उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के छितौना गांव में आधा बिस्वा जमीन पर बांस के झुरमुट, खेत में मवेशी घुसने को लेकर दो पक्षों में मारपीट हो गई थी. 5 जून को संजय सिंह और भोला राजभर के परिवारों में हुई मारपीट की इस घटना ने अब जातीय संघर्ष की शक्ल ले ली है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) के राजभर नेता भोला राजभर के पक्ष में खुलकर उतर आए हैं.
वहीं, अब संजय सिंह के समर्थन में करणी सेना और अन्य क्षत्रिय संगठन भी आ गए हैं. जिले की सरहद लांघ अब यह विवाद पूर्वांचल के अन्य जिलों तक पहुंच गया है. बलिया में करणी सेना के खिलाफ ओमप्रकाश राजभर को धमकी देने का केस दर्ज हुआ है. छितौना गांव में 5 जून को दो परिवारों के बीच हुई मारपीट की घटना ने जातीय संघर्ष का रूप कैसे ले लिया और इसने किस तरह से सत्ताधारी बीजेपी को फंसा दिया है? बात इसे लेकर भी हो रही है.
छितौना कांड ने कैसे ले लिया जातीय रंग?
यूपी सरकार के मंत्री अनिल राजभर ने 5 जुलाई को ही मौके पर पहुंचकर घटना के संबंध में जानकारी ली. इस बात की जानकारी उन्होंने खुद अपने सोशल मीडिया हैंडल से शेयर करते हुए यह भी लिखा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को संबंधित थाने पर भेजकर दोषियों के खिलाफ एफआईआर कराया गया. क्षत्रिय संगठनों ने अनिल राजभर के दबाव में आकर पुलिस पर एक पक्ष का मुकदमा लिखे जाने और दूसरे पक्ष की सुनवाई नहीं करने का आरोप लगा मोर्चा खोल दिया.
क्षत्रिय संगठनों के प्रदर्शन करने पर तीन दिन बाद चौबेपुर थाने में संजय सिंह के पक्ष की तहरीर पर भी केस दर्ज हुआ. इसके बाद मामला ठंडा होता दिख रहा था कि क्रेडिट वॉर में खुद को पिछड़ता देख ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा भी कूद पड़ी. ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर कार्यकर्ताओं के हुजूम के साथ जुलूस की शक्ल में छितौना गांव पहुंचे और भोला राजभर के परिवार से मिलकर न्याय का भरोसा दिलाया. अरविंद राजभर ने कहा कि यह पूरे समाज की लड़ाई है.
अरविंद के छितौना कूच में अपशब्दों के नारे
अरविंद राजभर के छितौना कूच का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसमें कुछ लोगों के करणी सेना और क्षत्रिय समाज को लेकर अपशब्दों के साथ नारेबाजी सुनाई दे रही थी. इस वीडियो को लेकर विवाद बढ़ा, तो पुलिस ने दो लोगों के खिलाफ समाज में विद्वेष फैलाकर कानून-व्यवस्था बिगाड़ने का केस दर्ज कर लिया. यह वीडियो वायरल होने के बाद करणी सेना और अन्य क्षत्रिय संगठनों ने सुभासपा और अरविंद राजभर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
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करणी सेना और अन्य क्षत्रिय संगठनों ने अरविंद राजभर के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए समाज के लोगों से 15 जुलाई को छितौना पहुंचने का आह्वान कर दिया. मामला बढ़ता देख एक्टिव हुए जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर ने दोनों जातियों के संगठनों के साथ बैठक की. डीएम और पुलिस कमिश्नर के साथ बैठक में करणी सेना समेत कई क्षत्रिय संगठनों ने छितौना मार्च का कार्यक्रम रद्द करने पर सहमति जता दी. जो अड़े रहे, उनसे जुड़े लोगों को देर रात से ही हाउस अरेस्ट कर दिया गया.
एनडीए के दो वोटर की लड़ाई में फंस गई बीजेपी?
ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा भी बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में शामिल है. छितौना का क्षत्रिय पक्ष संजय सिंह खुद भी बीजेपी के सक्रिय सदस्य और बूथ अध्यक्ष बताए जा रहे हैं. क्षत्रिय समाज भी यूपी, खासकर वाराणसी और पूरे पूर्वांचल में बीजेपी समर्थक माना जाता है. ऐसे में बीजेपी भी दो कोर वोटर्स की लड़ाई में फंस गई है. यूपी में राजभर समाज की आबादी करीब चार फीसदी है, लेकिन यह पूर्वांचल की कई सीटों पर जीत-हार तय करने की स्थिति में है.
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साल 2022 के यूपी चुनाव में बीजेपी को ओमप्रकाश राजभर के सपा के साथ जाने का नुकसान उठाना पड़ा था और गाजीपुर और आजमगढ़ जिले में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. बलिया में भी बीजेपी महज दो सीटों पर सिमट गई थी. अगर क्षत्रिय मतदाता छिटके, तो भी वैसी ही परिस्थितियां बन सकती हैं, जैसी राजभर वोट छिटकने पर. बूथ अध्यक्ष के मामले में चुप्पी से कार्यकर्ताओं के बीच नकारात्मक संदेश जाने का खतरा है, सो अलग.
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