लाडली बहन पॉलिटिक्स... बिहार में हर दल महिला वोटर्स को लुभाने में लगा, लेकिन क्यों आसान नहीं नीतीश के वोट बैंक में सेंध

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पिछले कुछ चुनावों से लाडली बहना पॉलिटिक्स राजनीतिक दलों के लिए चुनावी जीत की गारंटी बन गया है. मध्य प्रदेश हो या महाराष्ट्र या फिर झारखंड, इन राज्यों में महिलाओं को दिया गया डायरेक्ट कैश बेनिफिट सत्ताधारी दलों के लिए सरकार बनाने का वरदान साबित हुआ. वहीं, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, दिल्ली के चुनाव में कैश बेनिफिट का वादा जीत की कुंजी बन गया. अब हिंदी पट्टी का एक महत्वपूर्ण राज्य बिहार विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. बिहार चुनाव के दिन जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, लाडली बहन पॉलिटिक्स को लेकर चर्चा तेज होती जा रही है.

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का अघोषित चेहरा माने जा रहे तेजस्वी यादव सत्ता में आने पर माई-बहिन मान योजना लाकर महिलाओं के खाते में हर महीने 2500 रुपये भेजने का वादा कर चुके हैं. तेजस्वी के इस दांव को काउंटर करने के लिए 'लाड़ला मुख्यमंत्री' नीतीश कुमार की सरकार के भी जुलाई तक ऐसी कोई योजना लागू करने की चर्चा है. हालांकि, सरकार या सत्ताधारी गठबंधन में शामिल किसी दल की ओर से इसे लेकर कोई ऐलान नहीं किया गया है. सवाल उठ रहा है कि बिहार चुनाव से पहले सूबे में लाडली बहन पॉलिटिक्स की चर्चा क्यों हो रही है?

बिहार में लाडली पॉलिटिक्स की चर्चा क्यों

बिहार में लाडली पॉलिटिक्स की चर्चा के पीछे महिला मतदाताओं की तादाद और वोटिंग पैटर्न भी वजह है. 1 जनवरी 2025 को आधार मानकर चुनाव आयोग की ओर से जारी की गई मतदाता सूची में कुल मतदाताओं की तादाद बढ़कर 7 करोड़ 80 लाख पहुंच गई है. महिला मतदाताओं की संख्या भी 3 करोड़ 72 लाख के करीब है. पिछले कुछ चुनावों का वोटिंग पैटर्न देखें तो महिला मतदाता वोट डालने के लिए पुरुषों के मुकाबले अधिक संख्या में घर से निकली हैं. महिलाओं वोटर्स का टर्नआउट पुरुषों के मुकाबले अधिक रहा है.

पिछले तीन चुनावों से महिला वोटर्स का टर्नआउट अधिक

बिहार विधानसभा के पिछले तीन चुनावों से महिला मतदाताओं का टर्नआउट पुरुषों के मुकाबले अधिक रहा है. साल 2010 के बिहार चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में वोट डालने के मामले में महिलाएं आगे रही थीं. तब पुरुषों का टर्नआउट 53 और महिलाओं का 54.5 फीसदी रहा था. इस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को 115 सीटें मिली थीं. 2015 में 51.1 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 60.4 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया था. 2020 के बिहार चुनाव में जहां 54.6 फीसदी पुरुषों ने वोट किए थे. इस चुनाव में भी 59.7 फीसदी महिलाओं ने वोट किया था, जो पुरुषों के मुकाबले 5 फीसदी अधिक है.

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बीजेपी का साइलेंट, नीतीश का कोर वोटबैंक

महिलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का साइलेंट वोटर माना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के तमाम बड़े नेता अलग-अलग राज्यों के चुनाव में मिली जीत के लिए महिला मतदाताओं को श्रेय दे चुके हैं. लेकिन बिहार में तस्वीर थोड़ी अलग है. बिहार में महिला वोटबैंक को नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू का कोर वोटर माना जाता है. नीतीश कुमार की पार्टी लगातार 16 फीसदी के आसपास वोट शेयर बरकरार रखने में सफल रही है, तो उसके पीछे भी इसी महिला वोटबैंक की भूमिका मानी जाती है.

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आसान नहीं नीतीश के वोटबैंक में सेंध

माई-बहिन मान योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने के आरजेडी के वादे और लाडली पॉलिटिक्स को लेकर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क कहते हैं कि नीतीश के कोर वोट में सेंध लगा पाना आसान नहीं होगा. कैश बेनिफिट का दांव चुनावी राजनीति का सफल फॉर्मूला बनकर सामने आया है, लेकिन बिहार में देखना होगा कि यह कितना सफल हो पाता है. शराबबंदी जैसे कदमों से महिलाओं के बीच अपनी सियासी जमीन बनाने वाले नीतीश कुमार ने साइकिल योजना से लेकर आजीविका तक, महिला केंद्रित कई योजनाएं चलाईं. नीतीश अलग-अलग योजनाओं के माध्यम से महिलाओं तक बेनिफिट पहुंचाते आए हैं. ऐसे में बिहार चुनाव इस दांव का भी टेस्ट होगा.

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