राहुल गांधी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं, इसके साथ ही आजकल उनके पास लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में एक महती जिम्मेदारी भी है. इसलिए उनके एक एक शब्द को भारत-पाकिस्तान ही नहीं दुनिया गौर से सुनती है. पर शायद राहुल गांधी में अभी भी वो गंभीरता नहीं आई है कि उन्हें युद्ध काल में देश के विदेश मंत्री से कौन से सवाल करने हैं या कौन से सवाल नहीं करने है ये पता भी है.
ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक दिन कहा था, ऑपरेशन की शुरुआत में, हमने पाकिस्तान को संदेश भेजा था कि हम आतंकवादियों के बुनियादी ढांचे पर हमला कर रहे हैं... हम सेना पर हमला नहीं कर रहे हैं. इसलिए सेना के पास इस काम में दखल न करने, और अलग रहने का विकल्प है. राहुल गांधी को शायद विदेश मंत्री की बात समझ में नहीं आई. उन्होंने ताबड़तोड़ सवाल करने शुरू कर दिए. उनके सवाल कितने बेवजह थे इस बात से समझ सकते हैं कि उनकी पार्टी कांग्रेस के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद और पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी उनके बयान को एंडोर्स करना उचित नहीं समझा. कायदे से देखा जाए तो यह राहुल गांधी के लिए बहुत शर्मिंदगी का विषय है. क्योंकि जिस पार्टी में उनकी तूती बोलती है वहां भी लोग उनकी बात से सहमत नहीं है. कांग्रेस नेता शशि थरूर का तो समझ में आता है कि वो राहुल गांधी की बात से सहमत नहीं हों पर अगर सलमान खुर्शीद और पी चिदंबरम जैसे लोग भी राहुल के बयान से किनारा कर रहे हैं तो ये पूरे कांग्रेस के लिए शोचनीय विषय है.
1- राहुल को खुर्शीद और चिदंबरम से सीखना चाहिए
कांग्रेस पार्टी लंबे समय से आंतरिक मतभेदों और नेतृत्व के सवालों से जूझ रही है. राहुल गांधी, जो 2017 से 2019 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं, पार्टी के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक हैं. हालांकि, उनकी नेतृत्व शैली और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं. 2019 और 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद, राहुल गांधी की रणनीति और उनकी क्षमता पर पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह सवाल उठे हैं.
वरिष्ठ नेताओं जैसे थरूर, खुरशीद, और चिदंबरम का राहुल के बयानों से दूरी बनाने के बाद भी उन पर कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है. क्योंकि गांधी परिवार कांग्रेस को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह समझती है. कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता भी गांधी परिवार को ही अपना नेता मानता है. राहुल गांधी कितने भी गलत फैसले ले लें पर उनके खिलाफ पार्टी में बगावत होगी यह नामुमकिन ही है. पर इतना सवाल तो बनता ही है कि क्या गांधी परिवार का जोर अब इतना नहीं रहा कि खुर्शीद और चिदंबरम जैसे लोगों राहुल की हां में हां मिलाने से कतराने लगे हैं.
थरूर, जो अपनी बौद्धिक छवि और वैश्विक कूटनीति में अनुभव के लिए जाने जाते हैं, अक्सर अधिक संतुलित और कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हैं. यह संभव है कि जयशंकर जैसे अनुभवी राजनयिक की आलोचना में राहुल का रुख थरूर को अनावश्यक रूप से आक्रामक या तथ्यात्मक रूप से कमजोर लगा हो. वैसे भी आजकल उनकी बीजेपी से नजदीकियां जगजाहिर हैं. इसलिए राहुल की हां में हां मिलाना उनके लिए जरूरी नहीं रह गया है. पर खुर्शीद और चिदंबरम जो दोनों ही कानून और नीति निर्माण में गहरी समझ रखते हैं, भी अगर इस बयान को रणनीतिक रूप से जोखिम भरा मानते हैं तो राहुल गांधी को कुछ तो उनसे ही सीखना ही चाहिए.
