80 लाख तक की ज्वेलरी पहनकर आईं महिलाएं... 17वीं सदी से जुड़ी इस मेले की पूरी कहानी

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राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में भादवा सुदी दशमी पर हर साल लगने वाला विश्व प्रसिद्ध खेजड़ली शहादत मेला इस बार भी श्रद्धा और आस्था के साथ लगा. यह मेला दुनिया का इकलौता ऐसा पर्यावरण मेला है, जो पेड़ों और पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले 363 शहीदों की स्मृति में लगता है. इनमें मां अमृता देवी बिश्नोई भी शामिल थीं, जिन्होंने सन् 1730 में खेजड़ी वृक्षों को बचाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.

इस बार मेले का शुभारंभ खेजड़ली शहीदी राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान के अध्यक्ष मलखान सिंह बिश्नोई के नेतृत्व में हुआ. इस दौरान देशभर से लाखों श्रद्धालु, संत, जनप्रतिनिधि और पर्यावरण प्रेमी खेजड़ली पहुंचे. राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में बिश्नोई समाज के लोग इस आयोजन में शामिल हुए.

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मेले की एक खासियत यह रही कि इसमें महिलाएं सोने और कुंदन से जड़ी 50 से 80 लाख तक की भारी-भरकम ज्वेलरी पहनकर शामिल हुईं. रंग-बिरंगे परिधानों और आभूषणों से सजी महिलाओं ने मेले में शामिल होकर शहीदों को नमन किया. मेले के दौरान खुला अधिवेशन, महिला सम्मेलन, युवा सम्मेलन और संत समागम आयोजित किए गए. संस्थान ने इस अवसर पर रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया.

jodhpur khejadli martyrdom fair women wear 80 lakh jewellery

केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, मंत्री जोगाराम पटेल, के. के. बिश्नोई और शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी सहित कई नेताओं ने सभा को संबोधित किया. गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि गुरु जंभेश्वर भगवान ने सदियों पहले ही प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा का संदेश दिया था, जिसे हमें अपने जीवन में धारण करना चाहिए. उन्होंने मां अमृता देवी के बलिदान को आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बताया.

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वहीं, विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने बिश्नोई समाज को भरोसा दिलाते हुए कहा कि खेजड़ी और जीव संरक्षण के लिए अगर विधानसभा में टेबल भी तोड़नी पड़े, तो वह पीछे नहीं हटेंगे. हर साल की तरह इस बार भी खेजड़ली का मेला न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र बना, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के संकल्प का बड़ा मंच भी साबित हुआ. लाखों श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर शहीदों को नमन किया और प्रकृति की रक्षा का संदेश दोहराया.

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