'नेपाल के बेरोजगार युवाओं ने बांग्लादेश...', हिंसा और ओली के इस्तीफे को लेकर नेपाली मीडिया में क्या चल रहा?

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भारत के अहम पड़ोसी नेपाल की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है जहां सोशल मीडिया बैन को लेकर शुरू हुआ Gen-Z आंदोलन हिंसक रूप ले चुका है. आंदोलन इतना व्यापक हो चुका है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है. इससे पहले देश के गृह, कृषि और स्वास्थ्य मंत्री समेत पांच मंत्रियों का इस्तीफा सामने आया है. नेपाल के अराजकता की खबरें दुनियाभर की मीडिया में छाई हुई हैं और नेपाल के अखबार आंदोलन के पल-पल की कवरेज कर रहे हैं.

नेपाल के लगभग सभी प्रमुख अखबारों में पीएम ओली की आलोचना देखने को मिल रही है और बताया जा रहा है कि सोमवार को हुई हिंसा के जिम्मेदार प्रधानमंत्री हैं.

नेपाल के एक प्रमुख अखबार 'द काठमांडू पोस्ट' ने पीएम ओली के इस्तीफे की खबर पर लिखा है, 'विनाशकारी विरोध-प्रदर्शनों के बीच पीएम ओली ने दिया इस्तीफा.'

Gen-Z प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दमन की कार्रवाई...

अखबार ने लिखा कि भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन के दौरान 19 प्रदर्शनकारियों के मारे जाने और सैकड़ों के घायल होने के बाद पीएम ओली अपने पद से हट गए हैं.

अखबार ने लिखा, 'पीएम ओली का इस्तीफा प्रदर्शनकारियों के संसद भवन पर हमले, नेताओं के घरों में तोड़-फोड़ के बाद आया है जो सोमवार को जेन जी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दमन की कार्रवाई के बाद शुरू हुई था.'

काठमांडू पोस्ट लिखता है कि ओली 2024 से सत्ता में आए थे और नेपाली कांग्रेस के समर्थन से चौथी बार पीएम बने थे. हिंसा को लेकर उनपर इस्तीफे का काफी दबाव था. प्रदर्शनकारियों और मानवाधिकार समूहों ने उनकी सरकार पर निहत्थे प्रदर्शनकारियों के खिलाफ घातक बलप्रयोग का आरोप लगाया है. अखबार आगे लिखता है कि उनके इस्ताफे के साथ ही उनके राजनीतिक करियर का भी अंत हो गया है.

पीएम ओली और उनकी 'बर्बरता'

काठमांडू पोस्ट के संपादकीय में सोमवार को हुई हिंसा को लेकर सरकार पर निशाना साधा गया है. संपादकीय में लिखा गया, 'सोमवार को नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे खूनी दिन था, जब सुरक्षा बलों ने भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ आवाज उठाने वाले जनरेशन-Z प्रदर्शनकारियों पर आतंक बरसाया. संसद भवन के सामने ओली की बर्बरता पूरी तरह सामने आई जब उनके समर्थकों ने निर्दोष युवाओं पर गोलियां बरसाईं जिसमें 19 लोग मारे गए. 2008 में लोकतंत्र की वापसी आंदोलन के समय तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र शाह के समय भी इतनी ही हत्याएं हुई थीं.'

संपादकीय में लिखा गया कि जब से ओली राजनीति में हैं, उनके लोकतंत्र विरोधी रुख को लेकर कभी कोई संदेह नहीं रहा.

अखबार ने लिखा, 'लोकशाही की कमजोरी यह है कि ओली जैसे लोग, जो उसी व्यवस्था को विष देते आए, बार-बार सत्ता में आ जाते हैं. ऐसे लोगों का बार-बार सत्ता में आना हमारी लापरवाही का नतीजा है, हमारा असफल नागरिक धर्म निभाने का परिणाम. पिछले दो दशकों में, हम यह झूठ मानते रहे कि केवल अपना टैक्स जमा करना ही अच्छे नागरिक होने का जैसे पर्याप्त सबूत है और हमने नेताओं को पूरी छूट दे दी.'

