पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) सरकार द्वारा 10 जून 2025 को एक प्रस्ताव लाया गया. ममता सरकार का मुख्य इरादा जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले की निंदा और भारतीय सेना के शौर्य की प्रशंसा करने की थी. पर हो गया इसका उल्टा. कहां भारतीय सेना के शौर्य की तारीफ होनी थी और कहां पाकिस्तान के फेवर में इसे बताया जाना लगा. ममता सरकार के इस प्रस्ताव के साथ ही राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. इस प्रस्ताव में न तो पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से आतंकी हमले का जिम्मेदार ठहराया गया और न ही भारत की जवाबी कार्रवाई ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र किया गया है. जाहिर है कि प्रदेश में राजनीति के लिए यह एक बढ़िया मुद्दा बन गया है. भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल सरकार के इस प्रस्ताव की तीखी आलोचना की है. बीजेपी इस प्रस्ताव की जितनी आलोचना करेगी टीएमसी के लिए यह उतना ही फायदेमंद होता जाएगा. आइये देखते हैं कैसे?
प्रस्ताव का विवरण और कमियां
पश्चिम बंगाल विधानसभा में रखे गए इस प्रस्ताव में जो प्रमुख बिंदु शामिल किए गए मुख्य रूप से इस प्रकार के थे. प्रस्ताव में 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम के बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले को क्रूर और अमानवीय करार दिया गया, जिसमें 26 लोग मारे गए, जिनमें से तीन पश्चिम बंगाल के थे.
इस प्रस्ताव में भारतीय सशस्त्र बलों की विभिन्न शाखाओं के समन्वित प्रयासों की प्रशंसा की गई, जिन्होंने पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ढांचों को सटीकता के साथ नष्ट किया और राष्ट्र की गरिमा की रक्षा की गई. पर प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को हमले का जिम्मेदार नहीं ठहराया गया, बल्कि इसे केवल अमानवीय हमला कहा गया. यह भारत सरकार के रुख के विपरीत है, जो पहलगाम हमले को लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठनों से जोड़ता है.
सबसे अहम बात यह रही कि इस प्रस्ताव में भारत की जवाबी कार्रवाई ऑपरेशन सिंदूर का कोई जिक्र नहीं था. दरअसल बीजेपी के दर्द का असली कारण यही है. भारतीय सेना ने 7 मई 2025 को पाकिस्तान और PoK में नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, जिसमें 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए.
प्रस्ताव में इस तथ्य को भी नजरअंदाज किया गया कि पहलगाम हमला पर्यटकों को लक्षित कर किया गया था, जिसका मकसद कश्मीर की पर्यटन अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना और धार्मिक आधार पर तनाव पैदा करना था. पर्यटकों से कलमा पढवाया गया उनका खतना हुआ है कि नहीं यह पूछाा गया.
क्या प्रस्ताव का जानबूझकर राजनीतिकरण किया गया
पश्चिम बंगाल सरकार के इस कृत्य के पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक मंशा ही रही होगी , इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. BJP विधायकों, विशेषकर विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी और विधायक अग्निमित्रा पॉल, ने इस प्रस्ताव की कमियों पर सवाल उठाए हैं. सुवेंदु अधिकारी ने पूछा कि प्रस्ताव में ऑपरेशन सिंदूर का नाम क्यों नहीं लिया गया, जो भारत की आतंकवाद विरोधी नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था.
BJP ने TMC पर आरोप लगाया कि वह वोट बैंक की राजनीति के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने से बच रही है. अग्निमित्रा पॉल ने कहा कि ममता बनर्जी ने 33% मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए जानबूझकर ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र नहीं किया.
दरअसल पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी 3 बार से लगातार सरकार बना रही है. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने भी इस राज्य में बहुत तेजी से अपनी पैठ बनाई है. इस बार बीजेपी भी अपनी पूरी शक्ति से पश्चिम बंगाल में लगी हुई है. जाहिर है कि ममता बनर्जी के लिए बहुत बड़ा चैलेंज है चौथी बार सत्ता में आना. पर पश्चिम बंगाल में 27 से 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी पर TMC का कब्जा है. बनर्जी जानती हैं कि जब तक यह वोटबैंक उनके साथ है उनका बाल बांका कोई नहीं कर सकता है.
राष्ट्रीय हितों पर प्रभाव, पाकिस्तान उठा सकता है फायदा
प्रस्ताव में पाकिस्तान और ऑपरेशन सिंदूर का नाम न लेना कई कारणों से राष्ट्रीय हितों के लिए सवाल उठाता है. भारत सरकार ने पहलगाम हमले को पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद से जोड़ा, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों की भूमिका थी. TMC का यह प्रस्ताव भारत के स्पष्ट रुख को कमजोर करता है, क्योंकि यह हमले को केवल अमानवीय कहकर सामान्यीकृत कर देता है.
जाहिर है कि इस प्रस्ताव से पाकिस्तान फायदा उठाने की हर संभव कोशिश करेगा. पाकिस्तान लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के आरोपों से बचने की कोशिश करता है. इस प्रस्ताव में उसका नाम न लेना पाकिस्तान को यह दावा करने का मौका देता है कि भारत के भीतर उसकी भूमिका पर एकरूपता नहीं है. यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान की स्थिति को मजबूत कर सकता है, खासकर उन देशों में जो भारत-पाक तनाव को तटस्थ दृष्टिकोण से देखते हैं.
पाकिस्तानी मीडिया और सरकार इस प्रस्ताव का उपयोग यह दिखाने के लिए कर सकती है कि भारत का एक प्रमुख राज्य पाकिस्तान को आतंकवाद से नहीं जोड़ता है. फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे संगठन पाकिस्तान पर आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए दबाव बनाते हैं. पाकिस्तान को एफएटीएफ को दिखाने के लिए भारत के एक राज्य का यह प्रस्ताव काफी हितकर साबित हो सकता है.