शिव का हार-विष्णु की शैय्या... आस्था, परंपरा और लोककथाओं का अद्भुत उत्सव है नागपंचमी

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कविवर रामधारी सिंह दिनकर की एक प्रसिद्ध कविता है, मनुष्य और सर्प. इस कविता में महाभारत युद्ध के आखिरी दिनों का वर्णन है, जब कर्ण को सेनापति बनाया गया था. होता यूं है कि कर्ण अपने रथ पर होता है, वह अर्जुन पर प्रहार करने के लिए अपने तरकश में हाथ बढ़ाता है तो तीर में लिपटा हुआ एक सर्प भी उसके हाथ में आ जाता है. इसका नाम अश्वसेन है और यह तक्षक कुल का है.

इस कविता में कर्ण और अश्वसेन की ही बातचीत है. सर्प अश्वसेन खांडवप्रस्थ जलाए जाने को लेकर अर्जुन से अपना पुराना बदला लेना चाहता है. मौका देखकर वह कर्ण के तरकश में घुस जाता है. सर्प, कर्ण से प्रार्थना कर रहा है कि मुझे अपने तीर पर बैठाकर अर्जुन की ओर शर संधान करो. तुम्हारा शत्रु तुम्हारे वार से बच भी गया तो भी मेरे विष से नहीं बचेगा. 

कर्ण उसे मना कर देता है और इस बातचीत में वह सर्पों के गुण-धर्म भी बताता है. कर्ण कहता है कि विषैले होने के बाद भी सर्प पवित्र रहे हैं. तू शिव का हार है, विष्णु की शैय्या है. धरती का धरणीधर है, इसलिए अपने ऊपर धोखे का कलंक मत लगा. अपने साथ मुझे भी इस कलंक में न मिला, कर्ण ने जो वर्णन किया, वह बताता है कि भारतीय सनातनी परंपरा और सामाजिक ताने-बाने में हर जीव और जंतु का कितना सुंदर योगदान है, कर्ण की जो बातें पौराणिक तौर पर दर्ज हैं, विज्ञान इसे ही बायो डाइवर्सिटी कहता है, जिसे हम जैव विविधता के तौर पर जानते हैं.

Nag Panchami

भारतीय समाज में व्रत-त्योहार की परंपरा और जैव विविधता
भारतीय समाज में व्रत और त्योहारों की परंपरा की ओर देखें तो यहां जैव विविधता का सुंदर उदाहरण मिलता है, साथ ही यह भी पता चलता है कि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में इसे किसी से सीखने की जरूरत नहीं है बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपराओं में रचा-बसा है. इसी कड़ी में नाग पंचमी का त्योहार भी शामिल है, जो जैव विविधता की ही एक बानगी है और हमारी मिली-जुली संस्कृति का हिस्सा है.

नागपंचमी के रूप में नागों की पूजा प्रकृति और जीव-जंतु मात्र की पूजा का प्रतीक है. नागपंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. इस समय वर्षा होने से खेतों और बिलों में पानी भरने के कारण सर्प बाहर आ जाते हैं, भय में कोई इन सर्पों की हत्या न कर दे, इसलिए इन दिनों उनकी पूजा का विधान माना गया है. सांप सिर्फ विषधर जीव नहीं हैं, बल्कि कई मामलों में किसानों के मित्र भी हैं. ये कीट-पतंगों और चूहों से फसलों की रक्षा भी करते आए हैं. भारत में नागपंचमी पर नाग की पूजा कहीं साकार, कहीं, मूर्ति तो कहीं गोबर-घी आदि से बनी आकृति-भित्ती चित्रों के रूप में की जाती है. 

मानव इतिहास में प्राचीन काल से शामिल है नाग वर्णन
नागों का वर्णन प्राचीन काल से मनुष्यों के इतिहास में शामिल होता है. कई पौराणिक कथाओं में नाग एक किरदार की तरह रहे हैं. पुराणों में वर्णन है कि समुद्र-मंथन में वासुकी नाग को मंदराचल पर्वत के आस-पास लपेटकर रस्सी की तरह उपयोग किया गया. भगवान शिव, सर्पहार ही पहनते हैं. गणेश जी नागों को कमरबंद की तरह इस्तेमाल करते हैं. महादेव शिव की स्तुति शिवाष्टक में भी वर्णन है कि: “गले रुंडमालम तनौ सर्पजालं” जिसका मतलब है शंकरजी का पूरा शरीर सांपों के जाल से ढंका है.

