गाजा-इजराइल के बीच डेढ़ सालों से ज्यादा वक्त से जंग जारी है. इजरायली नेता चाहते हैं कि हमास पूरी तरह से सरेंडर कर दे, साथ ही बंधक भी लौटा दिए जाएं. इधर हमास चुप्पी साधे बैठा है. इनकी दुश्मनी का सीधा असर पड़ रहा है गाजा पट्टी के लोगों पर. इजरायल ने मार्च में यहां फूड और फ्यूल सप्लाई पर रोक लगा दी थी. अब भारी दबाव के बाद हल्की राहत तो मिली है, लेकिन ये गर्म तवे पर पानी के छींटे जितनी है. मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र ने चेताया कि जल्द मदद न मिले तो 48 घंटों में 14000 बच्चों की जान जा सकती है. तो क्या वॉर क्राइम का आरोप लगा इजरायल को कमजोर कर सकता है यूएन, या केवल वॉर्निंग ही देता रह जाएगा?
7 अक्टूबर को हमास ने इजरायली नागरिकों पर हमला करते हुए हजारों जानें ले लीं, जबकि सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया. इसके बाद से तेल अवीव लगातार गाजा पर हमले कर रहा है. हमास पर दबाव बनाने के लिए मार्च में गाजा पट्टी की नाकाबंदी भी कर दी गई.
सालों से गाजा पट्टी बनी हुई है खुली जेल
वैसे ये घेराबंदी लगभग 18 सालों से जारी है, जब से हमास ने गाजा की सत्ता संभाली. इसके आतंकी संगठन घोषित होते ही इजरायल ने उत्तर और पूर्व से बॉर्डर सील कर दिए. इसमें बंदरगाह, हवाई अड्डे तो बंद किए ही गए. साथ ही जरूरत की चीजों के आने-जाने पर भी कड़ी निगरानी रखी जाने लगी.
मिस्र ने भी रफा क्रॉसिंग को कड़े कंट्रोल में रखा. एक दशक से चली आ रही नाकेबंदी में गाजा लगभग खुली जेल में तब्दील हो गया है. न यहां से लोग जा सकते हैं, न बाहरी लोग आ सकते हैं. मार्च में इजरायल ने बची-खुची आजादी भी खत्म करते हुए हर सप्लाई पर रोक लगा दी. इसके बाद से तबाही मची हुई है.
कम जगह में घनी आबादी
दरअसल गाजा लगभग 40 किलोमीटर में फैला इलाका है, जहां हर किलोमीटर पर औसतन 6000 लोग बसते हैं. लंबे समय से चली आ रही नाकेबंदी के बीच इनके पास न तो काम बाकी रहा, न ही बाहरी मदद मिल पा रही थी. इसी में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख टॉम फ्लेचर ने कहा कि अगर 48 घंटों के भीतर मदद न मिले तो चौदह हजार बच्चों की मौत हो सकती है.
दबाव के बीच इजरायल ने नाकेबंदी में हल्की राहत देते हुए कुछ ट्रकों को भीतर जाने दिया. लेकिन इसपर भी विवाद हो रहा है. यूएन की मानें तो फिलहाल गाजा की जरूरत रोज 500 ट्रकों की है, जबकि इजरायल 5 से 10 ट्रकों की मदद पर ही हाथ रोक रहा है.
बच्चे इस त्रासदी के सबसे बड़े पीड़ित
गाजा सरकार ने इसी महीने की शुरुआत में कहा था कि उनके यहां लगभग 3 लाख बच्चे भुखमरी की वजह से मौत के मुहाने पर हैं. साथ ही करीब 11 लाख बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं. यही हाल वयस्कों का है. हर पांच में से एक एडल्ट भुखमरी का शिकार है.
क्या होता है भुखमरी में
यहां भुखमरी का मतलब एक-दो रोज खाना न मिलने से नहीं, बल्कि लंबे वक्त तक जरूरत से कम पोषण मिलने से है. एक्सपर्ट मानते हैं कि शरीर तीन हफ्तों तक बिना खाए जी सकता है. ये भी तीन स्टेज में आता है- जैसे ही आप खाना छोड़ते हैं, पहला चरण शुरू हो जाता है. दूसरी स्टेज में शरीर अपने ही फैट को इस्तेमाल करके काम चलाता है. तीसरा फेज खतरनाक है. ये वो वक्त है, जिसमें शरीर वसा का सारा इस्तेमाल कर चुका होता है और वो अपनी ही मसल्स और हड्डियों को सोखने लगता है.
बच्चों के साथ ये प्रक्रिया ज्यादा तेज हो जाती है. अलजजीरा ने यूएन की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि इस साल अब तक 9000 बच्चे गंभीर कुपोषण के चलते अस्पताल पहुंच चुके. इसके अलावा बहुत से बच्चे होंगे, जो अस्पताल तक भी नहीं लाए जा रहे. इनमें भी शून्य से दो साल के बच्चों की स्थिति ज्यादा खराब है. ये वही टाइम पीरियड है, जिसमें बच्चों के ब्रेन डेवलपमेंट के लिए पूरा पोषण जरूरी होता है. अब ये अंदेशा भी जताया जा रहा है कि आने वाले वक्त में गाजा पट्टी के बच्चों में कई कमियां देखने में आ सकती हैं.
इधर इजरायल इस बात से इनकार कर रहा है कि गाजा में खाने की कमी है. उसका कहना है कि वो तब तक नाकेबंदी नहीं हटाएगा, जब तक हमास की तरफ से उसे कोई जवाब नहीं मिल जाता. हालांकि इस बीच तेल अवीव ने थोड़ी रियायत देते हुए कुछ ट्रक फूड सप्लाई भीतर आने दी.
क्या इजरायल को मजबूर किया जा सकता है
जेनेवा कन्वेंशन 1949 के तहत इसपर सीधा नियम है. नागरिकों को भूखा रखना जंग का तरीका नहीं हो सकता. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICC) भी आबादी को भूखा रखने को वॉर क्राइम मानता है. दोनों का आरोप है कि इजरायल भुखमरी को बार्गेनिंग का तरीका मान रहा है ताकि दबाव में आकर हमास सरेंडर कर दे.
लगातार बिगड़ते हालात को देखते हुए ICC ने हमास लीडर मोहम्मद दैफ समेत इजरायली लीडर बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ भी अरेस्ट वॉरंट निकाल दिया. लेकिन ये तरीका भी कारगर नहीं. असल में इजरायल इंटरनेशनल कोर्ट का हिस्सा नहीं. ऐसे में वहां के नेता की गिरफ्तारी कोर्ट के आदेश के तहत नहीं हो सकती. यही हाल यूएन का है. वो इसपर बात तो कर रहा है, चेतावनियां भी दे रहा है लेकिन कुछ ठोस नहीं कर पा रहा.