साल 2020 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े मामले में गिरफ्तार एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. 2 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने फातिमा समेत कई अन्य आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट ने कहा था कि संविधान नागरिकों को विरोध और आंदोलन का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है. उस पर उचित कानूनी प्रतिबंध लागू होते हैं.
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत शांतिपूर्ण और अहिंसक विरोध का अधिकार संरक्षित है, लेकिन यह कानून की सीमाओं में होना चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि विरोध प्रदर्शनों की आड़ में षड्यंत्रकारी हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती. फातिमा से पहले शरजील इमाम ने भी हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी थी कि यदि अप्रतिबंधित विरोध का अधिकार दिया गया तो यह न केवल संवैधानिक ढांचे बल्कि देश की कानून-व्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा होगा. फातिमा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से शामिल थीं. उन्हें अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था. उन पर UAPA समेत कई गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज है.
दिल्ली पुलिस ने अदालत में दावा किया था कि फातिमा, शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर और अब्दुल खालिद सैफी ने मिलकर दिल्ली में हिंसा की साजिश रची थी. इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी साफ किया कि जमानत देना या न देना हर मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि मुकदमे में देरी या जेल में बिताया गया लंबा समय जमानत का आधार नहीं बन सकता है. इस मामले में आरोपी आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल पहले से ही जमानत पर बाहर हैं, लेकिन समानता के आधार पर आरोपियों की याचिकाएं खारिज कर दी गई. अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले पर टिकी हुई हैं, जो तय करेगा फातिमा को जमानत मिलती है या नहीं.
---- समाप्त ----