बच्ची को मंत्री की कार ने कुचला, ओली ने कहा- छोटी बात... क्या यहीं से भड़की बगावत की चिंगारी?

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नेपाल इन दिनों जिस राजनीतिक भूचाल से गुजर रहा है, उसकी जड़ें केवल सत्ता संघर्ष तक सीमित नहीं हैं. कहा जा रहा है कि जनता के गुस्से की चिंगारी उस हादसे से भड़की, जिसमें एक मंत्री की गाड़ी ने सड़क पार कर रही 11 साल की बच्ची को टक्कर मार दी. हादसे से कहीं ज्यादा लोगों को उस रवैये ने झकझोर दिया, जो इसके बाद सत्ता और सिस्टम ने दिखाया.

शनिवार सुबह करीब 7:15 बजे, कोशी प्रांत के वित्त मंत्री राम बहादुर मगर अपनी सरकारी गाड़ी से UML के स्टैच्यूट जनरल कन्वेंशन में शामिल होने जा रहे थे. रास्ते में ललितपुर के हरिसिद्धि क्षेत्र में सड़क पार कर रही 11 साल की उषा सुनुवार मगर उनकी गाड़ी की चपेट में आ गई.

टक्कर इतनी जोरदार थी कि बच्ची सड़क पर गिर पड़ी. राहगीरों ने तुरंत उसे पास के बी एंड बी अस्पताल ग्वार्को में भर्ती कराया. उसके चेहरे पर गहरी चोटें आईं, लेकिन पुलिस के मुताबिक वह होश में थी और बात कर पा रही थी. ललितपुर पुलिस के एसपी चक्र राज जोशी ने बताया कि बच्ची की हालत फिलहाल स्थिर है. चेहरे पर चोट आई है, लेकिन वह बात कर पा रही है.

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हादसे के तुरंत बाद गुस्साए स्थानीय लोग सड़क पर उतर आए. उन्होंने गोडावरी रोड को गाड़ियां खड़ी करके जाम कर दिया. बेंच रखकर रास्ता रोक दिया. उनका सवाल सीधा था- VIP गाड़ियों को जनता की जान से ज्यादा अहमियत क्यों है? प्रदर्शन का समय भी अहम था, क्योंकि पास में UML का बड़ा अधिवेशन चल रहा था. माहौल पहले से ही राजनीतिक रूप से गर्म था, और यह घटना आग में घी का काम कर गई.

मंत्री पहुंचे अस्पताल, पर गुस्सा कम न हुआ

मंत्री राम बहादुर मगर बाद में अस्पताल पहुंचे और बच्ची का हालचाल लिया, लेकिन इसके बावजूद जनता का गुस्सा शांत नहीं हुआ. असल वजह थी हादसे के बाद सरकार का रवैया. कार चला रहे ड्राइवर को पुलिस ने पकड़ तो लिया, लेकिन 24 घंटे के भीतर छोड़ भी दिया. और इससे भी ज्यादा भड़काने वाला बयान आया प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की तरफ से. उन्होंने इस पूरे मामले को छोटी सी बात कहकर टाल दिया.

सोशल मीडिया पर भड़का आक्रोश

हादसे के कुछ वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं. खासकर जेनरेशन Z के युवाओं में यह चर्चा तेजी से फैली कि नेताओं और मंत्रियों के लिए आम जनता की जान की कोई कीमत नहीं है. टिकटॉक, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर लोग विरोध जताने लगे. बड़ी संख्या में युवा सड़कों पर उतर आए. उनका कहना था कि यही नेपाल की राजनीति की असली समस्या है- नेताओं की जवाबदेही का अभाव और जनता की बेइज्जती.

हादसा या चिंगारी?

नेपाल में सोशल मीडिया बैन और उसके खिलाफ पहले से गुस्सा पनप रहा था. ललितपुर की इस घटना ने गुस्से को दिशा दे दी. लोगों को लगा कि अब चुप रहने का कोई फायदा नहीं. अगर आज एक 11 साल की बच्ची सुरक्षित नहीं है, तो कल और कौन होगा? यही सवाल धीरे-धीरे पूरे देश में गूंजने लगा.

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हादसे के बाद शुरू हुआ गुस्सा सड़क जाम तक सीमित नहीं रहा. छात्रों और युवाओं ने इसे आंदोलन का प्रतीक बना लिया. स्कूल-कॉलेजों के बाहर प्रदर्शन हुए. राजधानी काठमांडू में मार्च निकाले गए. UML के अधिवेशन की कार्यवाही भी बाधित हो गई. मंत्री मगर भले ही बच्ची से मिलने अस्पताल गए हों, लेकिन जनता ने इसे महज दिखावा माना. उषा सुनुवार मगर अब अस्पताल में है, और इलाज चल रहा है.

ड्राइवर की रिहाई और पीएम का बयान सिर्फ गुस्से की वजह नहीं थे. वे जनता को यह एहसास दिलाने के लिए काफी थे कि सत्ता उनके दर्द को समझने के लिए तैयार नहीं है. नेपाल की जनता पहले से ही आर्थिक संकट, बेरोजगारी और राजनीतिक अस्थिरता से परेशान थी. सोशल मीडिया पर पाबंदी ने युवाओं के गुस्से को और बढ़ाया. और जब सड़क पर एक बच्ची को मंत्री की गाड़ी टक्कर मारती है, फिर सरकार उसे छोटी बात कहकर टाल देती है- तो यह गुस्सा विस्फोटक हो जाता है.

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