राष्‍ट्रवाद को चुनावी मुद्दा बनाकर राहुल गांधी ने खुद बीजेपी को गिफ्ट कर दिया

12 hours ago 1

राहुल गांधी ने पहलगाम अटैक के बाद केंद्र सरकार के हर फैसले में साथ खड़े रहने का वादा किया था. ऑपरेशन सिंदूर पर भी कांग्रेस खंभे की तरह सरकार के साथ खड़ी रही, लेकिन सीजफायर होने के बाद राजनीति शुरू हो गई. राहुल गांधी ने ऐसे सवाल खड़े किये हैं, जिस पर उन्‍हें अपनी पार्टी से ही पूरा समर्थन नहीं मिल रहा है. इधर, कांग्रेस और भाजपा के बीच जंग धीरे धीरे तू-तू मैं-मैं के घटिया स्तर तक पहुंच गई - अब तो पोस्टर वार भी चल रहा है. जाहिर है कि आईटी सेल के मैदान में उतर जाने से सारा मामला पॉलिटिकल हो गया है. जिसका इस्‍तेमाल यदि चुनाव में भी हो तो आश्‍चर्य नहीं होना चाहिये.

सीजफायर को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार बुरी तरह घिर गई थी. देश भर में लोग काफी नाराज थे, और खुलकर नाराजगी जाहिर कर रहे थे. बीजेपी समर्थकों में भी सरकार के प्रति हद से ज्यादा नाराजगी दिखी, लेकिन उसके बाद धीरे धीरे सब संभल भी गया - और स्थिति के संभलने में बीजेपी के प्रयासों से ज्यादा कांग्रेस की कमजोरी लगती है. 

2019 में पुलवामा हमले के बाद भी करीब करीब ऐसा ही हुआ था. शुरू में तो सब ठीक रहा, लेकिन धीरे धीरे राजनीति हावी होती गई और बीजेपी नेता राहुल गांधी सहित विपक्ष के नेताओं को कठघरे में खड़ा करने लगे - बिल्कुल वैसे ही जैसे पहलगाम अटैक और सीजफायर के बाद हो रहा है. बीजेपी नेता तब भी विपक्षी नेताओं के बयान पर पाकिस्तान में हेडलाइन चलने की बात करते हुए धावा बोल देते थे, अब भी वही सब देखने को मिल रहा है. 

1. सीजफायर के बाद बीजेपी बचाव की मुद्रा में आ गई थी

पहलगाम हमले के बाद लोगों के मन में बहुत गुस्सा था, और पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन लेने में हो रही देर से ये गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था. कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल लोगों के गुस्से को उभारते हुए केंद्र सरकार को घेरने लगे थे. तभी जाति जनगणना कराये जाने का भी फैसला हुआ, और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई का इंतजार कर रहे लोगों को थोड़ा भी अच्छा नहीं लगा. 

लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद तो सेना और सरकार की वाहवाही होने लगी. हर तरफ जोश हाई दिखाई दे रहा था. पाकिस्तान के मुकाबले भारत का पलड़ा भारी देख लोग ठीक से सबक सिखाये जाने का इंतजार कर रहे थे, तभी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में सोशल मीडिया के जरिये बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो गया है. 

विरोधी तो विरोधी बीजेपी सरकार के समर्थकों को भी सीजफायर के लिए सरकार का तैयार हो जाना ठीक नहीं लगा. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए सरकार को घेरने का अच्छा मौका था. ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी ने मौका गवां दिया. मौके का बिल्कुल फायदा नहीं उठाया. वो केंद्र की बीजेपी सरकार पर अमेरिकी दबाव में फैसले लेने का आरोप लगाने लगे - और चर्चा के लिए संसद का स्पेशल सेशन बुलाये जाने की मांग करने लगे. 

ये साफ हो चुका था कि बीजेपी ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी का क्रेडिट नहीं ले पाएगी, लेकिन राहुल गांधी की राजनीति ने ऐसी राह पकड़ी की बीजेपी के लिए सब कुछ आसान हो गया. कहां बीजेपी खुद घिरी हुई थी, और कहां कुछ ही दिन में बीजेपी नेता फिर से राहुल गांधी को घेरने लगे. 

2. संसद के विशेष सत्र के मुद्दे पर कांग्रेस अकेली पड़ गई

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पहलगाम हमले से लेकर सीजफायर तक के वाकये पर चर्चा के लिए संसद के दोनो सदनों का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग करने लगे. इस मामले में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और सीपीआई तो साथ नजर आये, लेकिन बाकी विपक्षी दलों ने हाथ पीछे खींच लिये. 

पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार ने तो राष्ट्रहित से जुड़े ऐसे नाजुक मामलों पर संसद में चर्चा की मांग को ही गलत बताया, और संसद की जगह सर्वदलीय बैठक बुलाकर चर्चा की सलाह दी. शरद पवार की ही तरह अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने भी खुद को इस डिमांड से अलग कर लिया. हालांकि, कांग्रेस नेता अपनी मांग दोहराते रहे. 