रामायण-महाभारत में नागों की प्रमुख भूमिका
भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं. भगवान विष्णु के ध्यान मंत्र में यही बोला जाता है कि: “शांताकारम भुजंग शयनं पद्मनाभं सुरेशं”. रामायण में विष्णु अवतार भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और महाभारत में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को शेषनाग का ही अवतार बताया जाता है. रामायण में ही रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी सुलोचना, नागकन्या थी और शेषनाग की पुत्री थी. रामायण में ही सुरसा राक्षसी नागों की माता बताई गई हैं. तुलसीदास रामचरित मानस में लिखते हैं 
'सुरसा नाम अहिन्ह कै माता, पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।। 
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।।'

इसी तरह महाभारत में अर्जुन नागकन्या उलूपी से विवाह करता है. अर्जुन का पौत्र, यानी अभिमन्यु का बेटा परीक्षित तक्षक नाग के डंसने से मारा जाता है. इससे क्रोधित जन्मेजय ने जब नाग यज्ञ किया तो धरती के अधिकांश नाग भस्म हो गए. तब वासुकी नाग की बहन और ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने नाग यज्ञ रुकवाया और सर्पों की रक्षा की. कहते हैं कि जन्मेजय का नाम लेकर और आस्तीक-आस्तीक जपने वाले को सर्पदंश का भय नहीं होता है.

पौराणिक कथाओं में नागों की मौजूदगी
दधीची ऋषि की अस्थियों से बने अस्त्र से इन्द्र के हाथों मारा गया वृत्तासुर भी नागराज ही था. वेदों में सांप का नाम अहि मिलता है. इसके अलावा अनेक रूपों में नाग जाति के बारे में लिखा गया है. नागों के नाम पर अस्त्र भी हैं. मेघनाद ने नागपाश में राम-लक्ष्मण को बांध लिया था. श्रीकृष्ण कालिया नाग का दमन करते हैं और दुर्योधन के विष से बेहोश हुए भीम नागलोक पहुंच जाते हैं. यहां उन्हें 100 हाथियों के बराबर बल प्राप्त हो जाता है. यम की रस्सी भी नागों की बनी बताई जाती है. जीवन में कर्म की डोर जो कि स्वर्ग और नर्क से जुड़ी बताई जाती है, कहते हैं कि वह भी असल में एक नाग ही है. एक बार नहुष नाम के राजा को इंद्र बनाया गया, लेकिन वह अपने कर्म से मुक्त नहीं हो पाया. उसकी लालसा में लपलपाती जीभ देखकर ऋषियों ने उसे सर्प हो जाने का श्राप दे दिया. 

कहने का तात्पर्य है, नाग या सर्प सिर्फ जमीन पर रेंगने वाले प्राणी नहीं हैं, बल्कि मनुष्यों की तरह और उनके बराबर ही उनका भी इतिहास है. वह खुद एक देवता हैं जो तबसे हैं जब से मानव सभ्यता है. कई सभ्यताओं ने अपना प्रतीक चिह्न नागों को बनाया है. कश्मीर का अनंतनाग जिला, किसी समय में नागों की समृद्ध राजधानी था. इसके प्रमाण आज भी वहां मिलते हैं और कई लोककथाओं में इनका जिक्र होता है. पूर्वोत्तर का एक प्रांत नगालैंड, नागीय जनजाति की ओर ही इशारा करता है. अनुमान लगाया जाता है कि प्राचीन काल का नागलोक यहीं रहा होगा.

Nag Panchami

लोककथाओं में नाग
नाग, सांप या सर्प... मनुष्य जाति के साथ हमकदम जीव की ही तरह रहे हैं. लोककथाओं में नागों को जितनी तवज्जो मिली है, शायद ही किसी अन्य जंतु को वह हासिल हुई है. सबसे अधिक कल्पनाशीलता भी इन्हीं कहानियों में है. जैसे नागमणि की कल्पना... जो किसी को मिल जाए तो अमर बना दे और रंक से राजा बना दे. नागों का रूप बदलना और मायावी होना, ऐसी तमाम कल्पनाएं हैं, जो इनके साथ जुड़ी हैं. वैज्ञानिक युग होने के बावजूद नागों से जुड़ी कथाओं का अपना अलग ही रहस्यलोक है, अलग ही रोमांच है. हमारी आस्था से लेकर लोक व्यवहार तक में नाग हमसे सीधे जुड़े हुए हैं और हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं.

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