समूहों पर हमले शुरू कर दिए. इससे साफ है कि उसे सत्ता में बने रहने की इच्छा है. अब तक हथियार छोड़ने की जितनी भी कार्रवाई हुई, वह बहुत सीमित रही.
हमास क्यों आसानी से डिसआर्म नहीं होगा
- हथियार उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं. इसी के बूते अब तक वो राजनीति में पकड़ बनाए हुए था.
- उसे शक है कि अगर उसने हथियार छोड़े, तो इजरायल या फिलिस्तीनी विरोधी समूह उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.
- हमास के भीतर कई अलग-अलग गुट हैं, जिनमें हथियारों को लेकर अलग राय है.
- अब तक ये साफ नहीं कि हथियार न डालने वालों को किस देश में भेजा जाएगा.
किसके हवाले करेगा हथियार
एक समस्या ये भी है कि हमास अपने हथियार सौंपे किसे! वो जाहिर तौर पर इजरायल या अमेरिका पर भी भरोसा नहीं कर सकता. ऐसे में सबसे आसान तरीका यही है कि संगठन अपने हथियार अंतरराष्ट्रीय शांति सेना को सौंप दे, वो भी लिखित एग्रीमेंट के साथ. इसपर भी बात चल रही है, लेकिन ये तय है कि यह प्रोसेस लंबी और चुनौतियों से भरी होगी.
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