केंद्र सरकार पर दबाव बनाने में कांग्रेस को कमजोर पड़ते राहुल गांधी नये मुद्दे उठाने लगे, और कई तरह के सवाल पूछने लगे - और फिर स्वाभाविक रूप से बीजेपी की तरफ से भी जवाबी हमले किये जाने लगे.

अब अलग ही पोस्टर वार शुरू हो चुका है. सोशल मीडिया पर बीजेपी की तरफ से भी, और कांग्रेस की तरफ से भी. बीजेपी की तरफ से एक पोस्टर में राहुल गांधी और पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर का आधा आधा चेहरा दिखाया गया है. बीजेपी ने एक और पोस्टर जारी किया है, जिसमें राहुल गांधी को हरे रंग की टाई पहले एक शख्स के ऊपर खड़े दिखाया गया है. पोस्टर में राहुल गांधी का सवाल है, भारत ने कितने विमान खोये हैं?

3. विदेश मंत्री को घेरने के चक्कर में खुद घिर गये कांग्रेस नेता

ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक दिन कहा था, ऑपरेशन की शुरुआत में, हमने पाकिस्तान को संदेश भेजा था कि हम आतंकवादियों के बुनियादी ढांचे पर हमला कर रहे हैं... हम सेना पर हमला नहीं कर रहे हैं... इसलिए सेना के पास इस काम में दखल न करने, और अलग रहने का विकल्प है.

देखा जाये तो ये भी वैसी ही बात थी जिसमें सेना की तरफ से भी ब्रीफिंग में समझाया जा रहा था कि कैसे ऑपरेशन सिंदूर आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक है, जिसमें न तो सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जाता है, न ही नागरिकों को - लेकिन विदेश मंत्री एक बात ये भी बता दी थी कि ये बात पाकिस्तान को बता दिया गया था. 

राहुल गांधी और कांग्रेस नेता विदेश मंत्री के उसी बयान को लेकर जयशंकर को घेर लिये. राहुल गांधी ने जयशंकर के बयान का वीडियो शेयर करते हुए आरोप लगाया, हमारे ऑपरेशन के बारे में पाकिस्तान को पहले से जानकारी दिया जाना  अपराध था. विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया.

और विदेश मंत्री के खिलाफ कांग्रेस के अभियान में जयशंकर को 'मुखबिर' तक करार दिया गया - और फिर राहुल गांधी सवाल पूछने लगे, 'ऐसा करने के लिए किसने कहा? और इसकी वजह से हमारी वायुसेना ने कितने एयरक्राफ्ट खो दिये?

फिर राहुल गांधी का बयान आया, विदेश मंत्री जयशंकर की चुप्पी घातक भी है... मैं फिर से पूछूंगा कि हमने कितने भारतीय एयरक्राफ्ट गंवा दिये, क्योंकि पाकिस्तान को पहले से पता था. ये कोई चूक नहीं थी, बल्कि अपराध है. देश को सच जानने का हक है.

राहुल के सवालों पर जयशंकर ने तो नहीं, लेकिन विदेश मंत्रालय से जरूर बताया गया, विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि हमने पाकिस्तान को शुरुआत में ही चेतावनी दे दी थी, जिसका साफतौर पर मतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के बाद का शुरुआती फेज. इसे गलत तरीके से ऑपरेशन शुरू होने से पहले का बताया जा रहा है. तथ्यों को पूरी तरह से गलत तरीके से पेश किया जा रहा है.

4. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पर भी बेकार के बवाल हुए

रही सही कसर और बची खुची फजीहत विदेश दौरे पर भेजे जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पर हुई बहस में पूरी हो गई. केंद्र सरकार ने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले नेताओं में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को शामिल कर लिया. कांग्रेस ने कहा कि जिन नामों की पार्टी की तरफ से सिफारिश की गई थी, सरकार ने उनको नजरअंदाज किया, और शशि थरूर को अपने से ले लिया. 

राहुल गांधी की मुश्किल ये हुई कि शशि थरूर ने भी पार्टी की परवाह न करते हुए प्रतिनिधिमंडल में शामिल किये जाने अपने लिए गर्व की बात बता डाली. कांग्रेस के पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं. जयशंकर के बयान पर भी शशि थरूर सेै लेकर सलमान खुर्शीद और पी. चिदंबरम जैसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जगह सरकार के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. 

राष्ट्रवाद तो बीजेपी का राजनीतिक एजेंडा है ही. मौका मिले न मिले, बीजेपी चुनावों में राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाने की कोशिश करती ही है. कई बार फायदा नहीं मिलता, लेकिन वो अपने मुद्दे पर कायम रहती है. 2019 के आम चुनाव में तो इस बात का फायदा भी समझा जा चुका है. और अब तो बिहार चुनाव से पहले फिर से ये मुद्दा हावी होने लगा है, लेकिन ऐसा माहौल बनने में बीजेपी की कोशिशों से कहीं ज्यादा राहुल गांधी और कांग्रेस का योगदान लगता है.

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