पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तुर्की और अजरबैजान से तनाव के बीच भारत ने आर्मेनिया को हथियारों की सप्लाई बढ़ाने का फैसला किया है. भारत आर्मेनिया को Akash 1-S मिसाइल सिस्टम की दूसरी खेप देने जा रहा है. आकाश 1-S सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जिसकी पहली खेप नवंबर 2024 को आर्मेनिया पहुंचाई गई थी. भारत आर्मेनिया को मिसाइल ऐसे वक्त में भेज रहा है जब तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान के बीच बढ़ता रणनीतिक सहयोग भारत के क्षेत्रीय हितों को चुनौती देने का काम कर रहा है.
पाकिस्तान के साथ लड़ाई के दौरान देखा गया कि तुर्की और अजरबैजान ने खुलकर भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन किया. अब भारत ने ऐसा कदम उठाने का फैसला किया है जिससे तुर्की और अजरबैजान, दोनों को ही मिर्ची लगेगी.
आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों पड़ोसी हैं जिनके बीच कट्टर दुश्मनी चली आ रही है. अजरबैजान जहां पाकिस्तान और तुर्की के करीब रहा है वहीं, आर्मेनिया के संबंध भारत से अच्छे रहे हैं.
भारत और आर्मेनिया की सरकार के बीच रक्षा संबंध 2020 से लगातार बढ़ रहे हैं क्योंकि ये देश अपने पारंपरिक हथियार आपूर्तिकर्ता रूस से निर्भरता घटाने की कोशिश कर रहा है.
22 अप्रैल को हुए पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया जिसके बाद तुर्की की तरह ही अजरबैजान तुरंत उसके समर्थन में आ गया. पहलगाम हमले में 26 लोगों के मारे जाने के जवाब में चलाए गए भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' में पाकिस्तान के सैकड़ों आतंकी मारे गए.
अजरबैजान और तुर्की के पाकिस्तान को सपोर्ट के बीच भारत आर्मेनिया को दे रहा हथियार
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत 2022 के एक समझौते के तहत आर्मेनिया को आकाश-1एस सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल सिस्टम की दूसरी खेप देने की प्लानिंग कर रहा है. इसके साथ ही भारत आर्मेनिया को हॉवित्जर गन और पिनाका मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम सहित कई तरह के हथियार देने की योजना पर काम कर रहा है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि रूस कई सालों तक आर्मेनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है, लेकिन अब दोनों देशों के संबंधों में दरार देखी जा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि आर्मेनिया ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस का खुलकर समर्थन नहीं किया है. रूस से रिश्तों में आती दूरी के बीच आर्मेनिया भारत के करीब आया है और भारत उसका सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आर्मेनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है जिससे 2022-2024 के बीच आर्मेनिया ने अपने कुल हथियार खरीद का 43% हथियार खरीदा.
लंदन स्थित स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक क्रिस ब्लैकबर्न ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बात करते हुए कहा कि आर्मेनिया को हथियार देने का भारत का फैसला तुर्की के पाकिस्तान को समर्थन का जवाब प्रतीत होता है.
भारत के साथ लड़ाई में तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया है. पिछले साल के अंत में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने आर्मेनिया को हथियार देने वाले देशों की आलोचना की थी और उसे भड़काऊ कदम बताया था. अब भारत ने एर्दोगन को चिढ़ाते हुए फिर से आर्मेनिया को हथियार देने का फैसला किया है.
इस बीच सवाल यह भी उठ रहे हैं कि भारत रूस को रिप्लेस कर आर्मेनिया का शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्ता बना है तो ऐसे में क्या रूस भारत के हालिया प्लान से नाराज नहीं होगा.
विश्लेषक ब्लैकबर्न कहते हैं, 'रूस को आर्मेनिया के साथ भारत के बढ़ते रक्षा संबंधों पर आपत्ति होने की संभावना नहीं है. मुझे नहीं लगता कि रूस सोचेगा कि भारत उसकी नाक में दम कर रहा है.'
