भारत में रियल एस्टेट के प्रति लोगों का क्रेज, फायदे का सौदा या जोखिम भरा दांव?

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भारत में निवेश के लिए रियल सेक्टर अच्छा विकल्प माना जाता है, लेकिन चेन्नई के वेल्थ एडवाइजर और वैल्यू इनवेस्टर आनंद श्रीनिवासन का कहना है कि भारत में रियल एस्टेट के प्रति जुनून आर्थिक रूप से गलत है, और वे इसे "द ग्रेट इंडियन रियल एस्टेट डिल्यूजन" कहते हैं. एक लिंक्डइन पोस्ट में वो बता रहे हैं भारत में घरों की कीमतें हमेशा बढ़ती हैं और किराए की आय की तुलना में प्रॉपर्टी की वैल्यू बढ़ने की उम्मीद ज्यादा मायने रखती है.

क्या प्रॉपर्टी में निवेश बनता जा रहा है घाटे का सौदा

श्रीनिवासन लिखते हैं- 'भारत में किराए की आय सालाना सिर्फ 2-3% है, जो कि एक साधारण सेविंग्स अकाउंट से भी कम है. तुलना करें तो ग्लोबल मार्केट्स में 5-6% रिटर्न मिलता है. इस रफ्तार से, सिर्फ किराए से अपनी इनवेस्टमेंट रिकवर करने में 35 से 50 साल लग सकते हैं. फिर भी, ज्यादातर भारतीय रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में पैसा लगाते हैं, सिर्फ कीमत बढ़ने की उम्मीद पर. 

श्रीनिवासन कहते हैं कि ये एक ऐसा दांव है, जिसके जीतने की संभावना कम होती जा रही है. 2000 के दशक में कीमतें बहुत तेजी से बढ़ी थीं, लेकिन उसके बाद कई मार्केट्स में कीमतें स्थिर हो गईं या महंगाई को ध्यान में रखें तो असल में कम हो गईं. वहीं महंगाई ही एकमात्र जोखिम नहीं है. हाई ट्रांजैक्शन कॉस्ट - जैसे स्टांप ड्यूटी, ब्रोकरेज, और रजिस्ट्रेशन, प्रॉपर्टी की वैल्यू का 6-10% शुरू में ही खा लेते हैं. साथ ही, रियल एस्टेट की बदनाम नकदी की कमी (इलिक्विडिटी) भी है, जहां प्रॉपर्टी बेचने में महीनों या सालों लग सकते हैं. 

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क्या करें निवेशक?

श्रीनिवासन चेतावनी देते हैं- "आप लाखों या करोड़ों रुपये एक ही एसेट में फंसा रहे हैं, अगर लोकल मार्केट क्रैश करता है, तो आपकी दौलत भी उसके साथ डूब जाती है." फिर भारतीय इतने कम रिटर्न और हाई रिस्क वाले एसेट में पैसा क्यों डालते रहते हैं? वे बताते हैं, "क्योंकि हमें संस्कृति ने ऐसा सिखाया है, टैक्स में छूट मिलती है, ब्लैक मनी पार्क करने का मौका मिलता है, और सबसे डर कि कहीं छूट न जाए का माहौल है."

श्रीनिवासन की सलाह साफ है: अगर किराया प्रॉपर्टी की कीमत को जायज नहीं ठहराता, तो दोबारा सोचें. "कीमत बढ़ने की उम्मीद सिर्फ एक आशा है, कोई वादा नहीं.


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