मथुरा के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर का तोशखाना (खजाना कक्ष) 49 साल बाद खोला गया. यह कमरा 1971 से बंद था. सुप्रीम कोर्ट की बनाई हाई-पावर्ड कमेटी के आदेश पर शनिवार को इसे खोला गया. कमरे से कुछ पीतल के बर्तन, लकड़ी के सामान और बक्से मिले, लेकिन कोई बहुमूल्य धातु नहीं मिली. गोस्वामी समुदाय ने इस कदम पर आपत्ति जताई है.
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कमरा वर्ष 1971 से बंद था. (File Photo: ITG)
मथुरा के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर का ‘तोशखाना’ यानी खजाना कक्ष शनिवार को 49 साल बाद खोला गया. यह कमरा वर्ष 1971 से बंद था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई-पावर्ड अंतरिम कमेटी के आदेश पर इसे खोला गया. इस प्रक्रिया की निगरानी सिविल जज (जूनियर डिवीजन) और अन्य सदस्यों ने की.
चार घंटे चली प्रक्रिया
अधिकारियों के अनुसार, दोपहर 1 बजे कमरे को खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई और शाम 5 बजे तक चली. कमरे को खोलने में कुछ कठिनाई आई, जिसके बाद कार्य पूरा कर उसे फिर से सील कर दिया गया. इस दौरान कमरे से कुछ पीतल के बर्तन, लकड़ी के आइटम और बक्से मिले, लेकिन कोई सोना-चांदी या बहुमूल्य धातु नहीं पाई गई.
सभी वस्तुओं की सूची बनाई गई
एडीएम (वित्त एवं राजस्व) डॉ. पंकज कुमार वर्मा ने बताया कि ऑडिटर की टीम ने कमरे में मिली वस्तुओं की पूरी सूची तैयार की है. ज्यादातर काम पूरा हो चुका है, शेष कार्य अगली तारीख को किया जाएगा, जब सिविल जज की उपस्थिति में कमरा फिर खोला जाएगा.
गोस्वामी समुदाय ने जताई नाराजगी
गोस्वामी समाज के कुछ सदस्यों ने इस कदम पर आपत्ति जताई है. समिति के सदस्य शैलेन्द्र गोस्वामी ने कहा कि “यह अंतरिम समिति केवल भक्तों की सुविधा के लिए बनाई गई थी, न कि मंदिर के तोशखाने को खोलने के लिए. यह कदम अधिकारों का दुरुपयोग है.” उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले भी इस पर आपत्ति जताते हुए पत्र लिखा था.
पारदर्शिता पर उठे सवाल
मंदिर सेवायत और सुप्रीम कोर्ट के वकील सुमित गोस्वामी ने भी कहा कि तोशखाने को खोलने का अधिकार इस समिति को नहीं था. प्रक्रिया का लाइव प्रसारण भी नहीं किया गया, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठे हैं. वहीं अधिकारियों ने कहा कि पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई है.
मीडिया को नहीं मिली एंट्री
मंदिर के एक अन्य सेवक ज्ञानेंद्र गोस्वामी ने भी कहा कि प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रही और मीडिया को अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मूल उद्देश्य भक्तों की सुविधा बढ़ाना था, न कि इस तरह के विवाद खड़े करना.
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