भारत और रूस के रक्षा संबंधों की बात करें तो, रूस भारत का पारंपरिक रक्षा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है. भारत ने पाकिस्तान के हमलों को जिस एयर डिफेंस सिस्टम से नाकाम किया, वो रूस में ही बना एस-400 मिसाइल सिस्टम था.
तुर्की के खिलाफ उठाए गए कदम का ही हिस्सा है आर्मेनिया को हथियार देना
पाकिस्तान ने संघर्ष के दौरान भारत के खिलाफ बड़े पैमाने पर तुर्की के ड्रोन्स का इस्तेमाल किया. एक तरफ हथियार देकर पाकिस्तान की मदद और दूसरी तरफ तुर्की का पाकिस्तान के प्रति समर्थन भारत के लोगों को रास नहीं आया और देश में बॉयकॉट तुर्की ट्रेंड करने लगा.
भारत के लोग तुर्की और अजरबैजान के सामानों का बहिष्कार कर रहे हैं और दोनों ही देशों के ट्रिप को कैंसिल कर रहे हैं. अजरबैजान और तुर्की छुट्टियां मनाने और वेडिंग फोटोशूट के लिए भारतीयों के पसंदीदा जगह रहे हैं और दोनों ही देशों के बहिष्कार से उन्हें काफी नुकसान होने वाला है.
इस महीने की शुरुआत में भारत ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए तुर्की की कंपनी सेलेबी को अपने हवाई अड्डों पर परिचालन करने से रोक दिया था.
कतर में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी ऑफ गवर्नमेंट के सहायक प्रोफेसर उदय चंद्रा ने कहा, 'आर्मेनिया को हथियार देने को सेलेबी का कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने और भारत के लोगों का तुर्की और अजरबैजान के बहिष्कार के साथ ही देखा जाना चाहिए.'
जब आर्मेनिया को हथियार देने पर भड़क गए थे अजरबैजानी राष्ट्रपति
अजरबैजान और आर्मेनिया, दोनों पड़ोसियों के बीच नार्गोनो काराबाख इलाके को लेकर भारी विवाद रहा है. सितंबर 2023 में अजरबैजान ने एक सैन्य कार्रवाई के जरिए आर्मेनियाई समुदाय बहुल नागोर्नो काराबाख पर पूरी तरह कब्जा कर लिया था. इसके कुछ ही समय बाद अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने आर्मेनिया को हथियारों की सप्लाई के लिए भारत और फ्रांस पर हमला बोला था. दरअसल, फ्रांस भी आर्मेनिया को हथियारों की सप्लाई करता है. अलीयेव ने कहा था कि भारत और फ्रांस आर्मेनिया को हथियार देकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं.
इल्हाम अलीयेव ने कहा था, 'फ्रांस और भारत जैसे देश आर्मेनिया को हथियारों की सप्लाई कर आग में घी डाल रहे हैं. ये देश आर्मेनिया में भ्रम पैदा कर रहे हैं कि इन हथियारों की बदौलत वो काराबाख को वापस ले सकते हैं.'
अलीयेव ने चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत और फ्रांस की तरफ से आर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति की जाती रही तो एक नया युद्ध शुरू हो सकता है. उन्होंने कहा था कि अगर भारत और फ्रांस आर्मेनिया को महत्वपूर्ण हथियार देने लगते हैं तो अजरबैजान अपने लोगों की रक्षा की खातिर प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य होगा.
आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों ही देश 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद बने थे. अजरबैजान एक मुस्लिम देश और आर्मेनिया की आबादी ईसाई बहुल है. नागोर्नो काराबाख की आबादी भी ईसाई बहुल है. बावजूद इसके, जब सोवियत संघ टूटा तो काराबाख अजरबैजान को दे दिया गया. इलाके के लोग भी आर्मेनिया के साथ रहने के लिए वोट कर चुके थे, बावजूद इसके यह इलाका अजरबैजान के पास है.