संपादकीय में आगे लिखा गया कि पूरी कहानी है कि Gen Z- जिसके लिए हम सोचते थे कि वो केवल इंटरनेट पर कंटेंट बनाने में व्यस्त हैं, ने कह दिया है कि अब बहुत हुआ और वो सड़कों पर आ गए... उन्होंने अपना फर्ज निभाया. अब यह सिर्फ सोशल मीडिया बैन, भाई-भतीजावाद या भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन नहीं रहा, यह हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों और इंसानियत को बचाने की लड़ाई बन चुकी है.

नेताओं के घर जले, पीएम ने दिया इस्तीफा

नेपाल के एक और अखबार 'द हिमालयन टाइम्स' ने भी केपी शर्मा ओली के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को सौंपे गए इस्तीफे का बयान छापा है. अखबार ने लिखा, 'राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को लिखे अपने पत्र में ओली ने देश की असाधारण परिस्थितियों को स्वीकार किया और संवैधानिक राजनीतिक समाधान की वकालत की.'

ओली के हवाले से अखबार ने लिखा, 'मुझे संविधान के अनुच्छेद 76(2) के तहत प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था. देश की असाधारण परिस्थितियों को देखते हुए और संवैधानिक राजनीतिक समाधान के लिए आगे के कोशिशों को आसान बनाने के लिए मैं संविधान के अनुच्छेद 77(1)(a) के तहत तत्काल प्रभाव से प्रधानमंत्री पद से अपना इस्तीफा देता हूं.'

अखबार ने जेन-जी प्रोटेस्ट में निशाना बनाए गए मंत्रियों के घरों को लेकर कई खबरें प्रकाशित की है. प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड', सत्तारूढ़ पार्टी के नेता और नेपाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शेर बहादुर देउवा के घरों को नुकसान पहुंचाया. देउवा के घर पर कब्जे के बाद प्रदर्शनकारियों ने वहां खड़ी आधे दर्जन से ज्यादा गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया.

सिर्फ सोशल मीडिया बैन नहीं है आंदोलन की वजह

नेपाल के एक और अखबार 'नेपाली टाइम्स' ने सोमवार, 8 सितंबर को विरोध प्रदर्शनों में हुई भीषण हिंसा पर एक रिपोर्ट छापी है जिसमें लिखा है, 'यह आंदोलन ऑनलाइन शुरू हुए विरोध का हिस्सा है जिसका नेतृत्व युवा नेपाली कर रहे थे.'

नेपाली टाइम्स लिखता है, 'इस आंदोलन में उन्होंने नेताओं और अन्य प्रभावशाली हस्तियों के बच्चों और रिश्तेदारों के मिले विशेषाधिकारों के भड़कीले प्रदर्शन पर सामने लाकर रखा. इससे नेपाल में भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और अमीरी-गरीबी की खाई को लेकर व्यापक चर्चा छिड़ गई. बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का सामना कर रहे नेपाली युवाओं ने हाल ही में बांग्लादेश में हुए सड़क आंदोलनों को देखा है. वहां सरकारी नौकरियों में कोटा आधारित भर्ती के खिलाफ छात्रों के आंदोलन ने पिछले साल जोर पकड़ा जिससे शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी थी.'

अखबार ने नेपाल के युवाओं की बदहाली का जिक्र करते हुए आगे लिखा, 'नेपाल में जनता का गुस्सा भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और सरकारी तंत्र की जवाबदेही की कमी के खिलाफ लगातार बढ़ रहा था. देश में बेरोजगारी की स्थिति यह है कि लगभग 10% नेपाली, जिनमें ज्यादातर युवा हैं, विदेशों में काम करते हैं या बेहतर जीवन की तलाश में देश छोड़ देते हैं. वहीं, खास लोग सोशल मीडिया पर अपनी विदेशी छुट्टियों की तस्वीरें पोस्ट करते हैं, जिनका खर्च उनके ऊंचे पदों पर बैठे रिश्तेदार काले धन से उठाते हैं.'

अखबार लिखता है कि 'इसी निराशा के बीच, Gen Z के युवा नेपाली भ्रष्टाचार-विरोधी और सरकार-विरोधी आंदोलन के लिए देशभर में आह्वान कर रहे थे. ठीक इसी समय, 5 सितंबर को नेपाल सरकार ने यह फैसला लिया कि 26 सोशल मीडिया साइट्स को प्रतिबंधित किया जाएगा क्योंकि उन्होंने वो नेपाल में रजिस्ट्रेशन कराने और टैक्स देने में विफल रहे है.' अखबार ने लिखा कि इसी फैसले से चिंगारी भड़की. 

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