2- राहुल गांधी की राजनैतिक शैली पर सवाल
राहुल गांधी की राजनीतिक शैली को समझने के लिए उनकी यात्रा को देखना जरूरी है. 2004 में अमेठी से सांसद बनने के बाद से, राहुल ने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है जो जनता के मुद्दों, खासकर किसानों, युवाओं, और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए आवाज उठाते हैं. उनकी भारत जोड़ो यात्रा (2022-2023) और भारत जोड़ो न्याय यात्रा (2024) से उन्होंने जनता के बीच एक जुझारू नेता की छवि बनाई. इन यात्राओं ने कांग्रेस को कुछ हद तक पुनर्जन्म भी दिया. 2024 के लोकसभा चुनावों में, जहां पार्टी ने अपने प्रदर्शन में सुधार किया है. पर सवाल यह भी है कि हर बार चुनावों में कांग्रेस की दुर्गति के पीछे राहुल गांधी का कोई न कोई बयान ही रहा है.
3- राहुल की बयानबाजी पड़ जाती है भारी
ऑपरेशन सिंदूर के बाद जयशंकर पर मुखबिरी का आरोप लगाकर अपनी ही पार्टी में अलग थलग पड़ गए राहुल गा्ंधी इसके पहले भी पार्टी को मुश्किल में डालते रहे हैं. याद करिए 2019 का बयान. राहुल ने कर्नाटक रैली में कहा, सभी चोरों का नाम मोदी क्यों? यह PM मोदी और गुजरात के मोदी समुदाय पर हमला था. BJP MLA पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसके चलते राहुल को 2023 में दो साल की सजा और लोकसभा से अयोग्यता मिली. सुप्रीम कोर्ट ने बाद में सजा पर रोक लगाई. 2019 में चौकीदार चोर है वाले बयान ने भी कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया. राफेल डील पर राहुल ने PM मोदी को चौकीदार चोर है कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत ठहराया, और राहुल को माफी मांगनी पड़ी.
पिछले साल राहुल ने आरक्षण खत्म करने वाला बयान देकर बवाल कर दिया था.अमेरिका में राहुल ने कहा कि जब भारत एक निश्चित विकास को प्राप्त कर लेगा, तब आरक्षण खत्म करने पर विचार होगा. BJP ने इसे आरक्षण-विरोधी करार दिया. हालांकि, राहुल की बयानबाजी अक्सर विवादों में घिरी रही है. पर वह सरकार की नीतियों, विशेष रूप से विदेश नीति, आर्थिक नीति, और सामाजिक मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाते हैं. मुश्किल यह है कि उनका यह रुख अकसर अपरिपक्व या तथ्यों पर आधारित नहीं होने के रूप में देखा जाता है. जैसे राहुल गांधी जाति जनगणना और जिसकी जितनी भागीदारी-उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात करते हैं. उनकी इस बात में संपत्ति के समान वितरण की गंध आती है.
4-क्या राहुल गांधी राजनीति नहीं समझते?
राहुल गांधी के इस तरह के बयानों को विपक्षी पार्टी बीजेपी इस तरह प्रचारित करती है कि उन्हें राजनीति नहीं आती है. हालांकि राहुल गांधी ने कुछ मौकों पर प्रभावी रणनीति दिखाई है. 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतीं, जो 2019 के 52 सीटों से एक उल्लेखनीय सुधार था. उनकी भारत जोड़ो यात्रा ने पार्टी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरी और विपक्षी गठबंधन INDIA को मजबूत करने में मदद की.राहुल के संविधान बचाओ नारे ने 2024 से ही बीजेपी की नींद उड़ा रखी है.
जाति जनगणना और आरक्षण में बढ़ोतरी की मांग करके उन्होंने बीजेपी ही नहीं अपनी सहयोगी पार्टियों की नींद भी उड़ा रखी है. इसलिए ये कहना कि राहुल राजनीति नहीं समझते ये अतिशयोक्ति ही है. जयशंकर को मुखबिर बताकर भी वो एक तरह की राजनीति ही कर रहे हैं. देश में एक बहुत बड़ा तबका है जो युद्ध का विरोध कर रहा है .राहुल की रणनीति है कि किसी भी तरह उनका सपोर्ट हासिल किया जाए.