Kamakhya Mandir: सोनम रघुवंशी कामाख्या देवी के दर्शन करने के बहाने से राजा रघुवंशी को गुवाहाटी (असम) लेकर गई थी. सोनम ने राजा के सामने यह शर्त रखी थी कि वो मां कामाख्या के दर्शन के बाद ही एक दूसरे के करीब आएंगे, क्योंकि उसने एक मन्नत मांगी है. मंदिर में राजा रघुवंशी की एक तस्वीर भी सामने आई है. देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक माता कामाख्या का मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है. देश-दुनिया के कोने-कोने से भक्त यहां देवी के दर्शन करने आते हैं. आइए आज आपको इस चमत्कारी मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं.
कामाख्या शक्तिपीठ असम के गुवाहाटी शहर से 8 किलोमीटर पश्चिम में नीलांचल पर्वत पर स्थित एक अत्यंत पवित्र स्थल है. यह शक्तिपीठ माता सती के शरीर के अंगों के गिरने से बने 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने सुदर्शन से माता सती के मृत शरीर को 51 भागों में विभाजित किया था. माता सती के अंग जहां जहां गिरे वहां शक्तिपीठ बना. कामाख्या शक्तिपीठ में माता सती का योनि भाग गिरा था. मान्यता है कि इस शक्तिपीठ में माता रजस्वला होती हैं, जो इसकी विशेषता को और भी बढ़ाता है. यह स्थल भक्तों के लिए अत्यधिक पूजनीय है और यहां की शक्ति और महत्व को महसूस करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.
मंदिर में माता की मूर्ति नहीं है स्थापित
कामाख्या मंदिर बहुत ही पूजनीय धार्मिक स्थल माना जाता है, जहां देवी की मूर्ति नहीं बल्कि एक पवित्र कुंड है जो फूलों से सुसज्जित रहता है. यहां देवी के योनि भाग की पूजा की जाती है, जो इसे एक शक्तिशाली शक्तिपीठ बनाता है. पास ही एक अन्य मंदिर में देवी की मूर्ति स्थापित है, लेकिन मुख्य आकर्षण योनि भाग की पूजा ही है.
यहां माता होती हैं हर साल रजस्वला
कामाख्या पीठ की एक प्राचीन और रोचक कथा है. मान्यता है कि माता सती का योनि भाग इस स्थान पर गिरा था, जिससे यह स्थल हर साल तीन दिन के लिए रजस्वला का साक्षी बनता है. इन तीन दिनों में मंदिर के पट बंद रहते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि इन तीन दिनों में मां को एक सफेद रंग वस्त्र चढ़ाया जाता है, जो माता माता के रज से रंगीन हो जाता है. इसे अम्बुवाची वस्त्र के नाम से जाना जाता है. इस वस्त्र को भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है. जो भक्तों के लिए सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि जो भी उस लाल वस्त्र को अपने पास रखता है, उससे काल भी दूर हो जाता है.
भैरव के बिना अधूरी है मां कामाख्या की पूजा
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि माता कामाख्या के दर्शन उमानंद भैरव के दर्शन के बिना अधूरे हैं. दरअसल, उमानंद भैरव मंदिर कामाख्या मंदिर के एकदम नजदीक स्थित है. अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या देवी के साथ-साथ उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है.
कामाख्या मंदिर तंत्र विद्या का है सबसे बड़ा केंद्र
कामाख्या मंदिर तंत्र विद्या का प्रमुख केंद्र है, जहां हर साल जून में अंबुवासी मेला आयोजित होता है. इस दौरान देशभर से साधु-संत और तांत्रिक तंत्र साधना के लिए यहां एकत्रित होते हैं. तंत्र साधना का यह संगम कामाख्या मंदिर को एक विशिष्ट और रहस्यमय स्थल बनाता है.
क्या है कामाख्या मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, असम के कामाख्या में माता सती का एक यौनि भाग गिरा था और उसी से कामाख्या शक्तिपीठ की उत्पत्ति भी हुई. शिव पुराण के अनुसार, प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री सती के लिए एक योग्य वर की तलाश कर रहे थे. लेकिन, माता सती ने अपने पिता के खिलाफ जाकर भगवान शिव को अपना पति चुन लिया था. इस बात से दक्ष बहुत नाराज हो गए थे. फिर, कुछ समय बाद प्रजापति दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ (हवन) आयोजित किया, लेकिन उसमें जानबूझकर भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था. जब माता सती को यह बात पता चली तो उन्हें बहुत दुख और गुस्सा आया. उन्होंने इस अपमान को सहन नहीं किया और यज्ञ स्थल पर ही अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.
माता सती की मृत्यु से भगवान शिव बहुत दुखी और क्रोधित हो गए थे. उन्होंने प्रजापति दक्ष को सजा दी, लेकिन बाद में उन्हें माफ भी कर दिया और जीवनदान भी दे दिया था. फिर भी, भगवान शिव माता सती की याद में इतने दुखी हो गए थे कि वे उनके शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमते रहे. तब भगवान विष्णु ने स्थिति को संभालने के लिए माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 108 टुकड़ों में बांट दिया था. इनमें से 51 टुकड़े पृथ्वी पर गिरे और बाकी दूसरे लोकों में. जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां देवी के मंदिर बने जिन्हें शक्ति पीठ कहा जाता है.