योगी सरकार को प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के विलय के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाई कोर्ट ने 50 से कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक स्कूलों का नजदीकी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विलय करने के सरकार के फैसले को संवैधानिक और जनहित में बताया है. अदालत का यह फैसला योगी सरकार की शिक्षा गुणवत्ता सुधार की नीति को न्यायिक स्वीकृति मिलने जैसा है. बता दें कि शिक्षक संघ और समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी सहित विपक्षी दलों ने राज्य सरकार की स्कूल विलय योजना का विरोध किया था, लेकिन योगी सरकार अपने निर्णय पर अडिग रही.
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने योगी सरकार के इस फैसले के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि सरकार का यह निर्णय अनुच्छेद 21ए के उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आता, बल्कि इसका उद्देश्य संसाधनों का बेहतर उपयोग और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाना है. हाई कोर्ट ने माना कि सरकारी स्कूलों में संसाधन विखंडित हो रहे थे, जिससे बच्चों को न शिक्षक मिल पा रहे थे, न पर्याप्त सुविधाएं. सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया और मुख्य स्थाई अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने दलील दी कि छात्रविहीन या कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को पास के उच्च प्राथमिक विद्यालयों से जोड़ा गया है, ताकि अध्यापक, पुस्तकालय, खेलकूद और स्मार्ट क्लास जैसी सुविधाएं सभी बच्चों को एकीकृत रूप से मिल सकें.
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उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि यह निर्णय छात्रों के सर्वोत्तम हित में लिया गया है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 1.40 लाख सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें से 29,000 में 50 या उससे कम छात्र हैं. इन स्कूलों में करीब 89,000 शिक्षक तैनात हैं. व्यापक योजना यह है कि कम नामांकन वाले स्कूलों के छात्रों को बड़े परिसरों और बेहतर सुविधाओं वाले नजदीकी संस्थानों में भेजा जाए. हालांकि, राज्य सरकार के 16 जून के आदेश को चुनौती देते हुए सीतापुर जिले के कुल 51 छात्रों ने अपने अभिभावकों के माध्यम से इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य सरकार का आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन है. इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता एल.पी. मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने तर्क दिया कि स्कूलों को बंद करने का निर्णय बच्चों के हितों को कमजोर करेगा क्योंकि उन्हें स्कूल पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी होगी. इस बीच, राज्य ने यह कहते हुए निर्णय को उचित ठहराया कि यह कदम छात्रों के व्यापक हित में होगा और इससे संसाधनों के बेहतर उपयोग का मार्ग प्रशस्त होगा. राज्य सरकार ने पीठ को अवगत कराया कि शिक्षा विभाग का उद्देश्य संसाधनों का बेहतर उपयोग करना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करते हुए ड्रॉपआउट दर को कम करना है.
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