देश में शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन देश में कुछ स्कूल ऐसे भी हैं, जहां बच्चों के लिए छत भी नहीं है. खुले आसमान के नीचे स्कूल चल रहे है. ऐसे ही कुछ स्कूल बिहार में हैं, जो 2006 में शुरू हो गए थे, लेकिन वहां पढ़ने वाले छात्र अभी तक स्कूल के भवन का इंतजार कर रहे हैं. यहां इस दौर में भी बच्चों को खुले आसमान के नीचे पढ़ाया जाता है.
बिहार के इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र बताते हैं कि बिल्डिंग ना होने की वजह से उन्हें बदलते मौसम की मार का समाना करना पड़ता है. कभी भयानक गर्मी तो कभी बरसात और इसके साथ ही सांप, बिच्छू जैसे जीवों से भी खतरा रहता है.
बिना बिल्डिंग के चल रही पढ़ाई
बिहार के सुपौल जिले के सरायगढ़, भाप्तियाही ब्लॉक के दो ऐसे स्कूल हैं जो बिना बिल्डिंग के चलाए जा रहे हैं. इनमें टीचर भी है, यहां क्लासेस भी नियमित चलती हैं और 184 बच्चों का एडमिशन भी है, लेकिन यहां स्कूल चलाने के लिए कोई भवन का निर्माण नहीं किया गया है. यह स्कूल खुले आसमान के नीचे चलाया जाता है.
स्कूल में लड़कियों की संख्या है ज्यादा
बिहार के इस भवन रहित स्कूल में लड़कियों की संख्या ज्यादा है. यहां ज्यादातर छात्र अति पिछड़े वर्ग से आते हैं. मुखिया टोला (नरनपुर गांव) के प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर बिपिन राय बच्चों के दुख को बताते हैं कि अगर ये बच्चे मजबूत सामाजिक स्थिति से या ऊंची जाति से होते तो आज इन्हें भी अच्छी व्यवस्था मिलती.
संघर्ष के बीच शिक्षा
बारिश का मौसम इन बच्चों के लिए आफत बन जाता है. बिपिन राय बताते हैं कि स्कूल की फाइलों को और बच्चों को बारिश से बचाने के लिए गांव के एक कॉमन सिटिंग एरिया का इस्तेमाल किया जाता है.
बिपिन बताते हैं कि उनके स्कूल से पास हुए 4 से 5 छात्र आज टीचर बन चुके हैं. लेकिन इसके साथ बच्चों के ड्रॉप आउट का आंकड़ा भी बढ़ गया है.
शिक्षा व्यवस्था पर सवाल
बिहार के ऊर्जा मंत्री, श्री बिजेंद्र प्रसाद यादव जी का गांव भी इस क्षेत्र के पास पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद शायद यहां पढ़ने वाले बच्चों का दुख अभी तक उन्हें पता नहीं चल सका है. आज के समय में शिक्षा को महत्व देने की बात की जाती है और दूसरी ओर शिक्षा के हालात खराब नजर आ रहे हैं.स्कूल के भवन का निर्माण इतने समय से ना कर पाना, बहुत बड़ी लापरवाही है, जो शिक्षा व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल उठा रही है.
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