'मैं हर महीने बच्चों को पैसे…' कहकर रो पड़ी नेपाली महिला... सोनागाछी की गलियों में बेबसी की दास्तान

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सोनागाछी की संकरी गलियों में सुबह की धूप पड़ रही थी. लोग अपने कामों में व्यस्त थे, लेकिन कुछ चेहरे तनाव और बेचैनी में थे. ये नेपाल की वे महिलाएं थीं, जो एशिया के इस सबसे बड़े रेड-लाइट डिस्ट्रिक्ट में काम करती हैं. और नेपाल में भारी बवाल के बीच अपने परिवारों की सुरक्षा को लेकर चिंता में हैं.

कोलकाता के इस इलाके से करीब 800 किलोमीटर दूर नेपाल में विरोध, प्रदर्शन, हिंसा, बवाल और तख्तापलट हो चुका है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने छात्र-आंदोलन के दबाव में इस्तीफा दे दिया. देशभर में प्रदर्शनकारियों ने नेताओं के घरों में आग लगा दी, पार्टी कार्यालयों पर कब्जा कर लिया और संसद भवन में तोड़फोड़ की. पुलिस की गोलीबारी में करीब दो दर्जन मौतें हुईं, जिससे जनता का गुस्सा और बढ़ गया. सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर भारी हिंसा हुई है.

सोनागाछी में नेपाल की महिलाएं अपने मोबाइल पर लगातार न्यूज फीड चेक कर रही थीं. बार-बार कॉल करतीं, नेटवर्क डाउन. एक महिला ने कहा कि मैंने अपनी मां से तीन दिन से बात नहीं की. मुझे नहीं पता, वे सुरक्षित हैं या नहीं. एक अन्य महिला बात करते हुए रो पड़ी. उसने कहा- मैं हर महीने अपने दो बच्चों को पैसे भेजती हूं, जो पोकरा के पास अपने दादा-दादी के साथ रहते हैं. इस महीने नहीं जानती कि पैसे पहुंच पाएंगे या नहीं. अगर नहीं भेजे तो बच्चों का पेट कैसे भरेगा?

सोनागाछी की गलियों में इन महिलाओं की बेचैनी उन पर हावी है. कभी-कभी वे हंसती नजर आथी हैं, कस्टमर के सामने मुस्कराती हैं, लेकिन भीतर से उनका दिल जल रहा होता है. उनकी हंसी सिर्फ मास्क है, उनकी आंखों में डर और चिंता साफ दिखती है. एक और महिला का कहना था- घर लौटने का सपना टूट गया. हम घर जाना चाहें तो कोई रास्ता नहीं है. बॉर्डर बंद है, फ्लाइट्स रद्द हैं, नेपाल के एयरपोर्ट बंद हैं. हम फंसे हैं और परिवार भी. 

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इस सेक्स वर्कर्स के बच्चों की हेल्प करने वाले एनजीओ 'अमरा पदातिक' के साथ काम करने वाली महाश्वेता मुखोपाध्याय कहती हैं- वे पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं. न अपने परिवार से संपर्क कर पा रही हैं और न ही ये पता है कि पैसे भेज पाएंगी या नहीं. हम NGO की बैठक करेंगे और रास्ता निकालेंगे कि वे अपने परिवार से बात कर सकें और पैसे भेज सकें.

सोनागाछी में नेपाल की लगभग 200 महिलाएं अब भी काम कर रही हैं. दशकों से नेपाल की महिलाएं कोलकाता के रेड-लाइट इलाकों में मौजूद रही हैं. वे यहां अक्सर किसी मजबूरी के चलते पहुंची हैं. आज उनके लिए संकट यह है कि उनकी जिंदगी, उनका परिवार सब असुरक्षित है.

सोनागाछी की गलियों में उनका हर पल बेचैनी के साथ बीत रहा है. मोबाइल पर खबरें देखते हुए, कभी-कभी चुपके से आंसू पोंछती हुई कहने लगती हैं- हम नहीं जानते कि हमारे परिवार सुरक्षित हैं या नहीं. अपने घरों से दूर ये महिलाएं उम्मीद की किरण के साथ जी रही हैं. 

सोनागाछी की ये महिलाएं अपने दर्द को छुपाए हुए हैं. मुस्कान के पीछे डर को छिपाए हुए हैं. नेपाल में मचे बवाल को लेकर लोगों का कहना है कि राजनीतिक घटनाएं केवल दूरदराज की नहीं होतीं, उनका असर लोगों की जिंदगियों पर पड़ता है, कभी-कभी उनके घरों की चौखट तक पहुंच जाता है.

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